श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 11
सूत्र - 07
सूत्र - 07
लोकाकाश के प्रत्येक space point पर सभी द्रव्य विद्यमान हैं, भले ही वे हमें दिखाई न दें। आकाश द्रव्य जहाँ है, वहाँ पर अन्य द्रव्य तो रहते हैं लेकिन ऐसा भी आकाश है, जहाँ पर आकाश ही रहता हो और अन्य द्रव्य न रहते हों, उसको हम अलोक कहेंगे। सभी द्रव्य उन्हीं space points पर होने पर भी अपने स्वरूप के साथ अवस्थित है। धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य निष्क्रिय द्रव्य हैं। जीव और पुद्गल सक्रिय द्रव्य हैं। जीव में सक्रियता पुद्गल के माध्यम से आती है। शुद्ध जीव निष्क्रिय होते हैं। पुद्गल (कर्मों) से हमारा सम्बन्ध छुड़ाने के लिए हमें निष्क्रिय होने का प्रयास करना चाहिए। पुद्गल द्रव्य मे सक्रियता काल द्रव्य सापेक्ष है।
निष्क्रियाणि च।।7।।
Arpana jain
Jabalpur
WINNER-1
Neetu jain
Jabalpur
WINNER-2
Manjula jain
Delhi
WINNER-3
पुद्गल द्रव्य में सक्रियता कौनसे द्रव्य से सापेक्ष है?
काल से*
धर्म से
अधर्म से
आकाश से
हमने जाना कि लोकाकाश के प्रत्येक space point पर अन्य द्रव्य भी विद्यमान हैं
भले ही वे हमें दिखाई न दें
जैसे धर्म और अधर्म द्रव्य; पूरे हाल में बिछी एक चादर के समान; पूरे universe में फैले हैं
लेकिन अलोकाकाश में सिर्फ आकाश द्रव्य होता है
अन्य द्रव्य नहीं रहते
अतः जिसे विज्ञान vacuum कहता है
वो अलोकाकाश में तो हो सकता है
लेकिन लोकाकाश में संभव नहीं है
विज्ञान की स्थूल व्याख्या के अनुसार vacuum में कुछ भी नहीं होता
air भी नहीं होती
और लोक के अन्दर कोई भी स्थान पूर्ण रूप से vacuum हो सकता है
जैन दर्शन के अनुसार लोकाकाश में total vacuum कहीं पर भी नहीं हो सकता
धर्म, अधर्म आदि अस्तिकाय वहाँ अवश्य होंगे
लोक में अस्तिकाय से रहित कोई space नहीं होता
ये द्रव्य अरूपी, अमूर्तिक, colourless होते हैं
आकाश में रहने वाले धर्म, अधर्म सभी द्रव्य एक स्वरूप हैं, अखंड हैं
अपने अलग-अलग गुणों के साथ भी उन्हीं points पर ये एक-दूसरे के साथ में समाविष्ट हैं
फिर भी नित्य हैं, अवस्थित हैं
सूत्र सात निष्क्रियाणि च - बताता है कि धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य निष्क्रिय होते हैं
अर्थात क्रिया रहित होते हैं
ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाते
इन द्रव्यों की निष्क्रियता स्वाभाव से है
कभी भी इन्हें सक्रिय नहीं बनाया जा सकता
काल द्रव्य चर्चा आगे की जायेगी
शेष जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य में सक्रियता होती है
हमने जाना कि जीव में सक्रियता पुद्गल के माध्यम से आती है
चाहे वो कर्म रूप पुद्गल हो या नोकर्म रूप
जीव में हमेशा योग चलते रहते हैं
आत्मा के प्रदेशों में हमेशा परिस्पन्दन होते रहते हैं
चलनपना बना रहता है
यही जीव की क्रिया है
इसमें जीव आत्मा के प्रदेशों पर पुद्गलों को आकर्षित करता है
जिसके कारण से उसे सक्रिय बनाने वाली गति होती है
इस क्रिया में मनोयोग, वचनयोग और काययोग का योगदान होता है
हमने जाना कि सभी संसारी जीव सक्रिय हैं
केवल सिद्धशिला में स्थित शुद्ध जीव निष्क्रिय होते हैं
क्योंकि अब उनका स्थानान्तरण नहीं होगा
संसार में सभी जीव हमेशा गति से गत्यान्तर, स्थान से स्थानान्तर होता रहते हैं
जब तक हमारे अन्दर सक्रियता है तब तक संसार है
और जब हमारे अन्दर पूर्ण रूप से निष्क्रियता हो जाएगी तो संसार छूट जायेगा
पुद्गल कर्मों से सम्बन्ध छोड़ने के लिए हमें जीवन में inactive होने के rate को बढ़ाना पडेगा
active रहने का अर्थ है कि हम पुद्गल से अपना सम्बन्ध बनाए रखना चाहते हैं
हमने जाना कि हम सोते हुए भी active बने रहते हैं
inactive नहीं होते
सूत्र में च शब्द से सामान्यतः धर्म, अधर्म और आकाश को ग्रहण किया है
यदि हम इससे निष्क्रिय द्रव्यों को लें तो शुद्ध जीव द्रव्य और शुद्ध पुद्गल परमाणु को भी ले सकते हैं
शुद्ध पुद्गल परमाणु में कोई reaction नहीं होता लेकिन वह बहुत देर तक नहीं रहता
हमने जाना कि पुद्गल परमाणु में निष्क्रियता काल सापेक्ष है
पंचास्तिकाय ग्रन्थ में आचार्य कुन्दकुन्द देव कहते हैं - ‘जीवा पोग्गल करणा, खंदा खलु काल करणादो’
जीव पुद्गल के कारण से सक्रिय रहता है
और पुद्गल स्कंध काल के कारण से सक्रिय होते हैं
जड़ senseless होता है
फिर भी उसमें काल के कारण सक्रियता रहती है
जो चीज बन गई उसमें उस समय पर उसका काल भी निहित हो जाता है
जैसे जब लकड़ी का पाटा बना तो उसी समय उसकी time duration भी उसके साथ बन गई
उस समय तक पाटा चलेगा, रहेगा
उसके बाद में अपने आप उसमें change आएँगे
यही स्कन्ध की क्रियाशीलता है
इसका कोई और दूसरा कारण नहीं होता