श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02
सूत्र - 01
सूत्र - 01
अनेकान्त के माध्यम से एकान्त का निरसन करो। विपरीत मिथ्यात्व। धर्म हिंसा में है कि अहिंसा में है?संशय मिथ्यात्व। संशय और विपरीत मिथ्यात्व हमेशा चलते रहते हैं। वैनयिक मिथ्यात्व।
मिथ्या-दर्शना-विरति-प्रमाद-कषाय-योगाबन्ध-हेतव:॥8.1॥
27th, March 2024
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हिंसा में धर्म मानना कौनसा मिथ्यात्व है?
एकांत मिथ्यात्व
विपरीत मिथ्यात्व*
संशय मिथ्यात्व
वैनयिक मिथ्यात्व
गृहीत मिथ्यात्व के भेदों में हमने जाना कि
एकान्त मिथ्यात्व में वस्तु के केवल एक धर्म को स्वीकार करके
अन्य चीजों का अभाव कर देते हैं जैसे
एकांत रूप से भाग्य को मानना
पुरूषार्थ को मानना
नियतिवाद यानि संसार में सब निश्चित है, ऐसा मानना
आदि सभी एकान्त मिथ्यात्व हैं
इसके अभाव के बाद ही हमें आगे की चीजें समझ आएंगी
आज इसे परोसने के लिए तरह-तरह के ग्रन्थ हैं, सूक्ति वाक्य हैं
जो एक ही बात पर जोर डालते हैं
हमने जाना कि पाँच प्रकार के मिथ्यात्व छूटे बिना,
सिर्फ देव-शास्त्र-गुरू पर श्रद्धान करने से,
भीतर से सम्यग्दर्शन का प्रादुर्भाव नहीं होता
वस्तु को अनेकान्त से जानने और एकान्त का निरसन करने से यह टूटता है
जैनों में भी बहुत लोग एकान्त मिथ्यात्व की धारणा में जीते हैं ?.
लेकिन उन्हें पता ही नहीं होता
अपने आसपास के माहौल, लोग, चर्चाएँ, शास्त्र, बखान आदि के कारण
वे अनेकान्त को तवज्जो नहीं दे पाते
जब जैन इसे नहीं छोड़ पा रहे
तो अन्य का क्या कहें?
दूसरे विपरीत मिथ्यात्व में हम चीज जैसी है, उसके विपरीत जानते और मानते हैं
जैसे स्त्री को भी मोक्ष होता है
भगवान कवलाहारी होते हैं
भगवान संसार के उद्धार के लिए पुनः संसार में आते हैं
पैसे, वस्त्रादि परिग्रह साथ भी साधु निर्ग्रन्थ है
क्योंकि साधुता तो भीतर से आती है, कपड़ों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है
घर में रहकर केवलज्ञान और सर्वज्ञदशा प्राप्त कर सकते हैं
मिथ्यात्व का मतलब है उल्टा श्रद्धान, wrong belief होना
इसमें हम सही-गलत का निर्णय किये बिना
जो अन्दर चलता है उसे ही सही मान लेते हैं
इसके कारण बहुत लोग अन्धकार को प्रकाश मनाकर इसी में पड़े रहते हैं
तीसरे संशय मिथ्यात्व में तत्त्वों, सिद्धांतों पर हमेशा एक संशय बना रहता है
जैसे मोक्ष होता है या नहीं
क्या तीन लोक हैं? क्या असंख्यात द्वीप-समुद्र, नरक-स्वर्ग हैं?
क्या भगवान ने दुनिया बनाई?
इसमें दिमाग दोनों तरफ उलझा रहता है
एक चीज पर दृढ नहीं होता
हमने जाना कि जो चीज जैसी नहीं है उसे वैसी मानना विपरीत मिथ्यात्व होता है
और वैसी है कि नहीं इस तरीके का भाव संशय मिथ्यात्व होता है
संशय में झूलते-झूलते यदि उल्टी दिशा में निर्णय हो जाए तो विपरीत मिथ्यात्व जो जाता है
जैसे पाप-पुण्य कुछ होता है क्या?
ये संशय मिथ्यात्व है
पाप-पुण्य कुछ नहीं होते,
ये विपरीत मिथ्यात्व है
हमें देव-शास्त्र-गुरू, संसार, मोक्ष, बन्ध आदि तत्त्वों के बारे में भी संशय रहता है
आज हर आदमी के अंदर संशय या विपरीत मिथ्यात्व के भाव चलते रहते हैं
चौथे वैनयिक मिथ्यात्व में हम दुनिया के सभी देव, देवता, गुरुजन, माता-पिता आदि आदरणीय लोगों की एक समान विनय करते हैं
सभी भगवानों के प्रति विनय का भाव रखते हैं,
सबको पूजते हैं,
सबको समान मानते हैं
क्योंकि हम ऐसा मानते हैं कि वे हमसे तो बड़े ही हैं
ये मिथ्यात्व है
हालांकि पढ़े-लिखे लोग इसको अच्छा मानते हैं
कि सबका आदर कर रहे हैं
लेकिन भगवान के स्वरुप का निश्चय नहीं होने के कारण
वे मिथ्यात्व को ही बढ़ा रहा हैं
प्रायः college, university courses भी इसी धारणा को आगे बढ़ाते हैं
क्योंकि दूसरों के प्रति समानता के भाव से, सब उसे स्वीकार कर लेते हैं
चूँकि जैन दर्शन एक एकतरफा है
इसलिए academic level पर इसका बहुत ज्यादा प्रचार नहीं हो पाता है
सही होते हुए भी इसकी बातें नहीं रखी जाती
हमने जाना की अच्छे ढंग से परोसे जाने वाले इन मिथ्यात्वों से
हम चीजों को गहराई से समझकर ही छूट सकते हैं
हर मिथ्यात्व अपने-आप में सशक्त है, कमजोर कोई नहीं है