श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 21
सूत्र - 17,18
सूत्र - 17,18
Mobile नेटवर्क भी धर्म अधर्म के कारण है। धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार भी मानना चाहिए। आकाश द्रव्य का उपकार अवगाह देना है। अवगाहनत्व गुण आकाश में मुख्य रूप से है। द्रव्यों के उपकार को अनेकांत दृष्टिकोण से समझिए। द्रव्यार्थिक नय हर द्रव्य अपने स्वभाव में है। भोजन का उदाहरण।
गति-स्थित्युपग्रहौ धर्मा-धर्मयो-रूपकारः॥17॥
आकाशस्या - वगाहः ॥18॥
Swati Atul kala
Tamsa
WINNER-1
Seema Jain
Garhakota
WINNER-2
Anuja pravin Magdum
(Maharashtra)
WINNER-3
आकाश में मुख्य रूप से कौनसा गुण है?
स्थितिहेतुत्व
गतिहेतुत्व
अवगाहनत्व*
वर्तना हेतुत्व
सूत्र सत्रह में हमने धर्म और अधर्म द्रव्यों के उपकार को जाना
हमने जाना कि mobile network के पीछे भी धर्म-अधर्म द्रव्य एक secret कारण है
धर्म द्रव्य के कारण ही waves और उनके connection के जरिये हमारे message क्षण भर में कहीं भी पहुँच जाते हैं
और अधर्म द्रव्य के कारण ही mobile में stay करते हैं
यह science के साथ-साथ एक और science है
सर्वज्ञ प्रणीत इन द्रव्यों के उपकार मानने से हमारे अंदर श्रद्धा बढ़ेगी
और सर्वज्ञता और छह द्रव्यों की श्रद्धा से सम्यग्दर्शन होता है
हमें सिर्फ ये नहीं याद रखना है कि
धर्म द्रव्य गति में मछली के लिए पानी के समान
और अधर्म द्रव्य रुकने में पथिक के लिए पेड़ के समान सहायक है
बल्कि इन चीजों को श्रद्धा के साथ practical life में लाकर
दूसरों को भी इसकी knowledge देनी है
सूत्र अठारह आकाशस्यावगाहः के अनुसार आकाश द्रव्य सभी द्रव्यों को अवगाह यानि रहने के लिए space देकर उपकार करता है
Modern science की Spacetime theory, इसको time के साथ relate कर चीजों को interpret करती है
जबकि space और time अपने आप में बिलकुल भिन्न पदार्थ हैं
7. वैज्ञानिकों के अनुसार पूरा cosmos quantum field है
हर जगह कोई न कोई पदार्थ है
और उस पदार्थ की अपनी energy या तो catch होती है
या किसी तरीके से feel हो सकती है
8. quantum physics के अंतर्गत particle की energy या quanta field
आकाश के अवगाह गुण के कारण ही है
9. आकाश के इसी अवगाहनत्व गुण के कारण से
सभी द्रव्य यथास्थान अपने-अपने स्वरूप में हैं
सब एक साथ भी हैं
एक दूसरे से मिले हुए भी हैं
एक दूसरे के ऊपर उपकार भी करते हैं
फिर भी एक दूसरे के स्वभाव को change नहीं करते
10. एकांत से ऐसा मानना कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के लिए कुछ नहीं करता
एकांत मिथ्यात्व होता है
11. अनेकांत धर्म के अनुसार
एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के स्वभाव को नहीं बदलता है
लेकिन उसके लिए सहयोगी बनता है
12. जैसे सूत्र के अनुसार आकाश द्रव्य
स्वयं को ही नहीं, अन्य सभी द्रव्यों को भी,
बिना उनके क्रियाकलाप में बाधा पहुँचाये
अवगाह दे रहा है
अन्यथा वे द्रव्य कहाँ रहेंगे?
यह इसका अन्य द्रव्यों पर उपकार है
13. आकाश के बिना द्रव्यों का अवगाहन
धर्म-अधर्म के बिना इनकी गति-स्थिति
और काल के बिना इनका परिणमन नहीं हो सकता
14. हमें सभी सूत्रों को अनेकांत धर्म के साथ स्वीकार करना है
15. हमने जाना कि द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय में गौण और मुख्यता के माध्यम से ही द्रव्य का वर्णन होता है
अतः हमें दोनों नयों से प्ररूपणा करना सीखना चाहिए
और यथार्थ को स्वीकार कर उसी तरीके से दूसरों को बताना चाहिए
अनेकांत के सिद्धांत में
जब द्रव्यार्थिक नय मुख्य हो जाता है तो पर्यायर्थिक नय गौण हो जाता है
द्रव्यार्थिक नय में हर द्रव्य अपने स्वभाव में है
कोई किसी को अवगाहन नहीं दे रहा
हर द्रव्य अपने में अवगाहित होता है
अपने में गति और स्थिति करता है
पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को अवगाहित करता है
गति और स्थिति में सहायक होता है
आकाश सबको अवगाहित कर रहा है
पुद्गल के एक परमाणु में अनेक परमाणु अवगाहित हो रहे हैं
जीव में पुद्गल और पुद्गल में जीव अवगाहित हो रहे हैं
द्रव्य एक दूसरे में समाहित हो रहे हैं और उपकार कर रहे हैं
हम प्रतिदिन भोजन करते हैं
परन्तु वह कहाँ अवगाहित होता है?
कहाँ चला जाता है?
चूँकि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को अवगाहन दे रहा है तभी तो शरीर टिका हुआ है
और शरीर के उपकार के कारण ही जीव का अस्तित्व है