श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 17
सूत्र - 28,29
सूत्र - 28,29
मन:पर्यय ज्ञान का विषय क्या है? सभी द्रव्यों की सभी पर्यायों को ग्रहण करना, यह केवलज्ञान का विषय है, एक साथ, एक आत्मा में कितने ज्ञान हो सकते हैं? सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान मे अन्तर
तदनन्तभागे मनपर्यस्य ।।1.28।।
सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ।।1.29।।
Shashi Jain
Meerut
WINNER-1
बसंती शाह जैन
भीलवाड़ा
WINNER-2
शशि जैन
इंदौर
WINNER-3
अवधिज्ञान से कौनसा भाव जानने में नहीं आएगा?
औदायिक
औपशमिक
क्षायोपशमिक
क्षायिक *
हमने एक जरूरी चीज जानी कि सूत्रों में पिछले सूत्रों का अनुसरण चलता है
जैसे सूत्र रुपिष्ववधे: में सूत्र मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्याय़ेषु की अनुवृत्ति से अवधिज्ञान में भी असर्वपर्याय की सीमा आ जाती है
अर्थात अवधिज्ञान सिर्फ रूपी पदार्थों को असर्व पर्याय के साथ जानेंगे
अवधिज्ञान रूपी कर्म के माध्यम से आत्मा को जनता है मगर
यह आत्मा के सभी भावों को ग्रहण नहीं कर सकता
यह सिर्फ
कर्म के उदय से होने वाले औदयिक भाव
उपशम से होने वाले औपशमिक भाव
क्षयोपशम से होने वाले क्षयोपशम भाव को बता देगा
लेकिन क्षायिक भाव और पारिणामिक भाव को नहीं बता पाएगा
हमने जाना कि भव्य और अभव्य की पहचान भी अवधिज्ञान का विषय नहीं है
सूत्र 28 - तदनन्तभागे मनपर्यस्य में हमने जाना कि मनःपर्यय ज्ञान अवधिज्ञान में उत्कृष्ट सर्वावधिज्ञान का अनन्तवाँ भाग भी ग्रहण करने में समर्थ होता है
सूत्र 29 - सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य में हमने देखा कि केवलज्ञान सभी द्रव्यों और सभी पर्यायों को ग्रहण करता है
केवलज्ञान अनादि रूप वस्तु को अनादि रूप ही जनता है और जो अनन्त रूप है उसको अनन्त रूप ही जानेगा
ज्ञान भी एक तुला के समान है और जैसे हर चीज को तोलने की तुला अलग-अलग होती है ऐसे ही हर संख्या को जानने वाला ज्ञान भी अलग-अलग होता है
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान के माध्यम से हम संख्यात संख्या वाली चीजों को ही जान पाएँगे
अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान से असंख्यात को
और केवलज्ञान से अनन्त संख्या को
केवलज्ञान से कोई भी चीज बाहर नहीं है
अनन्त भी एक प्रकार का नहीं, इनके प्रकार के होते हैं
इनका अपना एक गणित होता है
जैसे सिद्ध भी अनन्त हैं, अभव्य भी अनन्त हैं, भव्य भी अनन्त हैं, पुद्गल भी अनन्त हैं लेकिन इन सबकी अनन्तता अलग-अलग है
सिद्ध जीवों से भी अनन्त गुणे जीव एक निगोद जीव में रहते हैं
केवलज्ञानी के अनन्त को जानने के बाद, हमारे लिए जो ज्ञान आएगा वह केवल एक मौखिक, अक्षरात्मक श्रुतज्ञान होता है
केवलज्ञान में आगे के भव दिख रहे हैं तो सब कुछ निश्चित है हमें ऐसा नहीं मानना है
हमें सिर्फ केवल ज्ञान के स्वरूप को समझना है और उसका ही निश्चय करना