श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 09
सूत्र - 01
सूत्र - 01
चौदहवें गुणस्थान में बन्ध का कोई हेतु नहीं है। आस्रव के सत्तावन भेद को समझते हैं। प्रमाद को अविरति में गर्भित किया गया है। सत्तावन में पन्द्रह प्रमाद के भेद जोड़ दे तो बहत्तर भेद हो जाते हैं। नोकर्म बन्ध क्या होता है?
मिथ्या-दर्शना-विरति-प्रमाद-कषाय-योगाबन्ध-हेतव:॥8.1॥
05th, April 2024
WINNER-1
WINNER-2
WINNER-3
कषाय के कुल कितने भेद उपभेद होते हैं?
छह (6)
बारह (12)
बीस (20)
पच्चीस (25)*
हमने गुणस्थानों के अनुसार कर्म बन्ध के कारण जाने
पहले गुणस्थान में मिथ्यादर्शन आदि सभी पाँच कारण होते हैं
दूसरे से चौथे गुणस्थान में अविरति से लेकर योग तक चार कारण होते हैं
पाँचवें गुणस्थान में भी अविरति मिश्र रूप रहने के कारण चारों कारण होते हैं
छठवें प्रमाद-प्रमत्त विरत गुणस्थान में अविरति के अभाव में
प्रमाद, कषाय और योग तीन कारण होते हैं
सप्तम से दसवें गुणस्थान में प्रमाद के अभाव में सिर्फ कषाय और योग दो ही कारण होते हैं
ग्यारहवें से तेरहवें गुणस्थान में कषाय के अभाव में केवल योग ही एक कारण रह जाता है
चौदहवें गुणस्थान में बन्ध का कोई हेतु नहीं होता
सिद्धों में बन्ध नहीं होता
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग सभी भाव हैं
भाव बन्ध से द्रव्य बन्ध भी होता है
लेकिन यहाँ सारी व्यवस्था भाव बंध की मुख्यता से है
हमने बारह भावना में ‘पन मिथ्यात योग पन्द्रह …’ आदि सत्तावन आस्रव के हेतुओं को जाना
पन मिथ्यात्व में एकान्तिक आदि पाँच मिथ्यात्व
योग पन्द्रह में मन-वचन-काय के औदारिक, औदारिक मिश्र आदि भेदों से पन्द्रह योग
द्वादश अविरति में छ: इन्द्रिय असंयम और छ: प्राणी असंयम मिलकर बारह अविरति
पंचरु बीस कषाय में पच्चीस कषाय मिलाकर
सत्तावन हेतु होते हैं
इसमें प्रमाद को छोड़ दिया हैं
क्योंकि किन्हीं-किन्हीं आचार्यों ने बन्ध के चार ही हेतु लिये हैं
प्रमाद का अन्तरभाव कभी अविरति में और कभी कषाय में हो जाता है
क्योंकि अविरति प्रमाद से ही बनी रहती है
और कषाय की तीव्रता का नाम प्रमाद है
अविरति को समझाने के लिए आचार्यों ने इसे कषाय भाव में ही गर्भित किया है
अविरति अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान कषाय के कारण से होती है
इसलिए क्रोध-मान-माया-लोभ के भेद से ये अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान बारह कषाय बारह अविरति रूप में भी गिनी जाती हैं
इनके उदय तक अविरति रहती है
और इनके छूटने पर जब केवल संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ रह जाय
तब अविरति छूट जाती है
शेष चार संज्वलन कषाय अविरति से अलग, कषाय और योग में आती हैं
आचार्यों ने संज्वलन की तीव्रता में प्रमाद
और मन्दता में केवल कषाय मात्र को घटित किया है
बन्ध के इन स्थूल सत्तावन भेदों में प्रमाद के पन्द्रह भेद जोड़ने से बहत्तर भेद हो जाते हैं
ये बंध के कारण निरंतर हमारे अन्दर चलते हैं
ये भेद-उपभेद सब मिलकर या अलग-अलग भी हमारे लिए बन्ध का कारण बन सकते हैं
जैसे जिनके मिथ्यात्व नहीं है उनके लिए आगे के हेतु कारण बनेंगे
कर्म बन्ध के हेतु समझ में आने पर ही
हमें आगे बंध का प्रकरण अच्छे ढंग से समझ में आयेगा
कर्म बंध और नोकर्म बंध सब इसी के अंतर्गत आ जाता है
अपने परिवारीजन, कुटुंबीजन से हमारे अंदर एक बंध रहता है
जिस कारण हम बार-बार वहीं खिंच जाते हैं
उन्हें छोड़ नहीं पाते
आचार्यों ने इसे भी नोकर्म बंध कहा है
शरीर और शरीर से जुड़ी जितनी भी चीजें हैं, वे सब हमारे नोकर्म बन्ध के साथ हैं
हमने जाना कि नोकर्म बन्ध के लिए हेतु कर्मबन्ध ही है
इसलिए कर्मबंध और नोकर्म बंध की आवश्यक शर्त उक्त हेतुओं में ही गर्भित हो जाती है
हमें कर्म बन्ध और नोकर्म बन्ध में से कुछ न कुछ पहले तोड़ना पड़ेगा
कर्म बन्ध टूटेगा तो बाहर के नोकर्म बन्ध टूटते ही हैं
इसलिये संसार भी कर्म पुद्गल परावर्तन और नोकर्म पुद्गल परावर्तन रूप होता है
आगे हम मुख्य रूप से कर्मों के बन्ध के प्रकार और उनके कारण जानेंगे