श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 53
सूत्र -44,45,46,47,48
सूत्र -44,45,46,47,48
शरीर और उनके काययोग l तैजस शरीर का कोई योग नहीं बनता है l उपभोग हर इन्द्रिय से होता है l औदारिक शरीर किसका होता है? व्याकरण का ज्ञान भी करे l औपपादिक जन्म वालों का ही वैक्रियिक शरीर होता है l लब्धि शब्द पहले भी उपयोग हुआ है l लब्धि शब्द पहले भी उपयोग हुआ है l यहाँ लब्धि का मतलब, तप विशेष जिसमें कारण हो l तैजस शरीर के प्रकार और कार्य l तैजस शरीर का रंग शंख के समान धवल रंग का बताया है l जब तक तैजस शरीर है तब तक यह जीवन है l संक्लेश से अशुभ तैजस शरीर निकलता है l जीवों की रक्षा के लिए शुभ तैजस शरीर निकलता है l
निरुपभोगमन्त्यम्।l44।l
गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम्।l45।l
औपपादिकम् वैक्रियिकम्।l46।l
लब्धि प्रत्ययम् च।l47।l
तैजसमपि।।48।।
Pushpa Jain
Haridwar
WIINNER- 1
Usha jain
Banaras
WINNER-2
Sangeeta Jain
Tikamgarh
WINNER-3
कौनसे शरीर का कोई योग नहीं बनता है?
वैक्रियिक शरीर
आहारक शरीर
तैजस शरीर *
कार्मण शरीर
सूत्र चवालीस निरुपभोगमन्त्यम् में हमने जाना कि उपभोग तभी होता है जब इन्द्रिय के साथ में उसका योग भी जुड़ा हो
औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और कार्मण शरीर में योग होता है
तैजस में नहीं
तैजस-शरीर की वर्गणाओं से आत्मा के प्रदेशों में कोई परिस्पन्दन नहीं होता
औदारिक शरीर में औदारिक, औदारिक मिश्र काययोग होगा
वैक्रियक में वैक्रियक, वैक्रियक मिश्र
आहारक में आहारक, आहारक मिश्र काययोग और
और कार्मण शरीर में कार्मण काय योग होता है
कार्मण शरीर उपभोग से रहित होता है
अन्य शरीरों का उपभोग होता है क्योंकि वे शब्द आदि को ग्रहण करते हैं और कोई दूसरा भी शब्द आदि के माध्यम से उनको जान सकता है
हमने जाना कि उपभोग का अर्थ है इन्द्रियों द्वारा इन्द्रियों के विषयों को ग्रहण करना
जैसे- शब्द सुनना, आँखों से देखना, चखना आदि
mobile आदि से प्रवचन को बार-बार सुनना भी शब्दों का उपभोग है
सूत्र पैंतालीस और छियालीस में हमने जाना कि
औदारिक शरीर केवल गर्भ और सम्मूर्छन जन्म वालों का होता है
और वैक्रियिक शरीर औपपादिक जन्म वालों को मिलता है
सूत्र सैंतालीस में हमने समझा कि वैक्रियिक शरीर 'लब्धि प्रत्यय' वाला होता है
लब्धि शब्द कई अर्थों में प्रयोग होता है जैसे पहले अध्याय में पञ्च लब्धियाँ, फिर दूसरे अध्याय में क्षयोपशम लब्धियाँ और क्षायिक लब्धियाँ
यहाँ लब्धि का मतलब है जो तप विशेष के कारण से हो
अर्थात तप करके ऋद्धियों से मनुष्य और त्रियंच भी विक्रिया कर सकते हैं
क्षयोपशम से प्राप्त शरीर से वे पृथक या अपृथक विक्रिया करते हैं
सूत्र अड़तालीस तैजसमपि से हमने जाना तैजस शरीर भी 'लब्धि प्रत्यय' वाला होता है अर्थात तप करने से तैजस-ऋद्धि उत्पन्न होती है
तैजस शरीर दो प्रकार का होता है अनिस्सरणात्मक और निस्सरणात्मक
जो शरीर में निकलता नहीं है और
जो औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीरों को कान्ति देता है उसको अनिस्सरणात्मक तैजस शरीर कहते है
श्री धवल ग्रन्थ की टीका में आचार्य वीरसेन महाराज के अनुसार पेट की अग्नि जो पाचन में काम आती है, वह अनिस्सरणात्मक होती है
तैजस शरीर शरीर के अन्दर गर्मी बनाए रखता है
इसका रंग शंख के समान धवल होता है
इसी के माध्यम से हम पता करते हैं कि आदमी गर्म है और जिन्दा है
असाता-वेदनीय के उदय से यह ऊष्मा बढ़ जाती है तो temperature आ जाता है
शुभ और अशुभ तैजस के भेद से निस्सरणात्मक ऋद्धि दो प्रकार की होती है
ये मुनि महाराज के ही होती हैं
और तप विशेष से प्राप्त होती हैं
संक्लेश से अशुभ तैजस शरीर निकलता है
जैसे द्वीपायन मुनि से निकले अशुभ तैजस शरीर ने पूरी द्वारका को भस्मसात कर, उनको भी नष्ट कर दिया
जीवों की रक्षा के लिए शुभ तैजस शरीर निकलता है
और ये जहाँ आधियाँ, व्याधियाँ, दुर्भिक्ष आदि हैं वहाँ अनुकूल वातावरण पैदा करता है
तैजस ऋद्धि और आहारक ऋद्धि अलग-अलग होती है