श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 56
सूत्र -49,50,51,52,53
Description
आचार्य श्री जी का चिन्तन l वेद और लिंग में अन्तर l अनपवर्त और अपवर्त आयु वाले जीव l महामारी की चपेट में आने के कारण l आचार्यों ने अकाल मरण स्वीकार किया है l अकाल मरण किस स्थिति में नहीं होता l चरम देह और उत्तम देह का अर्थ l चरमोत्तम देह नियम से तीर्थंकर की होती है l भोग भूमि के मनुष्य और तिर्यन्च की आयु असंख्यात वर्ष की होती है l सामान्य मनुष्य और तिर्यन्च का अकाल मरण हो सकता है l क्रमबद्ध पर्याय को सिद्ध करने वाले सूत्रों के विरुद्ध चले जाते हैं l अकाल मरण के बारे में न्याय के विद्वान अकाट्य उदाहरण देते हैं l
Sutra
शुभं विशुद्ध-मव्याघाति चाहारकं प्रमत्त-संयतस्यैव।l४९।l
नारक समूर्च्छिनो नपुंसकानि।l५०।l
न देवाः।l 51।l
शेषास्त्रिवेदाः।l५२।l
औपपादिक-चरमोत्तम-देहाऽसंख्येय-वर्षायुषोऽनपवर्त्यायुष:।l53।l
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WINNERS
Day 56
18th July, 2022
Anjali jain
Firozabad
WIINNER- 1
Seema Jatale
Nagpur
WINNER-2
Sangita Sanjay Shah
Malad Mumbai
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से अकाल मरण किसका हो सकता है?
देव
नारकी
चरम शरीरी मनुष्य *
सामान्य तिर्यंच *
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने सूत्र बावन शेषास्त्रिवेदाः में विस्तार से क्षेत्रों में वेद व्यवस्था को भी जाना
आर्यखण्ड के मनुष्यों में तो तीनों वेद के जीव मिलेंगे
म्लेच्छ खण्ड के मनुष्यों में नपुंसक वेद नहीं होगा
भोग भूमि के मनुष्यों और तिर्यन्चों में भी नपुंसक वेद नहीं होगा
सम्मूर्च्छन जन्म वाले जीव नपुंसक ही होंगे चाहे वह कर्म भूमि के हो या भोगभूमि के
आचार्य श्री चिंतन अनुसार
नारक सम्मूर्छनों नपुंसकानि सूत्र में लिङ्गानि ध्वनित होता है
अर्थात नारकी और सम्मूर्च्छनों में जहाँ द्रव्य और भाव लिंग एक ही होंगे, नपुंसक शब्द लिङ्ग का प्रयोग किया है
लिंग में तो द्रव्य और भाव दोनों एक जैसे ही होंगे
और सूत्र शेषास त्रिवेदाः में जहाँ वेद वैषम्य आ जाता है वेद शब्द का प्रयोग किया है
सूत्र त्रेपन में हमने अनपवर्त आयु यानि जिसका घात न हो
और अपवर्त आयु यानि जिसकी अकाल मृत्यु हो सकती है
अकाल मृत्यु को शास्त्रों में कदलीघात मरण भी बोलते हैं
समय से पहले कोई दुर्घटना हो जाना, रोग हो जाना, महामारी की चपेट में आना, गिर जाना, heart attack हो जाना आदि सब अकाल मरण हैं
गलत life style, गलत खान-पान, प्रमाद आदि के कारण शरीर खराब कर रखे हैं और यही अकाल मृत्यु के कारण हैं
कुछ लोग अकाल मरण नहीं मानते
मगर आचार्यों ने इसे स्वीकारा है
तीन स्तिथियों में अकाल मरण नहीं होता
पहली स्थिति है देव और नारकी की
दूसरी स्थिति है चरमोत्तम देह धारियों की
चरम देह उसी भव में मोक्षगामी जीव के होगी
और उत्तम देह त्रेसठ शलाका पुरुषों के होगी
अतः चरमोत्तम देह नियम से तीर्थंकर की होगी
पाण्डव, गज कुमार मुनि आदि चरम शरीरी थे लेकिन उत्तम देह वाले नहीं थे
इसलिए इनके अकाल मरण सम्भव है
ऐसे उत्तम देह धारी भी होते हैं जो चरम शरीरी नहीं है जैसे नरक या स्वर्ग जाने वाले चक्रवर्ती
इनका भी अकाल मरण सम्भव है
तीसरी स्तिथि है असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीव की
ये जीव भोग भूमि में एक, दो और तीन पल्य की आयु के साथ होते हैं
इन तीन के अलवा सभी अपवर्त आयु वाले होते हैं
सामान्य मनुष्य और तिर्यन्च का अकाल मरण हो सकता है
हमने जाना कि क्रमबद्ध पर्याय को सिद्ध करने वाले सूत्रों के विरुद्ध जाकर तरह तरह की के कर्म सिद्धान्त बता कर समझाने की कोशिश करते हैं
लेकिन आचार्य के कथन के बिना उनकी कोई भी बात मान्य नहीं है
अकाल मरण के बारे में न्याय के विद्वान अकाट्य उदाहरण देते हैं
जैसे- आचार्य अकलंकदेव ने टीका में कहा है कि अकाल मरण भी होता है
इस तरह हमने दूसरे अध्याय में पूरा जैन जीव का विज्ञान समझा