श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02

सूत्र - 02,03

Description

आचार्यों की एक कला है सूत्र बनाने की "पीत है अन्त में जिसके" का मतलब? "पीत-अंत-लेश्या:" इसी प्रकार का सूत्र जो पहले आया थासूत्र ग्रन्थ, उनकी लेखन शैली एवं उन सूत्रकारों की महानता सूत्रकार बहुत विशिष्ट आचार्य होते हैं सूत्रात्मक शैली में छोटे-बड़े सूत्र जरूरत आने पर लिखे हैं सूत्रों के भावार्थ आचार्यों टीकाओं के माध्यम से ज्ञात होते है देवों की भी तीन अशुभ लेश्या होती हैंटीका किसे कहते हैं? पर्याप्तक जीवों की अपर्याप्त एवं पर्याप्त अवस्था जीव के प्रकार देव गति में कौन-कौन से जीव उत्पन्न हो सकते हैं? भवनत्रिक किसे कहते हैं? भवनत्रिक में अपर्याप्त अवस्था में अशुभ लेश्या ही होती है भोगभूमि के जीव की भी भवनत्रिक में जन्म होने पर लेश्या अशुभ होगी जीव के परिणाम जिस भव में जन्म ले रहा है उस पर भी आधारित होते हैंसभी देशों के अपने नियम होते हैंदेवों में पर्याप्त अवस्था में नियम से शुभ लेश्या होती हैं चतुर्निकाय देवों के उपभेद किन देवों के कितने भेद होते हैं? कल्पवासी देव

Sutra

आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या: ॥2॥

दशाष्ट-पञ्च-द्वादश-विकल्पा:कल्पोपपन्न-पर्यन्ता:॥3॥

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WINNERS

Day 02

13th Dec, 2022

Renu jain

Mirzapur

WINNER-1

Jain Suman Patni

Bangalore

WINNER-2

Manoj kumar jain

Jaipur

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

ज्योतिषी देव कितने प्रकार के होते हैं?

  1. 5*

  2. 8

  3. 10

  4. 12

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/W9tbrBkpQSH9sFzb8

Summary


  1. मुनि श्री ने समझाया कि सूत्राकर आचार्य लिखने में कंजूस होते हैं

    • और अपनी चतुराई से एक भी अतिरिक्त अक्षर का प्रयोग नहीं करते

    • जैसे similar चीजों के लिए 'च' लिखा दिया मतलब जैसा ऊपर है वैसा ही

    • गाथा और श्लोक तो कोई भी लिख सकता है पर सूत्र नहीं


  1. सूत्र आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या: जैसा ही प्रयोग द्वितीय अध्याय के सूत्र बाईस - वनस्पत्यंतानामेकम् में हुआ है

    • जहाँ अर्थ था “पृथिव्यपतेजो वायु-वनस्पतय: स्थावराः” में जिसके अन्त में वनस्पति है

    • इसी तरह पीतान्तलेश्या: का अर्थ है ‘पीत लेश्या है अन्त में जिसके’ यानी कृष्ण, नील, कपोत और पीत


  1. सूत्रों के भावार्थ हमें आचार्यों की टीकाओं के माध्यम से ज्ञात होते हैं

  2. कषाय पाहुड ग्रन्थ की 180 गाथाएँ सूत्रात्मक हैं

    • जिसकी टीका आचार्य वीरसेन महाराज ने जयधवला ग्रन्थों की सोलह पुस्तकें में की


  1. सूत्रों की व्याख्याओं को टीका कहते हैं

    • टीकाकार आगम के विरुद्ध में कोई व्याख्या नहीं करते

    • और न ही कोई विरोध करते

    • इनमें स्पष्टीकरण होता है


  1. सामान्य से हम जानते हैं कि नारकियों के अशुभ और देवों के शुभ लेश्या ही होती है

  2. लेकिन इस सूत्र के अनुसार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी देवों में कृष्ण, नील, कापोत और पीत लेश्यायें होती हैं

    • जिसमें तीन अशुभ हैं और एक पीत शुभ है

    • आचार्य टीकाओं में स्पष्टीकरण देते हैं कि इन देवों में पर्याप्त अवस्था में तो एक शुभ लेश्या ही होती है

    • लेकिन गति में जन्म लेने के प्रारम्भिक अन्तर्मुहूर्त में

    • जब जीव अपना शरीर तैयार करता है

    • उस अपर्याप्त अवस्था में देवों के लिए भी तीन अशुभ लेश्याओं का व्याख्यान है


  1. अपर्याप्त नामकर्म के उदय से अपर्याप्तक जीव, कभी पर्याप्तक नहीं होंगे

  2. पर्याप्त नाम कर्म के उदय से पर्याप्तक जीव ही होंगे

    • जो जन्म समय से एक अंतर्मुहूर्त तक अपर्याप्त अवस्था में रहेंगे


  1. हमने जाना कि देव गति में पर्याप्तक मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का ही जन्म होता है

    • भोगभूमि के मनुष्य या तिर्यंच का देव पर्याय में ही जन्म होता है

    • यहाँ देवों, नारकियों, एक से चार इन्द्रिय तिर्यंचों और अपर्याप्तक जीवों का जन्म नहीं होता


  1. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों को भवनत्रिक कहते हैं

    • इनमें जन्म लेते ही जीव की अपर्याप्त अवस्था में, भव के कारण से, अशुभ लेश्या ही होगी

    • उसकी पिछली पर्याय में चाहे लेश्या शुभ हो या अशुभ

    • मनुष्य या तिर्यंच जो इनमें जन्म लेंगे उनकी मरण समय पर लेश्या नियम से अशुभ होगी


  1. भोगभूमि के जीव की लेश्या पीत ही नियत है

  2. जीव के परिणाम जिस भव में वह जन्म ले रहा है उस पर भी आधारित होते हैं

    • जैसे- हम जिस देश में जाते हैं, उस देश की condition के अनुसार चलते हैं


  1. सूत्र तीन - दशाष्ट-पञ्च-द्वादश-विकल्पा:कल्पोपपन्न-पर्यन्ता: में हमने जाना कि

    • भवनवासियों के दस

    • व्यन्तरों के आठ,

    • ज्योतिषियों के पाँच और

    • कल्पवासी देवों के बारह भेद होते हैं


  1. कल्पवासी देवों के इर्द-गिर्द, छोटे-बड़े के भेद के साथ और भी देव रहते हैं

    • यह सूत्र सोलहवें स्वर्ग तक घटित होता है