श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12
सूत्र - 12
Description
संवेग और वैराग्य भाव का विस्तार से वर्णन ।जगत के स्वभाव को जान कर संवेग भाव आना संसार में आनंदित होने का मतलब ।संवेग और वैराग्य मोक्षमार्ग के लिए मन के धन है ।।। ।।।।।
Sutra
जगत्काय-स्वभावौ वा संवेग वैराग्यार्थम् ॥7.12॥
Watch Class 12
WINNERS Day 12
08th, Dec 2023
Reshma Jain
Udupi
WINNER-1
प्रतिभा आवटी
आष्टा
WINNER-2
Anju jain
Udaipur keshav Nagar
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
संसार से थोड़ा डरना क्या होता है?
संवेग *
वैराग्य
संशय
विभ्रम
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र बारह जगत्काय-स्वभावौ वा संवेग वैराग्यार्थम् में हमने जाना कि व्रती के लिए सबसे जरूरी है
अपने संवेग और वैराग्य को बढ़ाना
इससे व्रतों के दोष भी दूर हो जाते हैं
और लंबे समय तक उनके पालन में आनंद और उत्साह रहता है
संवेग मतलब संसार से थोड़ा सा डरो
जगत के स्वभाव को देखो
जगत में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है
जिसको कभी कोई पीड़ा, दुःख, रोग न हुआ हो
मान मलिन न हुआ हो?
जिसके घर में कोई मरा न हो?
तीन लोक में जीव ही जीव भरे हुए हैं
जो अपनी-अपनी पर्यायों में कहीं न कहीं उलझे हुए हैं
पूरे संसार को एक साथ देखकर हमें लगेगा कि इस संसार में हमारा अस्तित्व कहाँ हैं?
जिन चीजों को लेकर हम अंदर से परेशान रहते हैं
उनका हमारे अस्तित्व से कोई लेना-देना ही नहीं है
संसार में बस जीवन और मृत्यु, ये दो छोर हैं
इन्हीं के बीच में सभी जीवों का पूरा संसार चल रहा है
हमें सोचना चाहिए कि मृत्यु के बाद तो शरीर मिट जाता है
फिर आत्मा की कोई पहचान नहीं रहती
किस आत्मा ने कहाँ, क्या किया?
कुछ भी नहीं बचता
जैसे पटाखा फूटने पर, उसके अंदर की light, बारूद; सब blast हो जाता है
यही हमारे साथ होना है
तीन सौ तैंतालीस घन राजू प्रमाण इस लोक में
पता नहीं आत्मा कहाँ, किस पर्याय में चली जाएगी?
पिछली पर्याय का कुछ अस्तित्व ही नहीं रहता है
हमें जगत के स्वभाव का चिंतन करके संवेग भाव आना चाहिए
कि इस संसार में, मृत्यु के उपरांत मेरी आत्मा कहाँ जन्म लेगी?
यदि संज्ञी पंचेन्द्रियपना मिला तो शायद कुछ भान रहे
नहीं तो, यह भी भान नहीं रहेगा कि
हम कहाँ पड़े हैं?
इसलिए हमें इसकी चिंता होनी चाहिए
कि मैं मरने के बाद कहाँ जाऊँगा?
हमें बाकी चिंताएँ इतनी नहीं बढ़ानी चाहिए
कि जो पंचेन्द्रिय पर्याय मिली है, वह ही छूट जाए
जिस चीज को हम यह मेरा है कहते हैं
मरने के बाद वह किसका है?
तीन लोक न सही, हमें दिखाई देने वाली दुनिया भी कम नहीं है
उसी में कितने मनुष्य, कीट-पतंगे, चींटी-चीटें, पशु-पक्षी आदि हैं
हम इनमें कहाँ जाकर के जन्म लेंगे
यही विचरने से संसार से संवेग आ जाएगा
कहीं मैं फिर से संसार में न उलझ जाऊँ!
निगोद, नरकादि के अंधकारों में फिर न चला जाऊँ!
संसार से डरा व्यक्ति
सत्कर्म में प्रवृत्ति करेगा
व्रतों का सही पालन कर सकेगा
हमने जाना कि मोक्ष की प्राप्ति तो तभी होगी जब संसार से भय होगा
हम संसार का राग छोड़े बिना अपने को भुलावे में रखकर
संसार में ही आनंदित रहना चाहते हैं
संसार में आनंदित होना और संसार में रह करके आनंदित होना;
अलग-अलग बातें हैं
संसार में आनंदित होने वालों के लिए मोक्ष का आनंद नहीं होता
इसलिए हमें संसार के स्वरूप का चिंतन करना चाहिए
ताकि संसार से एक दूरी अपने आप बन जाए
हमने जाना कि शरीर से राग दूर करने से हमारे अंदर वैराग्य बढ़ेगा
और आत्मा शुद्ध होगी
संसार में राग से तो आत्मा और मन दोनों अशुद्ध होते हैं
जगत के स्वभाव के चिंतन से संवेग भाव
और काय के स्वभाव के चिंतन से वैराग्य भाव उत्पन्न होते हैं
दोनों ही संसार से मुक्ति और व्रत में स्थिरता के लिए ज़रूरी हैं
संवेग और वैराग्य मोक्षमार्ग के लिए मन के धन हैं
इनके बाद मन संसार की किसी चीज में नहीं लगता
और इनके बढ़ने से मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति बढ़ती जाती है
फिर corona आदि महामारियाँ से भी कुछ चिंता नहीं होती
इसे जगत का स्वभाव समझकर
व्यक्ति इनसे अपने आप को विरक्त रखता है