श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 46
सूत्र -31,32
Description
किसकी कौन-सी योनि होती है? शीत, उष्ण, शीतोष्ण योनि स्थान के उदाहरण l संवृत, विवृत, मिश्र l 84 लाख योनियों का गणित l मनुष्य के 14 लाख योनि स्थान fix हैं l आकृति के अनुसार योनियों का वर्णन l
Sutra
सम्मूर्च्छनगर्भोपपादा जन्म।l31ll
सचित्त-शीत-संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः।l32।l
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WINNERS
Day 46
03rd July, 2022
Minaxi Maheshchanra Shah
Mandvi Surat
WIINNER- 1
Abha jain
Ghaziabad
WINNER-2
Meena
Gwalior
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से 7 लाख योनियाँ किनकी होती हैं?
विकलत्रय की
चार इन्द्रिय की
वायुकायिक की *
देवों की
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र बत्तीस सचित्त-शीत-संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः में हमने जाना कि जन्म इन योनियों में होता है
योनि आधार है
और जन्म होना उसके ऊपर होने वाला कार्य है
योनियों के 9 भेद होते हैं
पहला सचित्त योनि - जिसमें जीव का संयोग हो
दूसरा शीत योनि - जिसमें योनि के पुद्गल प्रदेश शीत प्रकृति के हों
तीसरा संवृत योनि - जिसमें योनि स्थान संवृत हों अर्थात देखने में न आये
अगले तीन भेद इन्हें उल्टा करने से आते हैं जैसे
चौथा अचित्त योनि - जिनमें जीव नहीं होता
पाँचवाँ उष्ण योनि - जिसमें योनि के पुद्गल प्रदेश उष्ण प्रकृति के हों
छटवाँ विवृत योनि - जिसमें योनि स्थान विवृत हों अर्थात जो खुले हुए हों, देखने में आयें
और अंतिम तीन भेद इन दोनों का भंग करने से मिलते हैं जैसे
सातवां सचित्ताचित्त योनि - ऐसी मिश्र योनि जो सचित्त भी है और अचित्त भी
आठवाँ शीतोष्ण योनि - जो शीत भी है और उष्ण भी
नौवां संवृत-विवृत योनि - जो संवृत भी है और विवृत भी
हमने जाना कि
देव और नारकियों के योनि-स्थान अचित्त होते हैं
साधारण-वनस्पतिकायिक के योनि-स्थान सचित्त होते हैं क्योंकि वहाँ पर एक दूसरे के आश्रय से ही जीव रहते हैं
बाकी के जीवों के स्थान सचित्त, अचित्त या मिश्र हो सकते हैं
हमने जाना कि शुक्र और शोणित अचित्त होता है
लेकिन जिस उदर में यह होता है उस माता के यह सचित्त है
अतः गर्भ जन्म वाली योनि मिश्र योनि होती है
नरक में ऊपर के बिल उष्ण योनि और नीचे के बिल शीत योनि होते हैं
देवों में भी शीत और उष्ण दोनों ही स्थान होते हैं
लेकिन कहाँ कौनसा है इसका स्पष्टीकरण नहीं मिलता
एकान्त रूप से
शीत स्थान केवल जलकायिक जीवों का होगा
उष्ण स्थान केवल अग्निकायिक जीवों का होगा
बाकी सब जीवों का मिश्र होगा
इसी तरह
देवों, नारकियों और एकेन्द्रियों के योनि स्थान संवृत होते हैं
विकलेन्द्रियों के विवृत होते हैं
शेष मिश्ररूप होते हैं
च-ऐकशः - इसमें आचार्यों ने "च" शब्द से 84 लाख योनियों का भी वर्णन बताया हैं
एक-एक करके इनको मिलाने से नौ प्रकार के योनि-स्थान बन जाते हैं
जिनके भेद करने से चौरासी लाख प्रभेद बनते हैं
पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारण वनस्पति के नित्य-निगोद और इतर-निगोद में प्रत्येक के 7 लाख योनि स्थान होने से व्यालीस लाख
विकलेन्द्रिय के 2-2 लाख योनियाँ होने से कुल छः लाख
प्रत्येक वनस्पतिकायिक के दस लाख
देव, नारकी और पंचेन्द्रिय तिर्यंच के 4-4 लाख स्थान होने से बारह लाख
और मनुष्य के चौदह लाख
अक्सर हम सोचते हैं कि मनुष्य जन्म कितनी बार मिलेगा
मगर आगम में यह fix नहीं है
केवल योनि स्थान fix हैं
चौरासी लाख योनियों में कोई भी जीव कितनी बार भी किसी भी योनि में जन्म ले सकता है
आगे हमने आकृति के अनुसार योनियों के प्रकार को भी जाना