श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10
सूत्र -10
सूत्र -10
प्रदोष भाव यानि द्वेष भाव। द्वेष भाव के कारण से उत्पन्न होने वाला मौन भी कर्म बंध का कारण है। द्वेष भाव को हम प्रशंसा में बदले। ज्ञान को बनाए रखने का प्रकरण। दर्शनावरण कर्म के बंध का कारण। निह्नव भाव से बचें।
11th Aug, 2023
अनीता जैन
कोसी
WINNER-1
Shalini Jain
Ballabgarh Faridabad
WINNER-2
Manisha Jain
Narsinghpur
WINNER-3
किसी के ज्ञान की प्रशंसा सुनकर मन में ईर्ष्यावश या द्वेषवश चुप्पी साध लेने से कौनसे कर्म का बंध होता है?
दर्शनावरण
ज्ञानावरण*
वेदनीय
अंतराय
हमने आस्रव तत्व के विवेचन में कर्मों के आस्रव के कारणों को जाना
सूत्र दस तत्प्रदोष-निह्नव-मात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञान-दर्शना-वरणयो: में हमने
आत्मा के ज्ञाता दृष्टा स्वभाव को आवृत करने वाले
ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मों का आस्रव करने वाले भाव जाने
पहला भाव है प्रदोष यानि द्वेष भाव
इसमें सम्यग्ज्ञानी के ज्ञान को देखकर द्वेष के भाव सहजता से उत्पन्न होते हैं
हम मन ही मन कुढ़ते हैं और चुप्पी साध लेते हैं
उनके ज्ञान के प्रति प्रशंसा का भाव न आकर
अनादर का भाव आता है
ऐसा नहीं कि द्वेष से हमेशा ज्ञानावरण कर्म का बंध होगा
चूँकि यहाँ द्वेष का मुख्य कारण ज्ञान है
इसलिए यह मुख्य रूप से ज्ञानावरण कर्म के आस्रव और बंध का कारण है
किसी के अच्छे, सम्यक् व्याख्यान को सुनकर, उसकी प्रशंसा सुनकर
ईर्ष्यावश या घृणावश मौन धारण करने से भी ज्ञानावरण कर्म का बंध होता है
यह लौकिक स्कूल, कॉलेज में और अलौकिक दोनों ज्ञान के क्षेत्रों में व्यापकता के साथ चलता है
आचार्यों के अनुसार चाहे हम किसी को कुछ कहें या न कहें
पर कर्म बंध तो भीतर के भाव से होता है
यह स्थूल भाव, मौन आदि सब पकड़ सकते हैं
ज्ञानावरण कर्म का बंध, भविष्य में हमारे ज्ञान में कमी लाएगा
हम जिस ज्ञान को देख ईष्यालु हो रहे थे, उस ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी
यह पहले बंधे हुए ज्ञानावरण कर्म के उदय के कारण ही होता है कि
कुछ याद नहीं होता
भूल जाते हैं
इसलिए जो अपने ज्ञान को बनाए रखना चाहते हैं
वे पुरुषार्थ कर द्वेष भाव से बचें और उसे प्रशंसा के भाव में बदलें।
दर्शन के विषय में प्रदोष भाव, दर्शनावरण कर्म बंध का कारण होता है
इसमें दूसरे के द्वारा अच्छे से वीतराग जिनेन्द्र देव और गुरु दर्शन करने से, द्वेष भाव उत्पन्न होता है
ऐसा अक्सर घरों में होता है, जब एक सदस्य के ज्यादा दर्शन करने पर
बाकी सदस्य द्वेष भाव धारण करते हैं
वे दर्शनावरण कर्म का बंध कर
भविष्य में खुद भी रोगादि के कारण दर्शन से वंचित रह जाते हैं
प्रदोष के मौन के बाद निह्नव यानि छुपाने का भाव आता है
इसमें आप अपने ज्ञान को दूसरे के पूछने पर भी इसलिए नहीं देते
कि इससे उसे भी ज्ञान मिल जायेगा
और आपकी उपयोगिता नहीं रहेगी
इसमें ज्ञान की सभी चीजें जैसे साधन, प्रदान करने वाले गुरु, शास्त्र आदि आते हैं
जिन्हें ज्ञानावरण कर्म के बंध से बचना है, वे निह्नव से बचें
निह्नव को ज्यादातर लोग सिर्फ कॉपी किताब और गुरु का नाम छुपाना ही समझते हैं
हमने इसके कई practical life के उदाहरण देखे, जैसे
यह जानते हुए भी कि हिंसा पाप है
आप दूसरे को नहीं बताते
क्योंकि उससे वह हिंसा छोड़ देगा
और उससे जो आपको व्यापार आदि में सहयोग हो रहा था
वो नहीं होगा
पत्नी जो पति के गलत ढंग से अर्जित पैसे से standard से घर चला रही है
वो कहीं इसे छोड़ न दे, इस डर से
उसके पूछने पर भी वह उसे नहीं बताती कि
यह पाप है और उसके लिए अशुभ आयु के बंध का कारण बनेगा
बच्चे के अभक्ष्य चीज खाने के बारे में पूछने पर
इस डर से कि यदि ये नहीं खायेगा, तो मैं भी नहीं खा पाऊँगा
उससे सच छुपाते हैं
समझदार बच्चे यदि दूसरों को देखकर पटाखा नहीं चलायें
तो चूँकि हमें पटाखे चलाने हैं
हम उनसे छुपाते है कि पटाखे हिंसा का कारण हैं
और उन्हें इसके लिए प्रेरित करते हैं
अपना स्वार्थ छुपा होने के कारण, हम सब इस तरह ज्ञान का निह्नव करते हैं