श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 17
सूत्र - 13,14
सूत्र - 13,14
आधार-आधेय संबंध किसे कहते हैं?आधार-आधेय संबंध का उदाहरण।Science के अनुसार आधार-आधेय क्या है? युतसिद्ध संबंध और अयुतसिद्ध कौन से होते हैं? युतसिद्ध संबंध के उदहारण। पुद्गल का अवगाह कैसे होता है?
धर्माधर्मयो: कृत्स्ने॥13॥
एक-प्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् ॥14॥
पुष्पा जैन
बंगलौर
WINNER-1
अनुभा जैन
बड़ौत
WINNER-2
Sandesh Jain
Jabalpur
WINNER-3
पानी से भरे घड़े में, पानी क्या है?
अधर
आधार
आधेय*
निराधार
सूत्र बारह में हमने जाना कि आकाश अन्य सभी द्रव्यों के लिए आधार है
और अन्य द्रव्य उसके आधेय
न्याय में इसे आधार-आधेय संबंध कहते हैं
आधार-आधेय संबंध के बिना कोई चीज नहीं रहती है
वह कहीं न कहीं रुकी, टिकी या रखी हुई है
वह उसका आधार हो गया
और चीज उसका आधेय हो गयी
यह संबंध कई प्रकार के होते हैं
एक आधार-आधेय सम्बंध तिल के आधार से तेल से होता है
इसे अधिकरण कहते हैं
और संस्कृत में इसके लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग करते हैं
आकाश और द्रव्यों का सम्बन्ध भी ऐसा ही है
एक आधार-आधेय सम्बन्ध व्यवहार में होता है
जिसमें आधार पहले से होता है और आधेय बाद में आता है
जैसे किसी बर्तन में पानी भरना
या कुर्सी पर बैठना
हमने जाना कि Science के अनुसार लगभग 14.5 billion साल पहले पहला atom create हुआ
उसके 10 billion साल बाद creation की energy दिखाई दी
मनुष्य आदि का अस्तित्व बाद में आया
यह मानना कि आकाश पहले आया
फिर अधर्म आया और उसमें समा गया
फिर पुद्गल और जीव आये
और जीव ने पुद्गल में क्रिया की
और उससे संसार बना
इस तरह आगे-पीछे के साथ चलने वाला creation; logically fit नहीं बैठता
क्योंकि जो है उसको कभी create नहीं किया जाता, उसका existence होता है
मुनिश्री समझाते हैं कि science की सृष्टि के निर्माण की theory अपने-आप में बाधित है
और न्याय पूर्ण ढंग से स्वीकार्य नहीं है
क्योंकि उसमें कार्य का कारण नहीं बताया जाता
इसमें बहुत से प्रश्न निरुत्तर रहते हैं
जैसे द्रव्य कहाँ से लाया?
अगर वह लोकाकाश के बाहर से लाया तो लोकाकाश और अलोकाकाश में अन्तर क्या रह गया?
कौन उसे वहाँ से यहाँ खींचकर लाया?
आदि
इसलिए यह jainism का सिद्धान्त
जिसमें पूर्वापर यानि “ये पहले और यह बाद में”, नहीं होता
scientific है
अबाधित है
हमने जाना कि जैन दर्शन के अनुसार
time gap के साथ कोई चीज अपने आप create नहीं होती
जो चीजें हैं वे स्व-प्रतिष्ठित हैं
और अपने-आप में स्थित हैं
हमने शास्त्रों में बताए गए दो तरह के सम्बन्धों को भी जाना
पहला अयुतसिद्ध सम्बन्ध - जो सम्बन्ध हमेशा beginning less time से self-exist करते हैं
जैसे तिल में तेल
जैसे जब से body है तब से ही उसमें blood, skin, veins और bones हैं
जैसे या आकाश में छह द्रव्य
और दूसरा युतसिद्ध सम्बन्ध - जो सम्बन्ध हम बनाते हैं, करते हैं
जैसे भोजन करना
किसी चीज को एक पात्र से दूसरे पात्र में रखना
विवाह करना आदि
अयुतसिद्ध सम्बन्ध भी दो प्रकार का होता है
एक जो हमेशा रहता है जैसे आकाश में द्रव्य
और एक जो हमें पर्याय में कभी-कभी दिखाई देता है
जैसे मनुष्य की body में blood, bones आदि
शास्त्रीय शब्दों का अर्थ जानकर हम समझ पाते हैं कि आकाश बिना किसी पूर्वापर पना के धर्म और अधर्म द्रव्य को अवगाहन दे रहा है
ये सब बिना किसी before-after के, simultaneously होने वाली चीजें हैं
और इससे हम Jainism की beginningless endless theory के मुख्य points को समझ सकते हैं
यह चीजें अनादि से हैं, अनन्त तक रहती हैं
ये कभी नष्ट नहीं होती
और ना ही इनका creation होता है
सूत्र चौदह और बारह को साथ जोड़कर “लोकाकाशे पुद्गलानाम् अवगाहः” “एक प्रदेशादिषु भाज्य:” हमने जाना कि
पुद्गलों का भी आकाश में अवगाह है
और यह एक प्रदेश आदि के भेद से कई विकल्पों के साथ होता है
अर्थात पुद्गल द्रव्य का अवगाह परमाणु से लेकर के संख्यात प्रदेशी स्कंध, असंख्यात प्रदेशी स्कंध और अनंत प्रदेशी स्कंध तक होता है