श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 28
सूत्र - 22
Description
काल द्रव्य का उपकार। काल द्रव्य का स्वरूप समझे। काल द्रव्य को दो प्रकार से जाना जा सकता है। द्रव्य के बिना पर्याय संभव नहीं। काल द्रव्य का विशेष लक्षण ”वर्तना। अस्तित्व में बने रहने की अनुभूति का नाम वर्तना है। काल की सभी द्रव्यों के अस्तित्व को बनाये रखने में भूमिका है। काल द्रव्य को विज्ञान नहीं समझ पाया आप समझें। जीवद्रव्य का अस्तित्व षट गुणी हानि, वृद्धि के आधार पर है।
Sutra
वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥5.22॥
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WINNERS
Day 28
10st May, 2023
Urmil Jain
Gaziabad
WINNER-1
Sudha Jain
Mumbai
WINNER-2
Manisha a Rokade
Nagpur
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से काल द्रव्य का विशेष गुण कौनसा है?
चेतना
मूर्त्तपना
वर्तना*
अस्तित्व
Abhyas (Practice Paper):
Summary
अबतक अध्याय पाँच में हमने छह द्रव्यों में से पंच अस्तिकायों के उपकारों को जाना
सूत्र बाईस वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य में हमने छटवें काल द्रव्य के उपकारों को जाना
काल द्रव्य अन्य सभी द्रव्यों में प्रवर्तन कराने का मुख्य हेतु है
इस उपकार से काल द्रव्य की सिद्धि होती है
यह एक द्रव्य है
जिसका अस्तित्व है
यह बहुप्रदेशी नहीं है अतः अस्तिकाय नहीं है
यह स्पर्श, रस, गंध, वर्ण रहित अमूर्त है
इसमें द्रव्य के सामान्य गुण और अपने विशेष गुण दोनों होते हैं
ये एक space-point या अणु के बराबर स्थान घेरता है
इसलिए एक काल द्रव्य को कालाणु भी कहते हैं
एक-एक कालाणु लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों में हर एक प्रदेश पर व्यवस्थित हैं
काल द्रव्य को दो प्रकार से जानते हैं - परमार्थ या निश्चय काल और व्यवहार काल
निश्चय काल कालाणु के अस्तित्व रूप है
यानि लोकाकाश के प्रदेशों पर व्यवस्थित कालाणु निश्चय काल हुए
और इनके माध्यम से ही व्यवहार काल की उत्पत्ति होती है
कालाणु को स्वीकार किए बिना व्यवहार काल की उत्पत्ति संभव नहीं है
क्योंकि द्रव्य के बिना पर्याय संभव नहीं
पर्यायों को गिनने के लिये और द्रव्य का अस्तित्व समझने के लिए अलग तरह के ज्ञान की जरूरत पड़ती है
निश्चय काल हमेशा द्रव्य के रूप में स्थित रहता है
इसका विशेष लक्षण “वर्तना” है
यानि “होते रहना” होना या “केवल बस होना”
वर्तना सिर्फ काल द्रव्य का लक्षण है, अन्य द्रव्य का नहीं
हमने जाना कि हर द्रव्य की अपनी सत्ता की अनुभूति काल द्रव्य के वर्तना लक्षण से होती है
हर द्रव्य में सत्ता और सत्ता नाम का गुण है
जिसके कारण उसका अपना अस्तित्व बना हुआ है
सत्ता बनी रहने के लिए उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य भी जरूरी होते हैं
ये हर द्रव्य - शुद्ध-अशुद्ध, अमूर्त-मूर्त आदि में होते हैं
इसी से उसका अस्तित्व बना रहता है
और अस्तित्व में बने रहने की अनुभूति ही वर्तना है
वर्तना उत्पाद व्यय के चलने में बाहरी हेतु है
वर्तना बहुत सूक्ष्म है
और जिस प्रकार निश्चय की परिणति को समझाना सूक्ष्म होता है
उसी प्रकार इसे समझना भी सूक्ष्म है
इसी सूक्ष्मता से स्थूलता की पर्यायें आगे ज्ञान के पकड़ में आएँगी
काल द्रव्य हर द्रव्य की सत्ता को बनाए रखता है
उनमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य का कारण होता है
और उनके अंदर षट गुणी हानि-वृद्धि रूप वर्तन कराता है
स्व-द्रव्य के लिए भी और दूसरे द्रव्यों के लिए भी
इसका उपकार अन्य सभी द्रव्यों से बिल्कुल भिन्न और महत्वपूर्ण हैं
अन्य द्रव्य दूसरे द्रव्यों के अस्तित्व में भूमिका नहीं रखते
केवल यही हर द्रव्य के अस्तित्व की अनुभूति को बनाए रखने के लिए परिणमन कराता है
काल द्रव्य के बारे में scientists अनुमान भी नहीं लगा पाए
और न ही basic definition बता पाए
बहुत से लोग तो इसे द्रव्य ही नहीं मानते
विज्ञान काल को एक परिणति के रूप में जानता है
किसी भी काम में जो time लगता है
उसको किसी ना किसी से relate करके count करता है
यह बहुत स्थूल है
जिसे हम आगे परत्वापरत्वे factor में समझेंगे
इसी पर पूरा science टिका है
हमने जाना कि क्रिया, परिणाम और वर्तना स्थूल से सूक्ष्म हो रहे हैं
जीवद्रव्य का अस्तित्व भी अन्य द्रव्यों की तरह
षट गुणी हानि-वृद्धि और पर्यायों के उत्पन्न-नष्ट होते पर आधारित है
और काल द्रव्य इस अस्तित्व को वर्तना कराने में मुख्य भूमिका रखता है
द्रव्य संग्रह के अनुसार भी
वट्टणलक्खो व परमट्ठो
वर्तना परमार्थ काल का लक्षण है