श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 03
सूत्र - 01
Description
जीव अजीव सभी द्रव्यों की गति को mobility कहा है। आकाश द्रव्य की विशेषता। आचार्यों ने पुद्गल मतलब पूरन-गलन बताया है। अजीव और काया को इस सूत्र से स्पष्ट समझा जा सकता है।
Sutra
अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः।।१।।
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WINNERS
Day 03
22st Mar, 2023
श्री रवि चंद्र जैन,
बाराबंकी
WINNER-1
Rishabh Jain
Shahdara Delhi
WINNER-2
Mrs Manju Jain
Nagpur
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
आकाश द्रव्य कितने प्रदेशों को धारण करने वाला है?
एक (1)
संख्यात
असंख्यात
अनन्त*
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने पदार्थों के गति और रुकने में सहायक धर्म और अधर्म द्रव्य के बारे में जाना
जैसे train पटरी की सहायता से दौड़ती है
और पटरी के अभाव से रुकती है
मानो कोई द्रव्य जैसे परमाणु या जीव यदि लोक के ऊपर तक गति से गया
तो वहाँ पर अधर्म द्रव्य न होने पर वह क्या करेगा?
धर्म द्रव्य भी ऊपर तक और आगे न जाए इसे रोकने वाला अधर्म द्रव्य ही है
जहाँ-जहाँ धर्म द्रव्य है, वहाँ-वहाँ उसी same point पर अधर्म द्रव्य भी है
जो द्रव्य जहाँ तक गया, धर्म द्रव्य की सहायता से वहाँ तक गया
और जहाँ रुक गया, अधर्म द्रव्य की सहायता से वहाँ रुक गया
लोक के बाहर कोई भी द्रव्य नहीं जा सकता क्योंकि बाहर धर्म द्रव्य नहीं है
और लोक का आकार अधर्म द्रव्य के कारण है
क्योंकि यह स्थिति को बनाए रखता है
जीव अजीव सभी द्रव्यों की गति को mobility भी कहते हैं
यूँ तो यह दूर संचार में प्रयोग होने वाले mobile से अलग है मगर उससे कुछ समानतायें हैं
जैसे mobile से आप mobility तो कर सकते हैं
लेकिन सिर्फ वहीं तक जहाँ तक signal आते हैं
इससे mobility के लिए दूसरे सहायक द्रव्य का अनुमान होता है
जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है क्योंकि वह mobile है
अगर वह immobile होगा तो कहीं नहीं जा पाएगा
इसी mobility में धर्म द्रव्य सहायक है
और अधर्म द्रव्य इसे रोकने सहायक है
इनकी range चौदह राजू ऊँचे लोक तक सीमित है
यह धर्म-अधर्म द्रव्य जीवों और पुद्गलों के लिए बहुत सहायक है
ये अदृश्य हैं, अजीव हैं, कायारूप हैं और पूरे लोक में एक साथ उसके हर point पर फैले हुए हैं
हमने जाना आकाश द्रव्य हर द्रव्य को रहने के लिए space देता है या अवगाहन देता है
अवगाहन यानि अपने में समाहित कर लेना, अवगाहित कर लेना
जिसमें पूरन-गलन होता रहे उसे पुद्गल कहते हैं
पुद् मतलब पूरन और गल मतलब गलन
पुद्गल कभी पुर जाता है कभी गल जाता है
किसी चीज के मिलाने से उसकी पूर्ति हो जाती है
तोड़ने पर या विपरीत प्रकृति के चीज डालने पर वह गल गया
जैसे कपड़े को अच्छी ढंग से साफ करके press करने से वह पूरन दिखता है
और उसे मैला-कुचेला करके, पीट-पाट रखने से वह गला दिखता है
सब पदार्थों में पुद्गल द्रव्य ही दिखाई देता है
ये सब द्रव्यों में सबसे ज्यादा हैं
इसमें स्पर्श, रस, गंध वाली चीजें, रूप-रंग वाली चीजें
सभी शरीर -
चाहे वो हमारा हो,
जल, वनस्पति आदि स्थावरों का हो,
देवों या विग्रह गति आदि का हो
प्रकृति में लकड़ी, plastic, कपड़े, कागज आदि सभी आते हैं
हमने जाना कि सूत्र में अजीव और काया वाले द्रव्य केवल ये चार ही होते हैं - धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल
काया का अर्थं शरीर नहीं है
शरीर की रचना के समान ही जिसकी रचना हो - ‘काया इव काया’ - वह काया है
परमार्थ से तो काया पुद्गल द्रव्य की ही बनती है
चूँकि अन्य द्रव्य अनेक द्रव्यों के संयोग को प्राप्त नहीं हो रहे हैं
और अपनी संरचना में परिवर्तन नहीं ला रहे हैं
इसलिए उनको काया कहना औपचारिक है