श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 35

सूत्र - 19,20,21

Description

इन्द्रियों से भी हम meditation कर सकते हैं l अन्तरप्पा बनने की process की शुरुआत l meditation में बाहरी चीजें याद आये तो क्या करना चाहिए? सूत्रों से ध्यान में साक्षी बनने की प्रक्रिया l श्रुतज्ञान हमारे मन का विषय है l श्रुत ज्ञान क्या है? ध्यान यदि होता है, तो श्रुतज्ञान से ही होता है l मन से मन हल्का भी होता है और भारी भी l मन ही मन को depression से निकलता है l मन के ऊपर किसी भी तरह का दबाव न बनाये l बाहर की बातों को मन के लिए खतरा न बनने दे l तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह आदि सुनना भी श्रुतज्ञान है l जिनवाणी से अपने को बाहर से cut-off करे l

Sutra

स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु:श्रोत्राणि।l19।l

स्पर्श-रस-गंध-वर्ण-शब्दास्तदर्था:।l२०ll

श्रुतमनिन्द्रियस्य।l२१।l

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WINNERS

Day 35

14th June, 2022

Anju jain

Gondia

WIINNER- 1

Ekta jain

Greater noida

WINNER-2

Trupti Modi

Surat

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

श्रुतज्ञान किस का विषय है?

  1. रसना इन्द्रिय का

  2. चक्षु इंद्रिय का

  3. कर्ण इन्द्रिय का

  4. मन का *

Abhyas (Practice Paper):

Summary

  1. हमने जाना कि अन्तरप्पा बनने की process, इन्द्रियों के माध्यम से meditation करने से शुरू होती है

    • इससे आप अनचाही वस्तु जो अपने mobile आदि पर देखली थी, उससे भी दूरी बना सकते हो

    • meditation में भी वह वस्तु याद आने पर हमें देखना है कि

      1. हमने उसे नेत्र इन्द्रिय से देखा था

      2. अब जब नेत्र बन्द हैं फिर bhi वह मुझे दिखाई दे रही है

      3. लेकिन न तो वह पदार्थ सामने है और न नेत्र का काम सामने है

      4. मेरे सामने तो केवल मैं हूँ

      5. इतना विचार करने से वह object धीरे-धीरे गायब होते चले जाएँगे

    • साक्षी बनने की प्रक्रिया इसी ज्ञान के साथ होती है

    • केवल श्वासें गिनने से कुछ नहीं होता

    • इन सूत्रों को ध्यान में उपयोग करना चाहिए


  1. सूत्र 21 में हमने जाना कि मन का विषय श्रुत यानि श्रुतज्ञान होता है

  2. श्रुतज्ञान हमें अर्थ से अर्थान्तर की ओर ले जाता है

    • इन्द्रियों के माध्यम से चीज ग्रहण करने के पश्चात् जो भी हमारे अन्दर ज्ञान चलता है, वह श्रुतज्ञान है

    • जैसे- किसी नए व्यक्ति को देखकर अपनी स्मृति से जानकारी निकालना मितिज्ञान है

      1. मगर आगे सोचना कि यह यहाँ क्यों आया? किससे मिलने आया? आदि श्रुतज्ञान है

  1. यानि जो सामने है उसके अलावा दूसरे पदार्थ का ज्ञान होना


  1. ध्यान में श्रुतज्ञान मतिज्ञान से ज्यादा परेशान करता है

  2. मगर ध्यान भी श्रुतज्ञान से ही होता है

    • disturb करने वाली चीज ही concentration के भी काम में आती है


  1. श्रुतज्ञान के माध्यम से मन उड़ान भरने लगता है

    • क्षण भर में मन किसी पर्वत चला जाता है या पुरानी knowledge से भी कई गुना आगे बढ़कर के सोचने लग जाता है


  1. मन के दोनों ही काम है

    • इससे खतरा भी है और ध्यान भी इससे ही होता है

    • इससे मन हल्का भी होता है और भारी भी होता है


  1. जैसे दूसरे को मरता देख कर मन कह सकता है कि कहीं ऐसा मेरे साथ भी न हो जाए

    • तो मन के ऊपर उनका pressure आने लगेगा, वह depression में जाने लगेगा

    • मगर मन को इस depression से उभारा भी मन से ही जा सकता है


  1. हमने समझा कि अपनी भावनाओं से, अपने ज्ञान से, अपने meditation से और अपनी आत्मा के विश्वास से;

    • बाहर की बातों को मन के लिए खतरा न बनने दें

    • बस जो हमारे पास है उसी को महसूस करें

  2. 5 इन्द्रियों का, 5 प्रकार के भावों का, 5 प्रकार के स्थावर-जीव आदि का चिन्तन करते रहने से मन बाहर की चीजों से परेशान नहीं होगा

    • और मन के अन्दर ज्ञान बढ़ेगा

    • यही श्रुतज्ञान मन की रक्षा करेगा


  1. तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह आदि सुनना भी श्रुतज्ञान है और इनमें मन लगाना चाहिए

  2. इन्द्रिय, मन और इनके विषयों को आत्मा से भिन्न जान कर जिनवाणी में मन लगाने की कोशिश करें