श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 03
सूत्र - 02
Description
तत्त्वार्थ सूत्र या मोक्ष शास्त्र? सम्यग्दर्शन, उसकी प्रतीति और उसका मुख्य लक्षण कैसा? वस्तु को जानने के लिए उसकी परिभाषा किस तरह से होनी चाहिए? परिभाषा किन तीन प्रकार के दोषों से रहित होना चहिए? आत्मा का लक्षण कैसा? इस तत्त्वार्थ का भावार्थ क्या? सम्यग्दर्शन की परिभाषाएँ अलग-अलग क्यों?
Sutra
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।l1.2ll
Watch Class 03
WINNERS
Day 03
10th Feb, 2022
आशीष जैन
जयपुर
WINNER-1
Kavana D Rajan
वयनाड
WINNER-2
Babita Jain
लालगोला
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
आत्मा का लक्षण अमूर्त कहना कौनसा दोष है?
1. व्याप्ति दोष
2. अव्याप्ति दोष *
3. अतिव्याप्ति दोष
4. असंभवी दोष
Summary
तत्त्वार्थ सूत्र में गृद्ध पिच्छाचार्य ने प्रारम्भ में मोक्ष मार्ग का वर्णन करते हुए अन्ततः मोक्ष की व्याख्या की है इसलिए इसे मोक्ष शास्त्र भी कहते हैं
आज प्रारम्भ हुए दूसरे सूत्र में सम्यग्दर्शन का लक्षण बताया
“तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यक् दर्शनं”
अर्थात तत्त्वार्थ की सही श्रद्धा करना ही सम्यग्दर्शन है।
इस सूत्र में सम्यग्दर्शन- कार्य या लक्ष्य है; श्रद्धा - लक्ष्य की प्रतीति है और तत्त्वार्थ अधिकरण है
सम्यक् श्रद्धा का अर्थ है समीचीन श्रद्धा या प्रशंसनीय श्रद्धा जो मोक्ष मार्ग के लिए उपयोगी होती है
वस्तु का लक्षण ही उसकी परिभाषा है जो उसके मूलभूत गुणों पर depend करती है और यह किसी भी परिस्थिति में खण्डित नहीं होती
हमने देखा कि किसी वस्तु की सही परिभाषा को समझने के लिए उसे तीन दोषों से रहित होना चाहिए
यह law सभी परिभाषाओं के लिए है चाहे वो physics, chemistry की definition हों या सम्यग्दर्शन की
पहला दोष है अव्याप्ति दोष जिसमें लक्षण लक्ष्य में भी एक देश में व्याप्त है जैसे चितकबरी गाय
व्याप्ति का अर्थ है जो हमेशा लक्ष्य में व्याप्त रहे।
दूसरा दोष है अतिव्याप्ति दोष जिसमें लक्षण लक्ष्य के साथ अलक्ष्य में भी घटित होता है जैसे गाय का लक्षण है सींग होना
तीसरा दोष है असम्भवी दोष जिसमें लक्षण असम्भव हो जैसे गाय का लक्षण है माँ होना
तीनों दोषों को आत्मा के लक्षण से समझने के लिए
अगर केवलज्ञान आत्मा का लक्षण है तो इसमें अव्याप्ति दोष है
अमूर्तपना है तो इसमें अतिव्याप्ति दोष है
और अगर जड़त्व है तो इसमें असम्भव दोष है
वास्तव में आत्मा का लक्षण है - उपयोग जैसे ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग
तत्त्वार्थ सूत्र में सम्यग्दर्शन की परिभाषा तीनों दोषों से रहित है।
तत्त्वार्थ का भावार्थ- भाव से सहित जो पदार्थ है उसकी श्रद्धा का नाम सम्यग्दर्शन है। क्योंकि भाव के बिना पदार्थ नहीं होता, पदार्थ के बिना उसका भाव नहीं होता।
सम्यग्दर्शन को समझने के लिए दो सैद्धान्तिक परिभाषाएँ हैं।
तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार तत्त्वार्थों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन होता है
तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यक दर्शनं
और रत्नकरण श्रावकाचार के अनुसार देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धान सम्यग्दर्शन है
श्रद्धानं परमार्थानां माप्तागं तपोव्रतां
त्रिमूरामूढ़ मष्टांगम् सम्यक् दर्शन मस्मयम्
दोनों ही परिभाषाएं एक दूसरे का पूरक हैं बाकि की जो परिभाषाएँ समयसार में हैं वे आध्यात्मिक हैं।