श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 14
सूत्र - 5
सूत्र - 5
कर्मों की सूक्ष्म व्यवस्थाओं को देखना-जानना केवल सर्वज्ञ के ज्ञान का विषय है l संयमासंयम की परिभाषा l औदयिक भाव बंध का हेतु है और सम्यक्त्व व चारित्र सम्बन्धी क्षयोपशम भाव निर्जरा का कारण है l संयमी के लिए अपने संयम की रक्षा करना सर्वोपरि है l व्रत लेने पर कषाय की परिणति कम होती है? लोग चाहते हैं कि व्रती को बिल्कुल भी गुस्सा न आए!
ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदा: सम्यक्त्व चारित्र-संयमासंयमाश्च।l५।l
Sangeeta Jain
NOIDA
WIINNER- 1
नीलमणि जैन
बरेली जिला रायसेन मध्यप्रदेश
WINNER-2
Kavita Padamkumar Raut.
Washim.
WINNER-3
औदायिक भाव किसका हेतू है?
बंध *
संवर
निर्जरा
मोक्ष
क्षयोपशम भावों में हम संयम और संयमासंयम भावों को और कषायों की व्यवस्था को समझ रहे हैं
कर्मों की सूक्ष्म व्यवस्थाओं को देखना-जानना केवल सर्वज्ञ के ज्ञान का विषय है
जो मुनि महाराज क्षयोपशम चारित्र पाल रहे हैं वे चारित्र को ही कर्मों के क्षयोपशम का फल मानते हैं
और उस पर अहम् नहीं करते
आत्मा के पुरुषार्थ से अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान को दबा कर, मात्र संज्वलन के उदय में सकल संयम में कोई बाधा नहीं आती
इसे प्रकट करना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है
सम्यक्त्व व चारित्र सम्बन्धी क्षयोपशम भाव निर्जरा का कारण हैं
हमें देखा कि असंयम के साथ और मिथ्यात्व के उदय में, कर्म के उदय से होने वाले औदयिक भाव के कारण बन्ध होगा
वहीं क्षयोपशम सम्यक्त्व के साथ मिथ्यात्व आदि कर्मों का संवर होगा, निर्जरा होगी
क्षयोपशम देशसंयम में मिथ्यात्व के अलावा अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान आदि आठ कषायों की निर्जरा होगी
और क्षयोपशम चारित्र में मिथ्यात्व के अलावा अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान आदि बारह कषायों की निर्जरा होगी
चारित्र या देशचारित्र कषाय के अभाव से उत्पन्न होने वाली परिणतियाँ हैं
श्रावक के बाहर व्रत भी उन कषायों के सर्वघाती स्पर्धकों के क्षयोपशम करने में कारण बनते हैं
लेकिन भीतर से चारित्र तो कर्म के क्षयोपशम से ही उत्पन्न होती है
हमने समझा कि संयमी के लिए अपने संयम की रक्षा करना सर्वोपरि है
सबकी बात न मानना कषाय नहीं है, कषाय की परिणति अलग है
किसी की बाहरी प्रवृत्तियों से हम उसके भीतर के चारित्र का अन्दाजा नहीं लगा सकते
इसलिए हमें कभी भी किसी भी व्रती, संयमी को देखकर ऐसा नहीं समझना चाहिए कि व्रत, संयम लेने से कषाय और बढ़ती है
व्रत लेने पर कषाय कम होती है
घटने का क्रम कषाय की intensity पर, पहले कितनी time समय के लिए आती थी आदि पर निर्भर करती हैं
सकल संयमी मुनि महाराज के संज्वलन कषाय रहती है और यह अन्तर्मुहूर्त में नष्ट हो जाती है
व्रती गृहस्थ के प्रत्याख्यान कषाय रहती है और यह पन्द्रह दिन तक रहती है
सम्यग्दृष्टि गृहस्थ के अप्रत्याख्यान कषाय रहती है और यह छः महीने तक रहती है
मिथ्यादृष्टि जीव के अनन्तानुबन्धी कषाय रहती है और यह भव-भव तक चलती है
इस तरीके की परिणतियाँ भीतर रहते हुए भी व्रतों का पालन होने में कोई दोष नहीं होता