श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 19
सूत्र - 32
सूत्र - 32
सत् और असत् में अन्तर,उन्मतवत्त का मतलब,विपर्यास क्या होता है? पञ्च भूतात्मक कौन से हैं, कारण विपर्यास क्या है? आकाश एक अमूर्त द्रव्य है, भेदाभेद विपर्यास का मतलब, ज्ञान का फल कहाँ होता है? प्रीति उत्पन्न होना क्या है? अभेद रूप फल क्या है? भेद रूप फल, विज्ञान अद्वैतवाद क्या है? अज्ञान का नाश
सदसतोरवि शेषाद् -यदृच्छोप लब्धेरुन्मतवत् ।।1.32।।
Seema Jain
Delhi
WINNER-1
दक्षा कियावत
मन्दसौर
WINNER-2
Kusum Shah
Kalol
WINNER-3
निम्न में से कौनसा ज्ञान मिथ्या नहीं होता?
मति ज्ञान
श्रुत ज्ञान
मनःपर्यय ज्ञान *
अवधि ज्ञान
हमने जाना कि मिथ्यादृष्टि जीव सत् यानि विद्यमान पदार्थ और असत् यानि अविद्यमान पदार्थ के बीच में अन्तर नहीं पहचानता इसलिए उसका ज्ञान विपरीत होता है
यह विपरीतता मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान तीनों में हो सकती है
मिथ्यादृष्टि जहाँ अपनी इच्छा अनुसार चलता है मतलब जैसा मन किया वैसा बता दिया
उसका ज्ञान प्रामाणिक नहीं होता और उसे उन्मत्त्वत कहते हैं
वहीं सम्यग्दृष्टि तीर्थंकरों की वाणी और जिनवाणी के अनुसार ही चलता है
मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के विपर्यासो से ही पदार्थों को जानते हैं - कारण, स्वरुप और भेदाभेद
कारण विपर्यास में कारण के विषय में विपरीतता होती है कि किस कारण से कोई कार्य हुआ है
अगर हमारे कारण ही विपरीत है, तो हम कार्य को विपरीत रूप से मानेंगे
जैसे पृथ्वी, जल आदि के होने में उनके अलग-अलग तरह के परमाणुओं को मानना जो परिवर्तित नहीं होते
या किसी भी कार्य को कर्म के कारण से हुआ है ना मानकर; भगवान् के कारण हुआ है ऐसा मानना
या यह शरीर पञ्च भूतात्मक है जबकि आकाश से कभी शरीर बनता नहीं, वह आकाश में रहता है
या सृष्टि का रचयिता भगवान् है ऐसा मानना
स्वरूप विपर्यास में वस्तु के स्वरूप के विषय में विपरीत मान्यता होती है
जैसे पृथ्वी में केवल काठिन्न गुण है ऐसा मानना जबकि किसी भी पदार्थ में अनेक गुण होते हैं
भेदाभेद विपर्यास में यह निर्णीत नहीं होता कि कारण से कार्य सर्वथा भिन्न होता है या कारण से कार्य में अभेद भी होता है
जैसे द्रव्य से पर्याय, उसके परिणमन उस द्रव्य से भिन्न है कि एकान्त रूप से अभिन्न हैं
या जो ज्ञान हम ले रहे हैं इस ज्ञान का फल क्या है? क्या ज्ञान का फल आप से भिन्न है कि आप से अभिन्न है?
ज्ञान का फल कथंचित अभेद रूप भी है और अथंचित भेद रूप भी
अभेद रूप में ज्ञान का फल ज्ञान में ही होता है
हमें ज्ञान में पहले जिस तत्त्व का निर्णय नहीं था, अब हमें निर्णय हो गया
उस पदार्थ को जानने से हमें उसके प्रति प्रीति उत्पन्न हो गयी
और उस पदार्थ सम्बन्धी जो हमारा अज्ञान था, उसका नाश हो गया
यदि हम अपने ज्ञान को किसी दूसरे को शब्दों के माध्यम से देते हैं तो यह ज्ञान का भेद रूप फल हो गया
क्योंकि ज्ञान अलग है और शब्द अलग है तो कथंचित भेद हो गया
उन शब्दों से जो दूसरों को फल मिल रहा है, उनके अज्ञान का जो नाश हो रहा है वह भी उस ज्ञान का ही फल है
ज्ञान के फल को एकान्त रूप से भेद या अभेद मानना विपर्यास की कोटि में आता है