श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 21
सूत्र -20,21
Description
अभिमान की कमी लेश्याओं की विशुद्धि को बताती है। देव गति में उत्पत्ति संबंधी नियम। देव मरण कर एकेन्द्रिय बन सकता है। मात्र भवनत्रिक एवं सौधर्म-ईशान स्वर्ग के देव ही एकेन्द्रिय बन सकते है। बारहवें स्वर्ग तक के देव मरण कर तिर्यञ्च बन सकते है। सोलहवें स्वर्ग से ऊपर के स्वर्गों में उत्पत्ति के लिए दिगम्बरत्व(मुनि मुद्रा) अनिवार्य है। सोलहवें स्वर्ग के ऊपर इनकी👇 गति संभव नहीं। जिनलिङ्ग का महत्व। अन्य लिङ्गियों में किनकी गति, कहाँ तक? वर्तमान में ऊपर के स्वर्गों में उत्पत्ति नहीं। लेश्याएँ, गुणस्थान और संहनन सभी के तालमेल होने पर ही देव गति में उन-उन स्थानों पर उत्पत्ति संभव है। किस संहनन का जीव मरण कर कौन से स्वर्ग तक जा सकता है?
Sutra
स्थिति-प्रभाव-सुख-द्युति-लेश्याविशुद्धीन्द्रियावधि-विषयतोऽधिकाः॥20॥
गति-शरीर-परिग्रहाभिमानतो हीनाः॥21॥
Watch Class 21
WINNERS
Day 21
18th Jan, 2023
Nirmala Jain Sanghi
Jaipur
WINNER-1
Sadhana jain
Khurai
WINNER-2
दीपीका जैन
Gurugram
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
देव मरण करके निम्न में से क्या बन सकता है?
जलकायिक जीव*
साधारण वनस्पति
अपर्याप्तक जीव
सूक्ष्म जीव
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि ऊपर-ऊपर के देवों में परिग्रह की मूर्छा और अभिमान हीन-हीन होते जाते हैं
अभिमान की कमी लेश्याओं की विशुद्धि से होती है
और ज्यादा अभिमान कहीं न कहीं अन्दर के दुःख का कारण होता है
हमने देव गति में उत्पत्ति के नियमों को भी समझा
यहाँ मनुष्य और तिर्यंच की उत्पत्ति होती है
एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों की नहीं
असंज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यंच केवल भवनवासी और व्यन्तर देव बन सकते हैं
चौथे गुणस्थान वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक तिर्यंच बारहवें स्वर्ग तक
और पाँचवें गुणस्थान वाले सोलहवें स्वर्ग तक जा सकते हैं
जैसे यहाँ के श्रावक, श्राविकाएँ
भवनत्रिक में उत्पन्न होने वाले जीव पहले-दूसरे गुणस्थान के होते हैं
लेकिन पहले-दूसरे गुणस्थान के जीव ऊपर वाले देव भी बन सकते हैं
भोगभूमि के मिथ्यादृष्टि जीव भवनत्रिक में
और सम्यग्दृष्टि जीव पहले-दूसरे स्वर्ग के देव बनते हैं
वे इससे ऊपर नहीं जाते
कर्मभूमि के पहले-दूसरे गुणस्थान वाले
मनुष्य भवनत्रिक से लेकर नौवें ग्रैवेयक तक जा सकते हैं
मिथ्यादृष्टि तिर्यंच सोलहवें स्वर्ग से ऊपर नहीं जा सकते
हमने जाना कि देव कहाँ-कहाँ उत्पन्न हो सकते हैं
स्थावरों में वे सिर्फ पृथ्वीकायिक, जलकायिक या प्रत्येक वनस्पति ही बनेंगे
वे साधारण वनस्पति, अग्निकायिक, वायुकायिक, अपर्याप्तक, सूक्ष्म जीव और साधारण शरीर वाले नहीं होंगे
मात्र भवनत्रिक एवं सौधर्म-ईशान स्वर्ग के देव ही एकेन्द्रिय बन सकते हैं
बारहवें स्वर्ग तक के देव मरण कर तिर्यञ्च बन सकते हैं
अन्य मत वाले या अन्य लिङ्गी जीव तपस्या करके बारहवें स्वर्ग तक जा सकते हैं
कुछ आचार्यों ने के अनुसार वे सोलहवें स्वर्ग तक जा सकते हैं
ग्रैवेयक, अनुदिश और अनुत्तर विमानों में जीव नियम से दिगम्बरत्व मुद्रा यानि जिनलिङ्ग से ही जा सकता है
अन्य लिङ्गी कितनानी भी तपस्या करनेले वहाँ नहीं पहुँच सकते
अन्य लिङ्गियों में परिव्राजक जिन्हें त्रिदण्डी भी बोला जाता है
ब्रह्म स्वर्ग तक चले जाते हैं
तापसी यानि पञ्चाङ्गी तप करने वाले ज्योतिष देवों तक ही जाते हैं
जैसे पारसनाथ भगवान के नाना महिपाल
हमने जाना कि लेश्याएँ, गुणस्थान और संहनन के तालमेल से ही देव गति में उत्पत्ति संभव है
वर्तमान में सम्यग्दर्शन-मिथ्यादर्शन से ज्यादा अन्तर.. संक्लेश और विशुद्धि से पड़ता है
वज्र ऋषभ नाराच संहनन वाले जीव पंच अनुत्तर विमानों तक
वज्र नाराच संहनन वाले नौ अनुदिश तक
नाराच संहनन वाले नौ ग्रैवेयक तक जा सकते हैं
ये तीनों उत्कृष्ट संहनन वर्तमान में नहीं होते
अर्धनाराच संहनन वाले जीव सोलहवें स्वर्ग तक
कीलक संहनन वाले बारहवें स्वर्ग तक
और असंप्राप्तासृपाटिका संहनन वाले जीव आठवें स्वर्ग तक जा सकते हैं