श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 52
सूत्र -41,42,43,44
सूत्र -41,42,43,44
आचार्य महाराज का चिन्तन केवलज्ञान के विषय में l यहाँ अनन्त का मतलब यह है कि जिसका अन्त नहीं है l संघ में रहने का सुख और ज्ञान l कहाँ-किस शब्द का क्या अर्थ आया, यह विचार रखना चाहिए l एक साथ कितने शरीर एक जीव के पास होते हैं? एक साथ चार से ज्यादा शरीर के पास होते आहारक शरीर किन्हें होता है l पाँच शरीर एक साथ नहीं होने के कारण l शरीर की अपेक्षा से उपभोग अर्थ l कार्मण शरीर उपभोग से रहित है l कार्मण शरीर के उपभोग न करने का कारण l
अनादि संबंधे च।l४१।l
सर्वस्य।l४२।l
तदादीनिभाज्यानियुगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य:।l43।l
निरुपभोगमन्त्यम्।l४४।l
अंजलि जैन
कोटा
WIINNER- 1
हंसा मेहता
पुणे महाराष्ट्र
WINNER-2
विद्या सुहास वाडकर
आष्टा
WINNER-3
कौन सा शरीर उपभोग से रहित होता है?
औदारिक शरीर
वैक्रियिक शरीर
आहारक शरीर
कार्मण शरीर *
सूत्र बयालीस सर्वस्य में हमने जाना कि सभी संसारी जीवों के लिए सामान्य रूप से तैजस और कार्मण शरीर का सम्बन्ध रहता है
यह सम्बन्ध अनादि भी है, सादि भी है और अप्रतिघात से सहित है
और यह हर गति में, विग्रहगति में भी रहते हैं
मुनि श्री ने आचार्य श्री के एक संस्मरण में बताया कि किस तरह आचार्य महाराज संघ में नए-नए चिंतन देकर मुनि महाराजों के दिमाग में खुजली पैदा करते हैं
आचार्य श्री ने अपने चिंतन में पहले-अध्याय के सूत्र "सर्वद्रव्यपर्यायेषु-केवलस्य" में सर्व शब्द का अर्थ ‘सभी द्रव्यों की सभी पर्यायों’ से लिया
सर्व का मतलब अनन्त नहीं लिया
यानि 'सर्वद्रव्य' का मतलब अनंत द्रव्य नहीं लिया
गहराई से समझ में आया कि सबका मतलब अनन्त नहीं है, अगर अनन्त हुआ तो फिर उन्होंने अनन्त को जान लिया मतलब उसका अन्त जान लिया
उनके अनुसार उन्होंने सब को ही जान लिया अर्थात् जितना है उतना जान लिया
जो जिस समय पर उपलब्ध है, जितना है, उतना जान लिया
अगर सर्व शब्द का अर्थ वहाँ अनन्त नहीं माना तो यह तर्क बनता है कि वर्तमान सूत्र सर्वस्य में कुछ जीव छूट जाएँगे, जिनमें तैजस और कार्मण-शरीर का सम्बन्ध नहीं होगा या उनके साथ उनका बन्ध नहीं होगा
सूत्र तेतालीस तदादीनिभाज्यानियुगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य: में हमने यह जाना कि जीव के पास एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं
अलग-अलग time पर यह संख्या अलग-अलग हो सकती है
जीव के कम से कम दो शरीर होंगे - तैजस और कार्मण
अगर तीन शरीर होंगे तो
औदारिक, तैजस और कार्मण,
या वैक्रियक, तेजस और कार्मण होंगे
जब मुनि महाराज के मस्तक से आहारक शरीर निकलता है, उस समय उनके पास चार शरीर होते हैं
आहारक, औदारिक, तैजस और कार्मण,
एक आत्मा में 4 शरीर ही अधिकतम हो सकते हैं
वैक्रियिक शरीर के साथ औदारिक और आहारक शरीर नहीं हो सकते
हमने जाना कि मनुष्य और त्रियंच भी विक्रिया शक्ति से विक्रिया करते हैं
लेकिन उनका शरीर वैक्रियिक नहीं हो जाता
वैक्रियिक शरीर सिर्फ उपपाद शय्या पर उत्पन देव और नारकियों के ही होता है
सूत्र चबालीस निरुपभोगमन्त्यम् में आचार्य कहते हैं कि अन्त का शरीर - कार्मण शरीर निरुपभोग है अर्थात उपभोग से रहित है
उपभोग का अर्थ है इन्द्रियों द्वारा इन्द्रियों के विषयों को ग्रहण करना
जैसे- शब्द सुनना, आँखों से देखना, चखना आदि
उपभोग औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर करते हैं
कार्मण शरीर में इन्द्रिय आदि के माध्यम से कोई भी उपभोग नहीं होता है
कार्मण-काययोग जो विग्रहगति में होता है वहाँ द्रव्य इन्द्रियों की निवृत्ति नहीं होती
अतः शब्द आदि विषयों का उपभोग नहीं हो सकता
आइये हम सभी अब जिनवाणी स्तुति करेंगे और तत्पश्चात समय होगा आज के सवाल का