श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 47
सूत्र - 34,35
सूत्र - 34,35
रौद्र ध्यान, सबसे अप्रशस्त ध्यान। अप्रशस्त रौद्र ध्यान के कारण तथा भेद। रौद्र ध्यान, पाँचों पापों का कारण। हिंसा आदि पापों में आनन्द मानना, रौद्र ध्यान। समझे, रौद्र ध्यान की व्याप्ति को। हमारी सेवाएँ कहीं रौद्र ध्यान का निमित्त तो नहीं बन रही? रहे सजग। जाने, हिंसानंद की परिभाषा और उसकी व्याप्ति। जैन समाज की निरन्तर बढ़ रही है, समस्याएँ। धर्म का सही ज्ञान ही बचाएगा हमें रौद्र ध्यान से। काम के quality नुसार classification महत्व। भगवान आदिनाथ स्वामी प्रणीत, आजीविका परक वर्ण व्यवस्था का महत्व। आजीविका के साधन और हमारे भाव, हमारे परिणामों के साथ उसका सम्बन्ध। असावधानी भी बनेगा कर्म बंध का कारण। अपनी मर्यादा की बोध, बनेगा धर्म ध्यान में सहयोगी।
तदविरत -देशविरत-प्रमत्त-संयतानाम्॥9.34॥
हिंसानृत-स्तेय-विषय-संरक्षणेभ्यो रौद्र-मविरत-देशविरतयोः॥9.35॥
06, Jan 2025
WINNER-1
WINNER-2
WINNER-3
सबसे ज्यादा अप्रशस्त ध्यान कौनसा होता है?
आर्त ध्यान
रौद्र ध्यान*
धर्म्य ध्यान
शुक्ल ध्यान
ध्यान के प्रकरण में आज हमने रौद्र ध्यान को जाना
जो सबसे ज्यादा अप्रशस्त ध्यान होता है।
इसमें अशुभ विचार होते हैं
जिनसे लेश्याएँ बिगड़ती हैं
और अशुभ कर्म बंधते हैं।
सूत्र पैंतीस हिंसानृत-स्तेय-विषय-संरक्षणेभ्यो रौद्र-मविरत-देशविरतयोः में हमने रौद्रध्यान के चार भेद जाने-
हिंसा,
अनृत यानि झूठ,
स्तेय यानि चोरी,
और विषय संरक्षण।
इनमें आनन्द मानने से,
क्रूरता का भाव रखने से,
रौद्र ध्यान होता है।
पाँच पापों में कुशील और परिग्रह - दोनों ‘विषय संरक्षण’ में ही आ जाते हैं।
क्योंकि दोनों में ही विषयों का सेवन किया जाता है।
हमारे इन्द्रियों के सुख नष्ट न हो जाएँ,
हमसे दूर न हो जाएँ
यह चिन्ता हमें विषय संरक्षण रौद्र ध्यान कराती है।
हिंसा देखकर आनन्द मनाना,
हिंसा उपयोगी सामग्री को इकट्ठा करने में मदद करना,
हिंसा के कार्यों में सहयोग देना
‘हिंसानंद’ रौद्रध्यान में आता है।
सरकार मछली पालन जैसे हिंसा के कई व्यापार चलाती है
जिसमें मछलियां पैदा करके, उन्हें बेचा जाता है।
bank में ऐसी ही job करना जिसमें
इनका audit रखना हो,
इन्हीं clients को loan देना हो,
business consultation देना हो
उससे भी हिंसा की अनुमोदना होती है।
जानवरों को मारकर बनाए गए products की sale करके आजीविका चलाना,
या हिंसक cosmetic items देखकर सोचना कि
यह बहुत सुन्दर है
यह सब हिंसानन्द रौद्रध्यान होता है।
आज जैनियों के लिए व्यापारिक समस्याएँ बढ़ रही हैं
क्योंकि non-veg चीज़ों को भी veg के नाम से बाजार में लाया जा रहा है
जैसे अहिंसात्मक मटन!
इन सबका व्यापार करने से रौद्र ध्यान होता है।
मुनि श्री ने एक जैन बेटी के बारे में बताया
जो foreign में job करती थी
वहाँ packet में पूरी तरह से बन्द meat आता था
बाहर से कुछ नहीं दिखता था,
उसे हाथ भी नहीं लगाना होता था
लेकिन उसे sell करने के लिए वहाँ बैठना होता था।
यह भी निम्न कार्य होता है।
उसे इसका पश्चाताप था
और उसने दूसरी job मिलते ही वह job छोड़ दी।
सिर्फ job करना important नहीं होता
हमें धर्म की knowledge होनी चाहिए
किन कामों में हिंसा है?
अच्छे लोग कौन से व्यापार करते हैं?
कौन सा व्यापार निम्न quality के लोग करते हैं?
हमें यह classification की knowledge होनी चाहिए।
सब human beings होते हुए भी सबका behaviour,
सबका character,
एक सा नहीं होता।
आजीविका के साधनों के आधार पर ही
भगवान आदिनाथ ने तीन प्रकार के वर्णों की स्थापना की थी।
हिंदू सभ्यता में, मनुस्मृति में भी चार वर्ण मान्य हैं।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
जो काम दूसरे खुद न कर पाएं, वो करना
चमड़ा काटना,
आदि शूद्रों के काम होते हैं।
“human beings सब बराबर हैं,
कोई भी कुछ भी कर सकता है”,
ऐसा सोचकर यदि हम classification ही न करें
और चमड़ा, meat जैसे व्यापार करने लग जायें
तो हमारे अन्दर अहिंसा के भाव नहीं बचेंगे।
और हम जैन कहलाने के लायक नहीं रहेंगे।
यदि हमने ध्यान नहीं दिया
कि हम क्या काम कर रहे हैं?
और कुछ भी करते जायें
तो हमें यह ‘हिंसानंद’ रौद्र ध्यान नरक गति का बंध करा देगा।
हमें लोगों से अपना व्यवहार limit में रखना चाहिए
यदि हम हर किसी से contact बनाते रहे
तो हमारा धर्म ही नहीं बचेगा।
क्योंकि अच्छी और बुरी चीज़ें mix होने पर
नुकसान अच्छी चीज का ही होता है।
Classification तो हर जगह होती है
जैसे pure water अलग होता है
और gutter का water अलग।
हम pure water पीते हैं, gutter का water नहीं।
सब human हैं बस इसलिए समान हैं
इसके अलावा हमें अपनी अच्छाइयाँ बचानी हैं तो
Classification का attitude रखना होगा।