श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 45
सूत्र - 17,18,19,20
सूत्र - 17,18,19,20
ड) आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तथा शुभा-शुभ आयु की अपेक्षा वर्णन। काल के अनुसार आयु कर्म के उत्कृष्ट स्थिति बन्ध का वर्णन। आयु कर्म की उत्कृष्ट आयु और आयु बन्ध में अन्तर। आयु कर्म बन्ध के अनुसार ही होता है- कर्म फल। स्थिति बन्ध को कम करना ही सही पुरूषार्थ। कर्मों की स्थिति बन्ध की जघन्य स्थिति। अ) वेदनीय कर्म। नाम कर्म व गोत्र कर्म। शेष कर्मों की (वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म छोड़कर) जघन्य स्थिति।
त्रयस्त्रिंशत्सागारोपमाण्यायुषः।।8.17।।
अपरा द्वादश-मुहूर्ता वेदनीयस्य।।8.18।।
नाम-गोत्रयो-रष्टौ।।8.19।।
शेषाणा-मन्तर्मुहूर्ताः॥8.20॥
10th,July 2024
Nutan Jain
Muzaffar Nagar
WINNER-1
Anju Jain
Sarsawa
WINNER-2
ममता जैन ( शाह)
मुंबई
WINNER-3
नाम कर्म की जघन्य स्थिति कितनी होती है?
12 मुहूर्त
8 मुहूर्त*
4 मुहूर्त
1 अन्तर्मुहूर्त
स्थिति बन्ध के प्रकरण में हमने जाना
कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति,
सागरोपमों में होती है।
आयु कर्म का उत्कृष्ट स्थिति बन्ध तैंतीस सागर है
यह देवों में शुभ रूप होता है
और नारकियों में अशुभ रूप
देवों में यह उत्कृष्ट स्थिति सर्वार्थसिद्धि
या अनुत्तर विमानवासी देवों की होती है
और नारकियों में सप्तम नरक के नारकियों की।
यानि चारों गतियों के जीवों में उत्कृष्ट आयु, देवों और नारकियों की है।
तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्कृष्ट आयु
तीन-पल्य प्रमाण है।
जो भोगभूमि में होती है
कर्मभूमिज मनुष्यों और तिर्यंचों में उत्कृष्ट आयु ‘एक पूर्व कोटि’ है
पूर्व भी काल की एक unit है
आयु, काल के अनुसार अलग-अलग होती है।
‘एक पूर्व कोटि आयु’ चतुर्थ काल में,
या जहाँ पर चतुर्थ काल हमेशा रहता है,
ऐसे विदेह आदि क्षेत्रों में होती है।
अवसर्पिणी में आयु धीरे-धीरे घटकर पंचम काल में
उत्कृष्ट 120 वर्ष रहती है।
हम विचारें -
कहाँ 120 वर्ष
और कहाँ एक पूर्व कोटि के आयु वाले जीव?
हमने जाना - तीर्थंकरों के उत्कृष्ट ही आयु हो, ऐसा कोई नियम नहीं है
भगवान आदिनाथ की आयु चौरासी लाख पूर्व थी।
मतलब कर्म भूमि की उत्कृष्ट आयु - एक करोड़ पूर्व से कम।
महावीर भगवान की केवल बहत्तर वर्ष थी।
जबकि उनके लिए अन्य सभी शुभ-प्रकृतियाँ, उत्कृष्ट रूप से फलतीं हैं।
अतः यह नियम नहीं कि-
उत्कृष्ट पुण्य है तो आयु भी उत्कृष्ट हो।
हम तीर्थंकरों की आपस में तुलना करके देखें
कहाँ चौरासी लाख पूर्व वाले आदिनाथ भगवान!
और कहाँ मात्र बहत्तर-वर्ष वाले महावीर भगवान!
मतलब कर्म का उपभोग करने के लिए जितना समय चाहिए
वह समय पूरा नहीं है।
भगवान आदिनाथ और उनके पुत्र भरत और बाहुबली
तीनों सर्वार्थसिद्धि में तैंतीस-सागर आयु वाले जीव थे,
पर यहाँ आकर सबकी आयु अलग-अलग हो गई।
आयु सबकी एक जैसी नहीं होती।
यह आयु बन्ध के समय होने वाले परिणामों पर निर्भर करता है
Height भी सबकी अलग ही थी
बाहुबली की height 525 धनुष
और भरत की 500 धनुष ही रह गई
हर कर्म के स्थिति बन्ध,
हर जीव के अलग-अलग होते हैं
और इसी स्थिति के अनुसार कर्मफल भोगने को मिलता है।
आयु कर्म का फल तो हमें समझ में आता है
पर अन्य कर्मों का फल हमें केवल श्रद्धा-विश्वास में लाना होगा
यदि हमने ज्ञानावरण का- मिथ्यात्व और संक्लेश परिणामों के साथ
उत्कृष्ट बन्ध किया हो,
तो वह 30 कोड़ा-कोड़ी सागर तक बन्धा रहेगा।
हमारी आयु के ये 100 वर्ष तो निकल भी जाएँगे,
लेकिन यह सागरों का बन्ध पड़ा रहेगा
और फल देता रहेगा।
इसलिए सबसे बड़ा पुरुषार्थ कर्म की स्थितियों को कम करना, उन्हें तोड़ना है
इसी से संसार घटता है, टूटता है।
हमने ‘अपरा’ यानि जघन्य स्थिति बन्ध जाना
एक घड़ी चौबीस मिनिट और एक मुहूर्त अड़तालीस मिनिट का होता है।
वेदनीय का कम-से-कम बन्ध बारह मुहूर्त का होता है।
नाम और गोत्र कर्म का जघन्य स्थिति बन्ध आठ मुहूर्त का होगा।
शेष पाँचों कर्मों की minimum time bonding अन्तर्मुहूर्त की है।
अन्तर्मुहूर्त से कम किसी भी कर्म की स्थिति नहीं होती।
ये जघन्य स्थिति बन्ध
‘उत्कृष्ट विशुद्धि’ के साथ
क्षपक श्रेणी में,
दसवें गुणस्थानवर्ती मुनिराज को होता हैं।
और उत्कृष्ट बन्ध, उत्कृष्ट संक्लेश मिथ्यात्व के साथ होता हैं।
minimum से maximum time limit के बीच का सब मध्यम कहलाएगा।
जैसे हम zero to infinity बोलते हैं,
ऐसे ही ‘अन्तर्मुहूर्त to तीस/सत्तर कोड़ा-कोड़ी सागर’।
उसके बीच में एक-एक समय को बढ़ाते हुए,
जितने भी स्थितियों के विकल्प बनेंगे,
वे सब उसके भेद कहलाएँगे।
इन्हें अलग-अलग जीव अलग-अलग परिणामों से बांधते रहते हैं।
अर्थात् मध्यम परिणामों के माध्यम से मध्यम स्थिति बन्ध होते हैं।