श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 33
सूत्र - 11
सूत्र - 11
स्पर्श आठ प्रकार का। पाँच प्रकार का रस। गन्ध दो प्रकार की और वर्ण पाँच प्रकार का। आनुपूर्वी नामकर्ण। गति और गत्यानुपूर्वी में अन्तर।
गति-जाति-शरीराङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान-संहनन-स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णानुपूर्व्यगुरु- लघूपघात-परघाता-तपो-द्योतोच्छ्वास-विहायोग-तयः प्रत्येक-शरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ- सूक्ष्मपर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्ति-सेतराणि तीर्थकरत्वं च॥8.11॥
12th, Jun 2024
Saiyam Gangwal
Mumbai
WINNER-1
Rajesh Kumari Jain
Ajmer
WINNER-2
रश्मि जैन
रायपुर
WINNER-3
आनुपूर्वी नामकर्म के कितने प्रकार है?
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हमने जाना कि ध्यान में एकाग्रता न आने के कारण हैं
distractions बहुत होना
और संहनन कमजोर होना
ज्ञानार्णव जी के अनुसार जिनके संहनन अच्छे होंगे
उन्हीं के आसन में स्थिरता होगी
और उन्हीं के ध्यान ढंग से लगेगा
कमजोर शरीर से हम थोड़ी देर भी स्थिर नहीं बैठ सकते
कुछ लोग सुकुमाल मुनि की तरह कोमल दिखते हैं
लेकिन उनकी strength बहुत अच्छी होती है
फर्श पर चलने पर भी सुकुमाल के पैर छलनी हो जाते थे
पर जब तपस्या करते समय स्यालिनी ने उन्हें काटा तो
वे जरा नहीं डगमगाये
यह उनका संहनन, धैर्य था
हमने जाना कि स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण नामकर्म के माध्यम से शरीर में ये चीजें उत्पन्न होती हैं
वैसे तो ये पुद्गल के गुण हैं
लेकिन अनन्त पुद्गलों से बने स्थूल पौद्गलिक शरीर में भी
स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण होता है
अन्तरंग में यह इन नामकर्मों के उदय से होता है
और बाहर नोकर्म शरीर में स्पर्श आदि के रूप में महसूस होता है
स्पर्श हल्का-भारी, ठण्डा-गर्म, चिकना-रूखा और कठोर-कोमल आठ प्रकार का होता है
रस खट्टा, मीठा, कड़वा, कषायला और चरपरा पाँच प्रकार का होता है
हमने जाना कि नींबू का खट्टापन, मिर्ची का चरपरापन आदि
इनमें रहने वाले वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीवों के शरीरों के रस से उत्पन्न होते हैं
एकेन्द्रिय आदि जीवों में तो खट्टा आदि रस का उदय देखने में आ जाता है
लेकिन इन नामकर्मों का उदय सभी शरीरी जीवों में होते है
गन्ध अच्छी और बुरी दो प्रकार की होती है
वर्ण लाल, पीला, काला, सफेद और नीला पाँच प्रकार का होता है
बाकी वर्ण इनके combination से बन जाते हैं
कहीं-कहीं पर काला, नीला की जगह हरा भी बताया जाता है
वर्ण नामकर्म के कारण हमें अलग-अलग रंग के शरीर दिखायी देते हैं
जैसे सफेद, पीले लोग
africa में काले, नीले लोग
और लाल रंग के पद्मप्रभ भगवान
हमने जाना था कि एक गति को छोड़कर दूसरी गति में
जन्म योनि स्थान तक पहुँचने से पहले
आकाश में जीव की गति को विग्रहगति कहते हैं
आनुपूर्वी नामकर्म आत्मा को एक गति से दूसरी गति की ओर ले जाता है
और इसके उदय में विग्रहगति में आत्मा की shape
जिस शरीर को छोड़कर आत्मा आयी है
वैसी बनी रहती है
जन्म के साथ ही इस नामकर्म का उदय समाप्त हो जाता है
चार गतियों के लिए यह चार प्रकार का होता है
नरक गत्यानुपूर्वी,
देव गत्यानुपूर्वी,
मनुष्य गत्यानुपूर्वी,
तिर्यंच गत्यानुपूर्वी
आनुपूर्वी नामकर्म का नाम जिस गति में जीव जा रहा है
उसके अनुसार होगा
लेकिन विग्रहगति में आत्मा की आकृति पूर्व शरीर के अनुसार ही होगी
जैसे नरक गत्यानुपूर्वी आत्मा को नरक की ओर ले जायेगा
लेकिन यदि वह मनुष्य या तिर्यंच शरीर छोड़कर नरक जा रहा है
तो विग्रहगति में आत्मा की आकृति मनुष्य या तिर्यंच की रहेगी
हमने गति और गत्यानुपूर्वी में अन्तर समझा
गति गमन कराती है
गत्यानुपूर्वी के माध्यम से गमन होता है
गति का उदय तो जन्म लेने के बाद भी रहता है
लेकिन गत्यानुपूर्वी का केवल विग्रहगति में रहता है
हमने जाना कि जैसी आयु होगी, वैसी ही गत्यानुपूर्वी और गति भी होगी
जैसे तिर्यंच आयु, तिर्यंच गति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी एक साथ होंगी
आयु जीव को आयु पर्यन्त उस गति के शरीर में रखती है
आयु समाप्त होने पर शरीर छूटता है और दूसरी आयु का उदय होता है
इसी समय दूसरी गति का भी उदय होता है
गत्यानुपूर्वी कर्म उसे दूसरे शरीर में उत्पन्न कराता है
गति नामकर्म के कारण जीव में गति की feeling आती है कि
मैं मनुष्य, तिर्यंच आदि हूँ