श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 44
सूत्र -30
सूत्र -30
आयु कर्म को छोड़कर सात कर्मों का बन्ध प्रति क्षण होता रहता है l विग्रह गति में जीव के साथ उसके भाव, कर्म गुणस्थान आदि सब होते हैं l विग्रहगति में जाने वाले जीव के गुणस्थान l देव आयु के उदय होते ही गुणस्थान चौथा ही हो जायेगा l मुनि महाराजों का भी देव गति में चौथा ही गुणस्थान होगा l विग्रह गति में पहला, दूसरा और चौथा गुणस्थान ही होगा l अनाहारक अवस्था विग्रह गति के बिना भी, समुद्घात में होती है l प्रतर और लोक पूरण समुद्घात में अनाहारक अवस्था होती है l अरिहन्त भगवान कार्मण काय योग में अनाहारक होते हैं l अनाहारक और आहारक अवस्था का सूक्ष्म वर्णन है l
एकं द्वौ त्रीन्वानाहारकः।।30।।
Rekha
Chennai
WIINNER- 1
Sudha Patni
Jaipur
WINNER-2
Ranjeeta Paiya
Shahdol (MP)
WINNER-3
विग्रह गति में निम्न में से कौनसा गुणस्थान हो सकता है?
दूसरा *
तीसरा
सातवाँ
दसवाँ
सूत्र 30 एकं द्वौ त्रीन्वानाहारकः में हमने जाना कि जीव एक, दो और तीन समय तक अनाहारक रह सकता है
आहार का अर्थ यहाँ शरीर के योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण करने से है
जो जीव गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक हमेशा करता रहता है
अर्थात आहारक रहता है
आनाहारक का मतलब है आहार का अभाव
मृत्यु के उपरान्त जीव अन्य गति में जाने के लिए जितने मोड़े लेगा उतने समय के लिए वह अनाहारक होगा
एक, दो और तीन मोड़े में क्रमशः एक, दो और तीन समय के लिए
तीन समय से ज्यादा वह अनाहारक नहीं हो सकता
जब जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है, तो उसके अन्दर भाव, कर्मों का उदय, बन्ध, सत्त्व सभी रहते हैं
क्योंकि विग्रहगति में कार्मण काय योग भी है
और उस कारण से आस्रव भी है और बंध भी
यहाँ आयु कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का बन्ध होता है
हमने जाना कि विग्रहगति में जीव के साथ उसके भाव, कर्म, गुणस्थान आदि सब होते हैं
जो जीव मिथ्यात्व के साथ मरते हैं, वहाँ भी उनके मिथ्यात्व कर्म का उदय रहता है
अगर विग्रहगति में मिथ्यात्व का अभाव हो जाता तो सभी जीव मरने के बाद में सम्यग्दृष्टि हो जाते
जीव जिस कषाय के साथ मरा है, उस कषाय का उदय विग्रहगति में भी रहेगा
विग्रहगति में जाने वाले जीव के मुख्यतः दो गुणस्थान होते हैं
मिथ्यादृष्टि जीव का पहला गुणस्थान
और सम्यक्त्व के साथ मरण करने वाले जीव का चौथा गुणस्थान
इसके अलावा जीव दूसरे गुणस्थान यानि सासादन गुणस्थान में भी मरण कर के, विग्रहगति में इस गुणस्थान में रह सकता है
चौथे गुणस्थान से आगे के गुणस्थान विग्रहगति में नहीं होंगे
गुणस्थान आयु क्रम तक ही होता है
अतः मनुष्य आयु समाप्त होते ही संयम का गुणस्थान समाप्त हो जाता है
देव आयु शुरू होते ही चौथा गुणस्थान हो जाता है
हमने जाना विग्रहगति में संसारी जीव ही होगा
अनाहारक दशा विग्रहगति के अलावा सयोगी केवली में भी पाई जाती है
जब केवली भगवान समुद्घात करते हैं
केवली भगवान के चार प्रकार के समुद्घात होते हैं दण्ड, कपाट, प्रतर और लोक पूरण
समुद्घात के कुल आठ समय में चार समय फैलने के और चार समय वापिस लौटने के होते हैं
चौथे समय में जीव के प्रदेश पुनः शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं
प्रतर और लोक पूरण समुद्घात में अनाहारक अवस्था और कार्मण काय योग होता है
लोकपूरण समुद्घात में कार्मण काय योग तीन समय में घटित होते हैं
जब जीव अनाहारक रहता है
अतः जीव कभी भी तीन से अधिक समय अनाहारक नहीं रहता चाहे विग्रागति में हो या समुद्घात में