श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 16
सूत्र -16,17,18
सूत्र -16,17,18
वैमानिक देवों की विशेष गुणवत्ता quality होती है। "वैमानिकाः" सूत्र को इस तरह पृथक लिखने का कारण। वैमानिक देवों की विशेषताएँ। सूत्रकार महाराज जी की विशेष प्रज्ञा। वैमानिक देवों के भेद। कल्पोपपन्न। कल्पातीत। 'कल्पोपन्न और कल्पातीत' इस प्रकार दो भेद करने का कारण। मध्यलोक में और ऊर्ध्वलोक में एक बाल का अन्तर होता है। वैमानिक देवों के विमान उर्ध्वलोक में ऊपर-ऊपर अवस्थित है। वैमानिक देवों के विमानों के भेद।
वैमानिकाः।।16।।
कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ।।17।।
उपर्युपरि ।।18।।
रन्जु जैन
Udaipur
WINNER-1
Neelmani Jain
Rajasthan
WINNER-2
Sapana Rajesh Phade
Pandharpur
WINNER-3
वैमानिक देवों का कौनसा विमान बिल्कुल बीचों-बीच में होता है?
कीर्णक
प्रकीर्णक
श्रेणीबद्ध
इन्द्रक*
सूत्र सोलह - वैमानिकाः से हमने वैमानिक देवों का वर्णन जाना
मुनिश्री के चिन्तन के अनुसार
भवनत्रिक के भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क की अपेक्षा वैमानिक देव विशेष होते हैं
इसलिए सूत्रकार आचार्य ने उनके वर्णन के लिए अलग से सूत्र बनाया
जबकि भवनत्रिक का वर्णन करते समय सूत्रों में उनके नाम के साथ भेद भी जोड़ दिए
पृथक सूत्र लिखने से उनकी विशेष गुणवत्ता और सम्मान का बोध होता है
यूँ तो चन्द्रमा, सूर्य आदि भी विमान में ही रहते हैं लेकिन इनकी quality अलग है
सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से वैमानिक देवों की कुछ विशेषताएँ हैं, जैसे
पहली - तीर्थंकर आदि महापुरुषों का आगमन इस धरती पर इन्हीं वैमानिक देवों के माध्यम से होता है
दूसरी - जहाँ भवनत्रिक में नियम से मिथ्यात्व के साथ ही जन्म होता है, वैमानिक में सम्यक्त्व के साथ भी जन्म होता है
तीसरी - अपर्याप्त अवस्था में भवनत्रिक में अशुभ लेश्या हो सकती है लेकिन वैमानिक देवों में शुभ लेश्या ही होती
चौथी - वैमानिक देव ऊपर ऊर्ध्वलोक में रहते हैं वहीं भवनत्रिक मध्यलोक और अधोलोक में रहते हैं
सूत्र सत्रह कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च से हमने जाना वैमानिक देवों के भेद जाने
कल्प व्यवस्था में उत्पन्न देवों को कल्पोपपन्न कहते हैं
ये सोलह स्वर्ग तक होते हैं
और कल्प व्यवस्था से अतीत यानि रहित देवों को कल्पातीत कहते हैं
ये सोलह स्वर्ग से ऊपर नौ ग्रेवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में होते हैं
इंद्र, सामानिक आदि दस प्रकार के देवों की व्यवस्था को कल्प कहते हैं
अतः कल्पोपपन्न में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, आत्मरक्ष आदि सभी का पूरा परिवार होगा
लेकिन कल्पातीत में सिर्फ अहमिन्द्र होंगे
कोई सेवक, दासी-दास नहीं होगा
कोई देवियाँ भी नहीं होंगी
सूत्र अठारह उपर्युपरि से हमने जाना कि वैमानिक देवों के विमान उर्ध्वलोक में ऊपर-ऊपर अवस्थित हैं
मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक में देवकुरु उत्तमभोगभूमि में जन्में तिर्यञ्च मेंढा के बाल जितना अन्तर होता है
ये विमान चारों तरफ नीचे से ऊपर तक एक symmetry में फैले हुए हैं
मध्य के विमान को इन्द्रक विमान कहते हैं
उसकी चारों दिशाओं में चार श्रेणीबद्ध विमान होते हैं
प्रकीर्णक विमान उन दिशाओं के बीच में बिखरे होते हैं
सभी श्रेणीबद्ध विमान एक के ऊपर एक, इस तरह होते हैं कि नीचे से कोई hole करे तो वह ऊपर तक वैसा ही दिखाई दे