श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 30
सूत्र - 14
सूत्र - 14
त्रस नाम कर्म का उदय दो से पाँच इन्द्रियों में होता है l कौन से जीव में कितने प्राण हैं? पर्याप्त दशा और पर्याप्तक जीव में अन्तर है l अपर्याप्तक जीव कौन से है? मनुष्य भी अपर्याप्तक और पर्याप्तक होते हैं l पर्याप्तियों के आधार से जीवों के भेद l पर्याप्तक जीव की दो दशाएँ हैं l लब्धि अपर्याप्तक जीव को समझने के लिए उदाहरण l निवृत्ति अपर्याप्तक जीव को समझने के लिए उदाहरण l निवृत्ति अपर्याप्तक जीव को समझने के लिए उदाहरण l नियम से आकार पूरा करना ही पर्याप्तक दशा है l अन्तर्मुहूर्त तक पर्याप्तक जीव भी अपर्याप्तक रहते हैं l पर्याप्तक जीवों के प्राण इन्द्रियों की संख्या बढ़ने से बढ़ते जाते हैं l दो इन्द्रिय जीव से बोलने की शक्ति आ जाती है l
'द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः'।l१४ll
प्रतिभा जैन
लन्दन
WIINNER- 1
Trishla Jain
Delhi
WINNER-2
Smt. Vinod Jain
Varanasi
WINNER-3
निम्न में से किसके त्रस नाम कर्म का उदय नहीं है?
मनुष्य
वृक्ष/वनस्पतिकायिक जीव *
लट
मधुमक्खी
सूत्र 14 में हमने जाना कि दो या उससे अधिक इन्द्रिय वाले जीव त्रस होते हैं
एकेन्द्रिय में स्थावर की व्यवस्था होती है और दो इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक त्रस की व्यवस्था होती है
त्रस जीवों में त्रस नामकर्म का उदय होता है
इसके साथ जिन इन्द्रियों का क्षयोपशम होगा, उतनी इन्द्रिय वाला वह जीव बनेगा
त्रस पर्याय के अंदर जो उपलब्धियाँ हैं उनको प्राणों के माध्यम से जाना जाता है
प्राण ही जीवन है
जीव के त्रस नामकर्म के साथ में पर्याप्तक या अपर्याप्तक नामकर्म का उदय होते है जिससे पता चलता है कि जीव पर्याप्तक होगा या अपर्याप्तक
पर्याप्तक जीव नियम से अपनी पर्याप्तियों को पूर्ण करेगा
अपर्याप्तक जीव अपनी पर्याप्तियों को प्रारम्भ तो कर देगा लेकिन पूर्ण एक भी नहीं कर पाएगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी
अपर्याप्तक जीव वस्तुतः लब्धि अपर्याप्तक ही होते हैं
जिनकी सब लब्धियाँ अपूर्ण हैं
जिस इन्द्रिय में उन्हें जाना है, उतनी इन्द्रिय का क्षयोपशम भी है लेकिन पूर्ण एक भी इन्द्रिय नहीं हुई
इनका जीवन श्वास के अठारहवें भाग में पूर्ण हो जाता है
एक तरफ से ये सम्मूर्च्छन जन्म वाले जीव होते हैं
ऐसे अपर्याप्तक जीव मनुष्य सहित सभी इन्द्रिय वाले जीवों में होते हैं
अपर्याप्तक जीव हमेशा अपर्याप्त दशा में ही रहता है
मगर पर्याप्तक जीव जब तक अन्तर्मुहूर्त में अपनी पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं कर लेता तब तक वह जीव अपर्याप्त दशा में होता है
उसके पश्चात् वह पर्याप्त दशा में आ जाता है
पर्याप्तक नामकर्म के उदय से वह नियम से अपनी पर्याप्तियाँ पूर्ण करता है
गर्भ जन्म वाले जीव पर्याप्तक ही होते हैं
पर्याप्तियों के आधार से हम तीन तरह से जीवों को समझ सकते हैं
पहला लब्धि अपर्याप्तक जीव- जिनकी सभी पर्याप्तियाँ incomplete ही रहेंगी
दूसरा पर्याप्तक जीव - जिन जीवों ने अपने पर्याप्तियाँ पूर्ण करलीं हैं
और निर्वृत्ति अपर्याप्तक जीव- पर्याप्तक जीव जब एक पर्याय को छोड़कर दूसरे पर्याय में आते हैं और जन्म लेने के बाद अन्तर्मुहूर्त तक अपनी पर्याप्तियाँ पूर्ण करते हैं तो उस अवस्था को निर्वृत्ति अपर्याप्तक कहते हैं
उदाहरण के लिए
जब आटे गूँथने में अत्यधिक पानी डाल दें तो पूरा आटे फैल जाता है इसे लब्धि अपर्याप्तक दशा समझ सकते हैं
गुथे हुए आटे से लोई बनाकर रोटी बनाने की प्रक्रिया हो गयी निर्वृत्ति अपर्याप्तक दशा
सही आकार आदि में आने के बाद रोटी पर्याप्तक दशा में आ जाती है
हमने जाना की पर्याप्तक जीवों में इन्द्रिय के साथसाथ प्राण भी बढ़ते हैं जैसे
एक इन्द्रिय के 4
दो इन्द्रिय के 6
3 indriya ke 7
4 indriya ke 8
असंज्ञी पंचेन्द्रिय के 9 और
संज्ञी पंचेंद्रिय के 10 प्राण होते हैं