श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 31
सूत्र - 14,15,16,17
सूत्र - 14,15,16,17
चींटी, मच्छर आदि सब की अपनी अलग अनक्षरी भाषा है l अपर्याप्त जीव के पास में मन,वचन और श्वासोच्छ्वास प्राण नहीं होते है l अपर्याप्तक जीव में ये तीन प्राण छोड़कर बाकि कर्मोदय के अनुसार होंगे l एकेन्द्रिय के अपर्याप्तक और विग्रह गति में इन्द्रिय ,काय और आयु प्राण ही होंगे l कर्म उदय के साथ-साथ पर्याप्तियाँ बनती जाती हैं l पाँच इन्द्रियों के विषय l अन्य मतों में कर्म इन्द्रियों को भी जोड़ते हैं l जैन मत में ज्ञान इन्द्रियाँ कही हैं l हर एक इन्द्रिय के दो-दो भेद हैंl द्रव्य इन्द्रिय का स्वरूप l इन्द्रियों की भीतरी रचना आत्मा से शुरु होती है l
'द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः'।l१४ll
'पंचेन्द्रियाणि'।l१५।l
'द्विन्द्रियाणि' इन्द्रियाँ' ॥१६॥
'निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्'।l१७।l
Madhuri Sarodaya Jain
Nagpur
WIINNER- 1
Chelna Jain
Hazaribag
WINNER-2
प्रभा जैन
घुवारा
WINNER-3
अपर्याप्तक असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के निम्न में से कौनसा प्राण होगा?
मनबल प्राण
वचनबल प्राण
कायबल प्राण *
श्वासोच्छवास प्राण
हमने जाना कि रसना इन्द्रिय के दो काम होते हैं - चखना और बोलना
अतः दो इन्द्रिय जीव में वक्तृत्व शक्ति यानि बोलने की शक्ति आ जाती है
चींटी, मच्छर आदि दो से पंचेन्द्रिय असंज्ञी जीवों की भाषा अनक्षरी होती है
और यह हमारी अक्षरी भाषा से भिन्न है
हमने जाना कि पर्याप्ति और प्राण होते हैं
पर्याप्ति पूर्ण होने के अन्तर-अन्तर्मुहूर्त के बाद की दशा में जिस कर्म का उदय होता है उसी के अनुसार प्राणों की उत्पत्ति होती है
दोनों ही निर्वृत्य अपर्याप्तक जीव और लब्धि अपर्याप्तक जीव की अपर्याप्त दशा में मनबल, वचनबल और श्वासोच्छवास प्राण नहीं होते
क्योंकि पर्याप्तियाँ पूर्ण होने पर इन कर्मों का उदय, क्षयोपशम होता है जिससे उस प्राण की संज्ञा मिलती है
जैसे पर्याप्ति पूर्ण होने पर और श्वासोच्छवास नाम कर्म के उदय होने पर श्वासोच्छवास प्राण कहलाएगा
पर्याप्तक जीव में ये तीन प्राण शुरू हो जाएँगे
अपर्याप्तक जीव एक भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं कर पाता
अतः अपर्याप्तक जीव में शेष प्राण कर्मोदय अनुसार होंगे
पंचेन्द्रिय में सात
चार इन्द्रिय में छः
तीन इन्द्रिय में पाँच,
दो इन्द्रिय में चार और
एक इन्द्रिय में तीन ही प्राण होते हैं
जो एक पर्याय से दूसरे पर्याय को ग्रहण करने के बीच में जीव का आकाश में गमन होता है उसे विग्रहगति कहते हैं
जीव यहाँ भी अपर्याप्त दशा में होता है
और जन्म लेने के बाद अन्तर्मुहूर्त तक अपर्याप्त रहता है
सूत्र 15 से हमने जाना कि स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोतृ पाँच इन्द्रियाँ होती हैं
उपयोग लक्षण वाला आत्मा इन इन्द्रियों के माध्यम से पाँच प्रकार के पदार्थों को जानने में अपना उपयोग लगाता है
अतः इन्द्रियों का ये विभाजन उपयोग और ज्ञान की अपेक्षा से है
इसलिए इन्हें ज्ञान इन्द्रिय भी कहते हैं
अन्य मतों में कर्म इन्द्रियों को जैसे बोलना और चलना को भी इसमें जोड़ देते हैं
सूत्र 16 में हमने जाना द्रव्य इन्द्रिय और भाव इन्द्रिय के भेद से पांच इन्द्रिय के कुल 10 भेद हो जाते हैं
सूत्र 17 में हमने समझा कि निर्वृत्ति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहलाती हैं
द्रव्य का अर्थ है जो पुद्गल द्रव्य से सम्बन्ध रखे, पुद्गल द्रव्य से जिनकी संरचना बनती हुई दिखाई दे
यह रचना भी निर्वृत्ति रूप और उपकरण रूप होती है
अभ्यन्तर और बाह्य के प्रभेद से यह चार प्रकार की होती है
अभ्यन्तर निर्वृत्ति
बाह्य निर्वृत्ति
अभ्यन्तर उपकरण और
बाह्य उपकरण