श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 18
सूत्र - 14,15
सूत्र - 14,15
पुद्गलों की अवगाह शक्ति।स्कंध लोकाकाश के एक, दो,संख्यात आदि प्रदेशों पर भी रह सकता है।पुद्गल में भी अन्य पुद्गल को अवगाहित करने की शक्ति होती है।पुद्गल के अनंत परमाणु लोकाकाश के एक प्रदेश में आ सकते हैं।एक जीव लोकाकाश का कितना portion घेरेगा? लोकाकाश का विभाजन।एक छोटे से छोटा जीव भी लोक का असंख्यातवां भाग लेता है।सूक्ष्म निगोदिया जीव भी लोक के असंख्यातवें भाग में रहता है।जीव का स्वभाव अलग परमाणु का स्वभाव अलग है।
एक-प्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् ॥14॥
असंख्येय भागादिषु जीवानाम्॥15॥
Vandana Anil Mehta
Nashik
WINNER-1
Pratibha Kiran Meghal
Nagpur
WINNER-2
Alka jain
Ghaziabad
WINNER-3
निगोदिया जीव लोकाकाश का कितना भाग घेरेगा?
एक प्रदेश
दस प्रदेश
2 लाख प्रदेश
असंख्यातवाँ भाग *
सूत्र बारह में हमने जाना था कि आकाश द्रव्य सभी द्रव्यों को अवगाह देता है
मगर सभी द्रव्यों का अवगाह अलग-अलग तरह से होता है
जैसे सूत्र तेरह में हमने देखा कि धर्म और अधर्म द्रव्य का अवगाह तिल में तेल के समान कृत्स्न है
अर्थात पूर्णतः व्याप्त है
सूत्र चौदह में हमने देखा कि पुद्गलों का अवगाह एक प्रदेशी से लेकर संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनंत प्रदेशी भी हो सकता है
एक पुद्गल परमाणु single point space occupy करता है इसलिए ये एक प्रदेश में रहेगा
दो परमाणु
अलग-अलग होकर दो प्रदेशों में रहेंगे
मगर बद्ध होकर एक प्रदेश में भी समा जाएँगे
तीन परमाणु एक, दो या तीन प्रदेशों में आ सकते हैं
तीन परमाणु दो प्रदेशों में डेढ-डेढ़ करके नहीं आयेंगे
वो एक प्रदेश पर एक और एक प्रदेश पर दो ही आयेंगे
क्योंकि परमाणु पुद्गल का सबसे अविभाज्य कण होता है
और इन्हीं से स्कंध बनते हैं
इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनंत पुद्गल परमाणु भी एक, दो, तीन आदि, संख्यात या असंख्यात प्रदेशों में समा सकते हैं
हमने जाना कि ऐसा पुद्गल की अवगाहन शक्ति के कारण होता है
आकाश तो सबको अवगाहित करता ही है
पुद्गल भी पुद्गल को अवगाहित कर लेता है
इसको हम अगर उदहारण से समझें तो
एक बाल्टी पानी में हम नमक, पाउडर, scent आदि डाल दें
तो उसका पानी बाहर नहीं आता
ये सब चीजें उस एक बाल्टी पानी में ही समाहित हो जातीं हैं, घुल जाती हैं
इसी को अवगाहन शक्ति कहते हैं
हमने जाना कि परमाणु सूक्ष्म होते हैं
मगर कुछ स्कंध स्थूल और कुछ सूक्ष्म परिणमन करने की शक्ति वाले भी होते हैं
यूँ तो लोकाकाश में केवल असंख्यात प्रदेश होते हैं
लेकिन फिर भी उसमें अनंत पुद्गल परमाणु रह जाते हैं
ऐसा दो कारणों से होता है
पहला कारण पुद्गल की अवगाहन शक्ति है
और दूसरा कारण कुछ स्कंधों का सूक्ष्म परिणमन है
वे पृथ्वी की तरह कठोर या स्थान घेरने वाले नहीं होते
जैसे आकाश में हवा और पानी बिना बाधा के रहते हैं
सूत्र पंद्रह को सूत्र बारह से जोड़कर हमने जीव के अवगाह को समझा
लोकाकाशे जीवानाम् असंख्ये भागादिषु अवगाह:
अर्थात जीवों का अवगाह लोकाकाश में उसके असंख्य भाग से प्रारंभ होकर बढ़ते जाता है
इसके लिए हम 343 घनराजू प्रमाण लोकाकाश के असंख्य भाग बनाएंगे
जैसे हमने जंबूद्वीप के 190 portion किये थे और उसमें एक portion भरत क्षेत्र था
कोई भी जीव रहेगा तो वह इन असंख्यात भागों में से कम से कम एक भाग में रहेगा
मतलब असंख्यातवें भाग से कम में एक जीव नहीं रह सकता
जैसे परमाणु एक प्रदेश में रह जाता है
वैसे जीव एक प्रदेश में नहीं रह सकता
इसे संख्यात से भी ऊपर असंख्यात प्रदेश बराबर स्थान चाहिए
यह जीव का स्वभाव है
कोई भी जीव
मोटा, पतला,
छोटा, बड़ा,
डायनासोर, हाथी, चींटी या छोटा सा कीड़ा भी
लोकाकाश के असंख्यातवें भाग को घेर रहा है
शास्त्र की दृष्टि से सबसे छोटी अवगाहना वाला सूक्ष्म निगोदिया जीव भी लोकाकाश का असंख्यातवां भाग घेरता है
जैसे-जैसे जीव की अवगाहना बढ़ेगी उसके असंख्यातवें भाग और बढ़ने लग जाएँगे
देवों, नारकी, तिर्यंचों, मनुष्यों में अधिकतम अवगाहना मनुष्य की ही होती है
वो भी लोकाकाश के असंख्यातवें भाग में ही आ जाती है
इस प्रकार हमने पुद्गल, जीव और धर्म-अधर्म के प्रदेशों के फैलाव और रहने के स्वभाव को जाना