श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 07
सूत्र - 01
सूत्र - 01
प्रमाद क्या है? प्रमत्त विरत किसे कहते हैं? विकथा एक प्रमाद का बाहरी रूप है। निद्रा भी प्रमाद का एक रूप है। विकथाएँ भी अनेक तरह की हैं। प्रमाद के कारण दस धर्म की पूर्णता भी नहीं होती। आठ प्रकार की शुद्धियाँ। आचार्य महाराज द्वारा दी गई प्रमाद की परिभाषा।
मिथ्या-दर्शना-विरति-प्रमाद-कषाय-योगाबन्ध-हेतव:॥8.1॥
03rd, April 2024
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शुभ, मंगल, हितकारी कार्यों में अनादर करना क्या है?
मिथ्यादर्शन
अविरति
प्रमाद*
योग
हमने बंध के हेतुओं में, आचार्य पूज्यपाद महाराज द्वारा बतायी गयी प्रमाद की व्यापक परिभाषा को जाना
सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ के अनुसार 'कुशलेषु अनादर: प्रमाद:’
अर्थात कुशल यानि जो हमारे लिए शुभरूप, मंगलरूप, हितकारी है
उन कार्यों में अनादर का भाव होना, प्रमाद है
हम वो चीजें नहीं करते जो हमारे लिये अच्छी होती हैं
व्रत चारित्र की शुद्धि करने के लिये होते हैं
प्रमाद से उनमें अशुद्धता या मलिनता आती है
और अप्रमाद से शुद्धता
जब हमारी प्रवृत्ति चार विकथाओं, चार कषायों, पाँच इन्द्रियों, निद्रा और स्नेह, इन पन्द्रह में से किसी की तरफ हो जाती हैं
तब हम प्रमादी होते हैं यानि प्रमत्त दशा में होते हैं
लेकिन प्रमत्त दशा में ये प्रवृत्तियाँ हों ही, यह अनिवार्य नहीं है
मुनि श्री ने समझाया कि छठवें प्रमत्त विरत गुणस्थान में
सभी मुनि महाराज प्रमत्त विरत हैं
अर्थात् उनमें कुछ प्रमाद उपस्थित है
लेकिन वे इन विकथाओं, कषायों आदि में ही लगे रहे
यह धारणा गलत है
यहाँ प्रमत्त विरत का भाव केवल संज्वलन कषाय की तीव्रता से आता है
यह जरूरी नहीं कि वे विकथा आदि में प्रवृत्ति करेंगे ही
यह प्रमाद के बाहरी रूप हैं
लेकिन जहाँ ये प्रवृत्तियाँ हैं, वहाँ स्पष्ट रूप से जान-बूझकर प्रमाद हो रहा है
हमने जाना कि अंतरग प्रमाद के कारण जीव अप्रमत्त दशा की शुद्धवृत्ति छोड़ कर
शुभवृत्ति में आ जाते हैं
जैसे सत्य वचन, धर्म का पालन करते हुए भाषासमिति के साथ बोलते हुए
यदि वे किसी अप्रयोजनीय विषय की चर्चा खींच दें तो ये विकथा है
राग-द्वेष को बढ़ाने वाली कथा विकथा हो जाती है
हमने जाना कि थकान दूर करने वाली निद्रा में भी प्रमाद है
हालाकि उसमें अन्दर जागृति बनी रहती है
पर बार-बार सोने की इच्छा करना
उसमें सुख लेना
बड़ा प्रमाद है
बिना वजह चेतन-अचेतन पदार्थों से स्नेह भी प्रमाद दशा में ही संभव है
प्रमाद के भेदों में अनेक तरह की विकथाएँ जैसे
आत्म प्रशंसा करना,
पर निन्दा करना
बिना प्रयोजन की कथाएँ करना
दूसरों की हार-जीत की कथाएँ करना आदि आती हैं
हमें इनसे बचना चाहिए
प्रमाद से हमारे अंदर उत्तम क्षमादि दस धर्मों के भाव नहीं रह पाते
जैसे समय पर क्रोध करके, हम बाद में सोचते हैं कि हमें क्षमा कर देना चाहिए था
इसी प्रकार जहाँ भी दस धर्मों में हमारे अन्दर पूर्णता नहीं होती
उसमें बहुत बड़ा factor अपने अन्दर का प्रमाद ही होता है
हमने जाना कि आठ शुद्धियों - कायशुद्धि, भावशुद्धि, भाषाशुद्धि, विनयशुद्धि, ईर्यापथशुद्धि,
भैक्ष्यशुद्धि, शयनासनशुद्धि और प्रतिष्ठापनशुद्धि
में पाँच बहुत कुछ समितियाँ रूप हैं
और तीन गुप्तियाँ रूप हैं
इन संयम में कमी का कारण भी प्रमाद है
प्रमाद के कारण
हम चीजों को अच्छी तरह से नहीं करते और मानते हैं ‘जैसा है वैसा ठीक है’
हमारी वृत्ति में अशुद्धता या दोष आता है
भावशुद्धि, विनयशुद्धि आदि शुद्धियों में कमी आती है
भगवान की पूजा करते समय भावों में कमी आ जाती है
कार्य करने से पहले और कार्य करते समय, भावों में अन्तर आ जाता है
प्रमाद से कर्म के रूप में हमारे अन्तरंग भाव भी प्रभावित होते हैं
प्रमाद के कारण उत्साह में कमी होती है
अनुत्साह पैदा होता है
प्रमाद हमारे अन्तरंग के संस्कार, कर्म के उदय, उनके कारण का मिला जुला परिणाम है
और इस कारण हम कुशलता के कार्यों में भी अनादर कर जाते हैं
जैसे जिनवाणी सुनते-सुनते भाव थोड़े से down हाे जाते हैं
शुद्ध भोजन करने का उत्साह बनाया लेकिन अंजाम देने की सोच कर
उत्साह-अनुत्साह में बदल गया
प्रमाद हमारे ऊपर हावी होकर कहता है
क्यों व्यर्थ का कष्ट उठा रहे हो?
हमें करना है तो करना है
इसी भाव से प्रमाद को जीता जाता है
और उत्साह बढ़ा रहता है