श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10
सूत्र - 11, 12, 13
Description
चेतना में बुद्धि की विशालता या सर्वज्ञता है? इन्द्रिय और मन से परे भी ज्ञान, की सिद्धी कैसे? इन्द्रिय और मन 'पर' है? आत्मा इन्द्रियों का सहारा क्यों लेती? बन्द आंखों से भी सब दिखाई दे सकता? मन:पर्यय ज्ञान में मन का आलम्बन नहीं? स्मरण शक्ति अधिक किनकी होगी? इन्द्रियाँ नियत विषय का ज्ञान करती! क्या विषय का अभिमुख होना आवश्यक? तर्कज्ञान या ऊहापोह करना चिन्ता है? परोक्ष ज्ञान मतिज्ञान की पर्यायवाची शब्दों में गर्भित!
Sutra
आद्ये परोक्षं ।।1.11।।
प्रत्यक्षमन्यत्।।1.12।।
मतिःस्मृतिःसंज्ञाचिंताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ।।1.13।।
Watch Class 10
WINNERS
Day 10
06th March, 2022
प्रिती शहा
वाल्हा
WINNER-1
Rajni Jain
Delhi
WINNER-2
Kalash Jain
Khekra (Baghpat)
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से परोक्ष ज्ञान कौनसा होता है?
मतिज्ञान *
अवधि ज्ञान
मन:पर्यय ज्ञान
केवलज्ञान
Summary
हमने सूत्र ११ “आद्ये परोक्ष” के माध्यम जाना कि
पाँच में से पहले के दो ज्ञान - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष होते हैं
दुनिया में इन सब इन्दिय और मन गम्य ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान मानते हैं
किन्तु जैन दर्शन सत्य की अवधारणा से चलता है। जो सत्य है, वह सत्य ही रहेगा।
अतः हमारा ज्ञान परोक्ष है, प्रत्यक्ष नहीं
इन्द्रिय और मन के ज्ञान से अलग और भी ज्ञान होते हैं,
ये तो पर रूप है
हमने समझा कि जो ज्ञान के साधन हमारे शरीर से जुड़े हुए हैं जैसे इन्द्रियाँ और मन उन्हें कहते हैं उपात्त साधन
और जो ज्ञान के साधन हमसे दूर हैं जैसे पुस्तक, light, अध्यापक आदि उन्हें अनुपात्त साधन कहते हैं
इसी तरह उपात्त परिग्रह में अपना शरीर आता है और अनुपात्त परिग्रह में धन-वैभव आदि
जब कर्मों के कारण से आत्मा असमर्थ होती है तो वह आत्मा इन्द्रियों और मन का सहारा लेती है
सूत्र 12 - प्रत्यक्षमन्यत् में हमने जाना कि 'अन्य' ज्ञान अर्थात शेष तीन ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान होते हैं
अतः अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान और केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान हैं क्योंकि ये बिना इन्द्रिय, मन के आलम्बन के होते हैं
सही ही है - “अक्षं-अक्षं प्रतिवर्तते इति प्रत्यक्षं” अक्ष मतलब आत्मा, जो आत्मा से निकलता है, आत्मा में रहता है या आत्मा के प्रति जिसका वर्तन होता है, उसको प्रत्यक्ष कहते हैं।
यहाँ अन्य लोग अक्ष का अर्थ इन्द्रियाँ मानते हैं
अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान एक देश प्रत्यक्ष यानि थोड़े प्रत्यक्ष होते हैं - किसी limit में, limited वस्तुओं को जानते हैं
ये आत्मा से direct जानेंगे, इन्हें इन्द्रिय और मन की सहायता नहीं लेनी पड़ेगी
वर्तमान में किसी को कोई भी प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता है
केवलज्ञान पूर्ण ज्ञान है, इसमें कुछ भी छिपा नहीं है
अगले सूत्र में हमने मति ज्ञान के सब पर्यायवाची नाम जाने
मति:, स्मृतिः संज्ञा:, चिन्ता: और अभिनिबोध
मति- हमारी बुद्धि है
मनन करने का नाम बुद्धि है।
स्मृति- हमारे स्मरण शक्ति है
जिसका मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम अधिक होगा:
वह अधिक मनन कर पाएगा
और उसकी स्मृति भी अधिक होगी
संज्ञा – जानने की इच्छा को संज्ञा कहते हैं
यह आहार, भयादि संज्ञाओं से भिन्न है
चिन्ता– जो हमने स्मरण किया है उसी का बार-बार चिन्तन करना।
मतिज्ञान का क्षयोपशम अधिक होगा तो चिन्तन भी अच्छा होगा।
अभिनिबोध का अर्थ है
अभि यानि अभिमुख होना
नि यानि नियत, नियत विषय
और बोध यानि ज्ञान
अर्थात अभिमुख होकर जो नियत वस्तु का ज्ञान होता है, वह अभिनिबोधक ज्ञान है
हमारी पाँचों ही इन्द्रियाँ किसी पदार्थ के प्रति अभिमुख होकर ही काम करती है
आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंक देव ने सूत्र के सभी शब्दों को मतिज्ञान का सिर्फ पर्यायवाची माना है
वहीं आचार्य विद्यानंदी महाराज ने अपने चिन्तंत में परोक्ष ज्ञान के सभी भेदों को मतिज्ञान के पर्यायवाची शब्दों में गर्भित किया है
स्मरणज्ञान स्मृति है
प्रत्यभिज्ञान संज्ञा है
तर्कज्ञान या ऊहापोह करना चिन्ता है
और अनुमानज्ञान अभिनिबोधि है