श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 13
सूत्र -12
सूत्र -12
साता वेदनीय कर्म के आस्रव के भाव। जैन दर्शन में सभी जीवों पर दया करने के लिए बताया है। दान और अनुकम्पा में अंतर। Blood donation दान नहीं help है। व्रत का स्वरूप। भूत दया में और व्रती दया में अंतर।
भूतव्रत्यनु-कम्पा-दान-सराग संयमादियोग:क्षान्ति:शौच-मिति सद्वेद्यस्य।।6.12।।
21st Aug, 2023
Mala Jain
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Indu Jain
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सद्वेद्य क्या है?
साधन
साता वेदनीय कर्म*
सही तरह से जानना
वध का कारण
सूत्र बारह भूतव्रत्यनु-कम्पा-दान-सराग संयमादियोग:क्षान्ति:शौच-मिति सद्वेद्यस्य में हमने साता वेदनीय कर्म के आस्रव के भावों को जाना
यह कर्म जीव को अनुकुलताएँ प्रदान करता है
इससे आत्मा के परिणामों में सुख रहता है
और सुख की सामग्री भी मिलती हैं
इसका पहला कारण है भूत अनुकम्पा
संसार में सामान्य प्राणी जो शरीर को ही सब कुछ मानते हैं भूत कहते हैं
अन्य दर्शन में भी शरीर पंच-भूतात्मक कहा गया है
इन भूत (जीवों) के प्रति अनुकम्पा का, दया का भाव करने से साता वेदनीय कर्म का आस्रव होता है
अनुकम्पा में हमारा हृदय करुणा से भीग जाता है
दूसरे की पीड़ा को हम अपनी ही पीड़ा मानते हैं
और उसे दूर करने के लिए
उसका दुःख दूर करने प्रयास करते हैं
जैन दर्शन में सब जीवों पर अनुकम्पा करने के लिए कहा गया है
आहारादि दान की अपेक्षा मुनियों के लिए नहीं कहा
संसार के सभी दीन-दुःखी जीवों पर, गरीबों पर, भूख, प्यास, चिंताएँ, रोग आदि से व्याकुलित जीवों आदि सभी पर करने को कहा गया है
यही दान और अनुकम्पा का अंतर है
भूत अनुकम्पा में सभी सामान्य जीवों के प्रति दया का भाव होता है
यह शास्त्रों में विधेय है
इसमें धन, स्थानादि देकर हम उसका दुःख दूर करने का प्रयास करते हैं
यह दान नहीं है, करुणा है
इस भावना से हमारा मन कम्पित हो जाता है
और हम दूसरे का दुःख दूर किए बिना सुख से नहीं रह पाते
मुनि श्री ने समझाया कि Blood donation, kidney donation, after death body donation आदि चीजें में donation शब्द लगाना गलत है
यह अनुकम्पा का भाव है
दान नहीं है
हम दूसरे की अहमियत, अपनी सामर्थ्य और अनुकूलता देखकर सहायता करते हैं
यह एक help है जो हम mercy, compassion के भाव में करते हैं
कि वह जीवित रहे
सूत्र के अनुसार जैन दर्शन में दान और दया अलग-अलग चीजें हैं
इसलिए हमने अपने mind में सही चीज रखनी है
चाहे दूसरा उसका दर्जा कम करने की कोशिश ही क्यों न करे
भूतव्रत्यनुकम्पा अर्थात्
भूत्यानुकम्पा यानि भूतों के प्रति
और व्रत्यनुकम्पा यानि व्रतियों - देशव्रती और महाव्रती के प्रति
अनुकम्पा का भाव रखना
यदि उन्हें कुछ जरूरत है, उनकी कोई समस्या है, दुःख है, साधना में बाधा है
तो दया भाव से उनकी सहायता करना
यह भूत अनुकम्पा से विशिष्ट होती है
महाव्रतियों के रोग, व्याधि को, उनके ऊपर आए उपसर्ग को
दूर करना अनुकम्पा में आता है
वैसे तो उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है
और उन्हें किसी सहायता की जरूरत नहीं है
लेकिन दया भाव के साथ देखें तो उनकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है
यह व्रती अनुकम्पा है
जिन देशव्रतियों को व्रत पालन में
पारिवारिक आदि स्थितियों के कारण से किसी प्रकार की सहायता चाहिए
उनकी सहायता करना भी व्रती अनुकम्पा है
हमने जाना कि भूत दया और व्रती दया के object अलग-अलग हैं
भूत अनुकम्पा में वह दीन हीनता में चिल्लाता है
और हम इसलिए दया करते हैं
कि उसके ऊपर कोई नहीं है
लेकिन व्रती कभी दीन-हीन नहीं होते
वे किसी की सहायता नहीं चाहते
बाधाएँ तो वह सहन कर निर्जरा करते हैं
हम स्वयं ही समझकर उनकी सहायता करते हैं
अगर हम उनकी बाधा दूर करते हैं
तो उनके निमित्त से
हमें पुण्य आस्रव होता है
हमने जाना कि भूत दया से विशिष्ट पुण्य व्रती दया से आता है
इनमें सामान्य और विशेष का अन्तर है
जैसे एक सामान्य नागरिक और प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति की value अलग-अलग है
हम जिस तरह के व्यक्ति के जुड़ते हैं
पुण्य आस्रव भी उसी quality का होता है