श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 24
सूत्र -22,23
Description
यदि हमें कोई जीव मरण के निकट दिख रहा हो तो। पार्श्व कुमार जलते नाग-नागिन के परिणामों की शुभता में कारण बनें। हमें अपने परिणामों की समीक्षा करनी चाहिए। पीत, पद्म और शुक्ल भाव लेश्या वाले जीवों की संख्या। देवों की पीत आदि लेश्याओं में स्वस्थान परिवर्तन(पीत का पीत में परिवर्तन आदि) होता रहता है। सभी मुनियों की संज्वलन कषाय आदि समान नहीं होती। तैजस और कार्मण शरीर का भी अपना रंग होता है। विग्रह गति में रहने वाले जीव की शुक्ल द्रव्य लेश्या होती है। द्रव्य लेश्या शुक्ल होने पर भी सभी भाव लेश्या संभव है। जीव की अपर्याप्त अवस्था में कापोत द्रव्य लेश्या होती है। जलकायिक जीवों की शुक्ल द्रव्य लेश्या होती है। सभी नारकियों की द्रव्य लेश्या कृष्ण होती है। भवनत्रिक देवों में छहों द्रव्य लेश्या। वैमानिक देवों की द्रव्य से भी अशुभ लेश्या नहीं होगी। आहारक शरीर की भी शुक्ल द्रव्य लेश्या होती है। हमारे जीवन में हमारी द्रव्य लेश्या(शरीर का रंग-रूप) से अधिक महत्वपूर्ण हमारे गुण है। मोक्ष जाने के लिए/ केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए कोई द्रव्य लेश्या बाधक नहीं होती। मोक्ष प्राप्ति में सहायक शुभ भाव लेश्या के परिणाम। ग्रैवेयकों से पहले तक के सोलह स्वर्गों की "कल्प" संज्ञा है। दो कल्पों का जोड़ा कल्प-युगल कहलाता है। ग्रैवेयक आदि कल्पातीत है।
Sutra
प्राग्ग्रैवेयकेभ्यः कल्पाः॥23॥
Watch Class 24
WINNERS
Day 24
24th Jan, 2023
Rupa Shah
Ahmedabad
WINNER-1
Gunmalajain
Ahmedabad
WINNER-2
चन्द्र कुमार जैन शिक्षक
छतरपुर मध्यप्रदेश
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
विग्रह गति में रहने वाले जीव की द्रव्य लेश्या कौनसी होती है?
कापोत
पद्म
पीत
शुक्ल*
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि मरण समय जीव के परिणाम संभलना बहुत ज़रूरी है
क्योंकि इस समय के परिणामों का सुधार लम्बे समय तक उसके काम आता है
इसलिए मरण के निकट दिख रहे जीवों को हमें थोड़ा
सहलाना चाहिए,
शांत करना चाहिए,
णमोकार मंत्र आदि सुनाना चाहिए
ताकि उसके परिणाम अच्छे बनें
पार्श्व कुमार के कारण ही जलते नाग-नागिन के परिणामों में शुभता आई थी
और वे भवनवासी देव बनें
वहाँ जीवन पर्यंत उनके भाव शुभ पीत लेश्या के रहेंगे
इसलिए हमें अपने परिणामों की समीक्षा करनी चाहिए
कि वे शुभ हैं या अशुभ
auspicious हैं या inauspicious
पवित्र परिणाम अच्छे होंगे और
कषाय और कुण्ठा से सहित परिणाम अशुभ होंगे
इनसे हमें अभी भी कष्ट मिलेंगे और
अगर आयु बंध हो गया तो आगे भी अच्छी पर्याय नहीं मिलेगी
हमने जाना कि असंख्यात देवों की लेश्या पीत, पद्म और शुक्ल होती है
लेकिन उन सबके परिणामों में अंतर रहता है
उनकी लेश्या में कोई परिवर्तन नहीं होता
फिर भी परिणामों में लेश्या के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अंश के अनुसार परिवर्तन होता रहता है
जीव के परिणाम बिना परिवर्तन के नहीं रह सकते
इसी प्रकार कषाय में भी एक जैसा भाव नहीं रहता
सभी मुनियों की संज्वलन कषाय भी समान नहीं होती
द्रव्य लेश्या सामान्यतः शरीर के रंग के अनुसार होती है
हमने इसकी कुछ विशेषतायें भी जानी
आत्मा से जुड़े तैजस और कार्मण शरीर का भी अपना रंग होता है
यही रंग विग्रहगति में जीव की द्रव्य लेश्या होती है
यहाँ जीव की हमेशा शुक्ल द्रव्य लेश्या होती है
क्योंकि यहाँ केवल कर्मों को ग्रहण होता है
उसकी भाव लेश्या कुछ भी हो सकती है
जैसे नरक, भवनत्रिक आदि में जा रहे जीव की अशुभ भाव लेश्या ही होगी
इसी प्रकार अपर्याप्त अवस्था में अन्तर्मुहूर्त तक सभी की कापोत द्रव्य लेश्या ही होगी
बादर, पर्याप्तक जलकायिक जीव की शुक्ल द्रव्य लेश्या ही होगी
नारकियों की कृष्ण लेश्या ही होगी
भवनत्रिक देवों में छहों द्रव्य लेश्या हो सकती हैं
वैमानिक देवों में शुभ पीत, पद्म, शुक्ल द्रव्य लेश्या ही होगी
आहारक शरीर की शुक्ल द्रव्य लेश्या ही होगी
तीर्थंकरों के लिए सभी द्रव्य लेश्यायें शुभ मानी जाती हैं
इनके आलावा बाकी किसी के लिए कोई नियामकता नहीं है
हमारे जीवन में द्रव्य लेश्या से अधिक महत्व भाव लेश्या का है
द्रव्य लेश्या मोक्ष जाने में बाधक नहीं होती
शुभ भाव लेश्या के परिणाम मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं
शुभ लेश्याएँ के लिए हमें दया धर्म के साथ, विवेकपूर्वक जीवन यापन करना चाहिए
और भक्ष्य-अभक्ष्य, हित-अहित आदि का विचार करना चाहिए
सूत्र तेईस प्राग्ग्रैवेयकेभ्यः कल्पाः से हमने जाना कि कल्प की व्यवस्था ग्रैवेयकों से पहले तक ही है
वैमानिक देवों में पहले से सोलहवें स्वर्ग को कल्प और वहाँ के देवों को कल्पवासी कहते हैं
इसके आगे ग्रैवेयक आदि कल्पातीत होते हैं
दो कल्पों का जोड़ा कल्प-युगल कहलाता है
जैसे सौधर्म-ऐशान, सानत्कुमार-माहेन्द्र