श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 36
सूत्र - 39
सूत्र - 39
दाता के सात गुण। पात्र में विशेषता।
विधि-द्रव्य-दातृ-पात्र-विशेषात्तद्विशेषः ॥7.39॥
07th, Feb 2024
Vinod Jain
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दाता के कितने गुण होते हैं?
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दान को विशेष बनाने वाले कारणों में विधि विशेष और द्रव्य विशेष को जानकर
हमने दाता विशेष को जाना
हर कोई दाता नहीं होता
उसमें सात गुण होने चाहिए
जिससे वह perfect donor बनेगा
और उसे दान का पूरा पुण्य मिलेगा
पहला गुण है श्रद्धा
हमें दान की प्रक्रिया और पात्र को श्रद्धा की आँखों से देखना चाहिए
इसके बिना हमें पात्र समझ नहीं आएगा
हम साधु और भिखारी में अंतर नहीं कर पायेंगे
अट्ठाईस मूलगुण धारी, रत्नत्रय की निधि, साधू परमेष्ठी का घर में प्रविष्ट होना
हमारे लिए सबसे बड़ा सौभाग्य होता है
दूसरे गुण में दाता के अंदर भक्तिभाव होना चाहिए
अगर श्रद्धा होगी तो भक्ति भी आएगी
मुनि श्री ने बताया कि घरों में अलग-अलग attitude के लोग होते हैं
जैसे अन्य मान्यता वाले या मन में मुनि से ग्लानि रखने वाले लोग
दूसरों के दबाव में वे पड़गाहन करके मुनि महाराज को घर तो ले जाते हैं
लेकिन भक्ति की कमी से पूजन आदि के समय अलग हो जाते हैं
इस तरह बिना भक्ति के आहार देने से, आहार की महत्ता समझ नहीं आती
आहार का समय काटना भी कठिन हो जाता है
तीसरा गुण है शक्ति
इसमें यथाशक्ति यानि जितनी शक्ति है
उसके अनुसार अपने अंदर आल्हाद पैदा करते हुए,
द्रव्य विशेष का निर्माण कर स्वयं दान देते हैं
हमने जाना कि दान स्वयं ही करना चाहिए
दूसरों की मदद से किये गए दान का फल नहीं मिलता
हमें अपनी शक्ति को भी नहीं छुपाना चाहिए
और दूसरे की शक्ति को देखना भी नहीं चाहिए
चौथे निर्लोभता गुण में दाता को निर्लोभी होना चाहिए
लोभ के कारण उसके हाथ कांपेगे
वह पूरी वस्तु नहीं देगा
निर्लोभी दाता को ही भाव आएगा कि उसके धन या वस्तु का सदुपयोग हो रहा है
पाँचवा गुण है विज्ञान
यह art of donating है
इसमें दाता के अंदर दान की प्रक्रिया का विशेष ज्ञान होना चाहिए
इससे वह पात्र के अनुकूल
ऋतु के अनुसार, पात्र की उम्र, उसके रोग आदि के अनुसार ही आहार बनाएगा
सबके लिए एक जैसा दान देने पर भी दान में विशेषता नहीं आती है
छटवाँ गुण है दया भाव
इसमें आहार बनाने और कराने की प्रकिया में ध्यान रखना चाहिए कि
जीव जंतु की हिंसा न हो
जिससे अहिंसात्मक भोजन तैयार हो
अनुकंपा भाव के साथ दिया दान ही महत्वपूर्ण है
जैसे-तैसे जीवों की विराधना करके दिया दान शुद्ध दान नहीं कहलाता
अंतिम सातवां गुण है क्षमा भाव
दाता को दान देते समय, किसी भी तरीके की विसंगतियाँ में
क्षमा भाव रखना चाहिए
गुस्सा होना, चिल्लाना आदि नहीं करना चाहिए
दान में अंतिम विशेषता पात्र विशेष से आती है
उत्तम पात्र महाव्रती साधु,
मध्यम पात्र पंचम गुणस्थान वाले देशव्रती श्रावक और
जघन्य पात्र साधर्मी अविरत सम्यग्दृष्टि होते हैं
इन्हें दान देने से क्रमशः उत्तम, मध्यम और जघन्य फल मिलता है
मिथ्यादृष्टि दाता को क्रमशः उत्कृष्ट, मध्यम, और जघन्य भोगभूमि मिलती है
सम्यग्दृष्टि दाता नियम से स्वर्ग के बाद मोक्ष प्राप्त करता है
जैसे दस भव पहले दान देने के फल से
राजा श्रेयांस का जीव, गणधर परमेष्ठी बन कर मोक्ष प्राप्त किया
हमने जाना कि पात्रों के अनुसार, उनकी भक्तियों में भी कमी आ जाती है
जैसे नवधा भक्ति का विधान सिर्फ उत्तम पात्र के लिए है
मध्यम और जघन्य के लिए नहीं
मुनि श्री ने समझाया कि
व्रत विज्ञान नामक इस अध्याय में पुण्य का आस्रव और पाप का संवर दोनों बताये गए हैं
व्रतों पर आधारित इस सप्तम अध्याय के माध्यम से हम
अपने जीवन में धर्म और पुण्य अर्जित करके
अपने आगे का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं