श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 13
सूत्र - 13
Description
ढाई द्वीप(मनुष्यलोक) के अन्दर के ही ज्योतिषी देव मेरू की परिक्रमा करते हैं। प्रदक्षिणा की विधि। जम्बूद्वीप के सभी ज्योतिषी देव नित्य गतिमान हैं। सूर्य के भ्रमण से दिन-रात होते हैं। दक्षिणायण और उत्तरायण। सूर्य के गमन क्षेत्र की एक सौ चौरासी(184) गलियाँ। सुमेरू पर्वत से ग्यारह सौ इक्कीस(1121) योजन की दूरी तक ज्योतिष्क देवों के भ्रमण की गलियाँ नहीं है। दक्षिणायण श्रावण मास(सावन का महीना) से प्रारम्भ होता है। दिन और रात का मुहूर्त में विभाजन। उत्तरायण माघ मास से प्रारम्भ होता है।दक्षिणायण में बढ़ना और उत्तरायण में घटना। सूर्य की अभ्यन्तर वीथी का जम्बूद्वीप के नक्शे में चित्रण। सूर्य की अभ्यन्तर वीथी की मेरू पर्वत से दूरी की गणना। सूर्य का चार क्षेत्र(गमनागमन का स्थान)। सूर्य के गमन की प्रत्येक दो गलियों के बीच की दूरी दो-दो योजन है। सूर्य को एक वीथी(गली) से दूसरी वीथी तक पहुँचने में लगने वाला औसत समय दो बटे इकसठ(2/61) (two up on sixty-one) मुहूर्त है।
Sutra
मेरूप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके।।13।।
Watch Class 13
WINNERS
Day 13
31th Dec, 2022
Kalpana Jain
Bhopal
WINNER-1
Jinendra Raj Jain
Shahpura Bhilwara
WINNER-2
Asha jain
Barhan
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
उत्तरायण कौनसे मास से प्रारम्भ होता है?
श्रावण मास से
भाद्रपद मास से
माघ मास से*
चैत्र मास से
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र तेरह - मेरूप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके में आचार्य कहते हैं कि
मेरू की प्रदक्षिणा करते हुए ज्योतिष-मण्डल इस नृलोक यानि मनुष्य लोक
के अन्दर हमेशा नित्य गतिमान रहता है
प्रदक्षिणा या परिक्रमा का अर्थ है अपने सामने से दाहिनी ओर गमन करना।
हमने जाना कि जम्बूद्वीप के सभी ज्योतिषी देव नित्य गतिमान हैं
किंतु धातकीखण्ड या पुष्करार्ध द्वीप में आधे गतिमान हैं
और आधे गतिमान नहीं हैं
ज्योतिषी देवों की नित्यगति मनुष्यलोक में ही होती है
इसी नित्यगति से दिन-रात आदि की व्यवस्था चलती है
हमने जाना कि सूर्य के विमान के गमन का क्षेत्र यानि चलने के स्थान को चार क्षेत्र कहते हैं
जम्बूद्वीप में गमन करते समय इस चार क्षेत्र का कुछ भाग लवण समुद्र में भी पड़ता है
ज्योतिष्क देवों के भ्रमण की गलियाँ सुमेरू पर्वत से ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूरी से प्रारंभ होती हैं
यानि इतनी दूरी के बाद ज्योतिष्क देवों के गमन की पहली गली होती है, उजिसको अभ्यन्तर वीथी कहते हैं, वो अन्दर से पहली गली होती है।
वही गलियाँ घूमते हुए लवण समुद्र में भी होंगी
सूर्य घूमते हुए जब बाहरी गली में होगा तब वह लवण समुद्र में भी गमन करेगा
हमने जाना कि छह महीने में अयन बदलते हैं
एक मुहूर्त में अड़तालीस मिनट
और चौबीस घण्टे में तीस मुहूर्त होते हैं
दक्षिणायन श्रावण महीने से प्रारम्भ होता है
जब दिन अठारह मुहूर्त का और रात बारह मुहूर्त की होती है
दक्षिणायन में छह महीने तक दिन धीरे-धीरे छोटे होते हैं
इस समय सूर्य का गमन अपनी अभ्यन्तर वीथी में होता है
अभ्यंतर वीथी में दिन बड़े और रात छोटी होती है
धीरे-धीरे जब सूर्य अपनी बाह्य वीथी में आता है तो स्थिति बिल्कुल उल्टी हो जाती है
उत्तरायण माघ मास से प्रारम्भ होता है
जब दिन बारह मुहूर्त का और रात्रि अठारह मुहूर्त की होती है
इसमें दिन धीरे-धीरे बड़े होते हैं
हमने सूर्य की अभ्यन्तर वीथी की मेरू पर्वत से दूरी की गणना को जाना
एक लाख योजन के जम्बूद्वीप में
दोनों side से 180-180 योजन का क्षेत्र गमन के लिए होता
दस हजार योजन की सुमेरू पर्वत की चौड़ाई भी गमन के लिए नहीं है
इस तरह नवासी हजार छह सौ चालीस योजन बचा
क्योंकि यह गमन दोनों ओर होता है
इसलिए एक भाग चवालीस हजार आठ सौ बीस योजन का होगा
इसके बाद सूर्य का चार क्षेत्र प्रारम्भ हो गया
मेरू पर्वत से चवालीस हजार आठ सौ बीस योजन दूरी पर सूर्य के गमन की अभ्यन्तर गली होगी
सूर्य के विमान की चौड़ाई अड़तालीस बटे इकसठ योजन होती है
सूर्य की एक सौ चौरासी गलियों में से
जम्बूद्वीप में 65 गलियाँ
और लवणसमुद्र में एक सौ उन्नीस गलियाँ होती हैं
इसका चार क्षेत्र पाँच सौ दस योजन होता है
जिसमें जम्बूद्वीप में एक सौ अस्सी योजन
और लवणसमुद्र में तीन सौ तीस योजन होता है
इसी पाँच सौ दस योजन में
चन्द्रमा का विमान पन्द्रह गलियों में घूमता है
सूर्य की एक सौ चौरासी गलियों में हर एक गली के बीच में दो योजन का अन्तर होता है
सूर्य को एक वीथी से दूसरी वीथी तक पहुँचने में औसतन दो बटे इकसठ मुहूर्त का समय लगता है