श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 08
सूत्र - 01
सूत्र - 01
प्रमाद के कारण से क्या-क्या भाव हो जाते हैं? प्रमादी सोया हुआ है और अप्रमत्त जागा हुआ हैं। विकथा प्रमाद से बचने के लिए शास्त्र अनुसार बोलना चाहिए। इन्द्रिय विषयों के प्रमाद से बचने के उपाय। प्रमाद के दो हेतु कषाय और योग। एक से लेकर तेरह गुणस्थानों तक बन्ध के कारण जानना।
मिथ्या-दर्शना-विरति-प्रमाद-कषाय-योगाबन्ध-हेतव:॥8.1॥
04th, April 2024
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निम्न में से छठवें गुणस्थान में कर्म बंध का कौनसा हेतु नहीं रहेगा?
कषाय
अविरति*
प्रमाद
योग
हमने जाना कि बंध के हेतुओं में प्रमाद
मिथ्यात्व, अविरति
और कषाय, योग के बीच में आता है
प्रमाद के कारण व्यक्ति सब कुछ समझते हुए भी, अपने योग्य आचरण नहीं कर पाता
सम्यग्दर्शन और विरति के कारणों में नहीं लग पाता
कषाय और मन-वचन-काय की दुष्ट प्रवृत्ति कर जाता है
प्रमाद के कारण से
सम्यक्त्व में दोष लगता है
देव-शास्त्र-गुरू के अनादर का भाव आता है
भक्ति में, विनय में कमी आती है
व्रत पालन के लिए भावशुद्धि में कमी आती है
बुढ़ापे में भी संयम, व्रत के साथ सल्लेखना की तैयारी नहीं करते
इसके कारण ही हम
आसपास के लोगों को देखकर आठ मूल गुणों का पालन भी नहीं करते हैं
घर में व्रत संयम का भाव नहीं करते
शक्ति होते हुए भी, व्रत उपवास नहीं करते
यह सब प्रमाद के कारण कुशलता में अनादर है
इससे अच्छे कार्यों में मन नहीं लगता,
लगते-लगते छूट जाता है,
उत्साह में कमी आ जाती है
धीरे-धीरे हमें प्रमाद भी अच्छा लगने लग जाता है
आचार्य कहते हैं- जो प्रमादी है, वह सोया हुआ है
जो अप्रमत्त है वह जागा हुआ है
प्रमाद का नाम ही सोना है
क्योंकि हम अपने गुणों को खुद प्रकट नहीं कर रहे
आचार्यों ने इन प्रमादों को जीतने के भी अलग-अलग उपाय बताये हैं
विकथा प्रमाद से बचने के लिए
हम 'अनुवीचि भाषणं' भावना के अनुरूप व्यवहार करें
चूँकि शास्त्रों में विकथाओं का उल्लेख नहीं होता
इसलिए उतना ही बोलें जो शास्त्रों के अनुसार हो
या फिर मौन रहें
हमेशा सत्य बोलने की भावना और भाषा समिति का भाव रख कर बोलें
कषाय प्रमाद से बचने के लिए
हम कषाय भाव की, उसके दुष्परिणामों की निन्दा करें
और कषाय के विपरीत क्षमादि भावों की भावना करें
इन्द्रिय विषयों में प्रवृत्ति से बचने के लिए
उससे उत्पन्न दोषों को याद करें
इन दुष्प्रवृत्तियों से आयी भाव विशुद्धि में कमी को ध्यान में रखकर
इनसे बचने की कोशिश करें
पुराण ग्रन्थों को पढ़कर इनसे होने वाले अनर्थों और उनके फल का चिन्तन करें
सुकून और चैन में निद्रा आती है
इससे बचने के लिए हम संसार की दशा का चिन्तन करें
संसार से भयभीत होने का भाव रखें कि
कहीं हमारी आत्मा चौरासी लाख योनियाँ में गिर न जाये
इनमें जन्म न ले लें
आगामी दुःख से शोक का भाव रखें
या फिर किसी भी अनुयोग के स्वाध्याय में मन लगाकर उसका चिन्तन करें
स्नेह प्रमाद को कम करने के लिए हम चिन्तन करें कि
इन बन्धनों के कारण हम आत्महित नहीं कर पाते, अपने कल्याण में नहीं लग पाते
यह स्नेह, बन्धता अस्थिर होती है
इसे अस्थिर मानने से, इनमें लिप्तता कम होती है
हमने जाना बन्ध के हेतु हमारे भीतर पड़े होते हैं, बाहर नहीं
आचार्यों द्वारा बताये उपायों के प्रभाव से ही पाँचों प्रकार की प्रमाद की प्रवृत्तियाँ छूटती हैं
प्रमाद छूटने के बाद भी दो बन्ध के हेतु बच जाते हैं - कषाय और योग
यहाँ कषाय का अब एक सूक्ष्म अंश रह जाता है
क्योंकि प्रमाद छठवें गुणस्थान तक है
और इसके बाद सप्तम से दसवें गुणस्थान तक मात्र संज्वलन कषाय है
और ग्यारवें से तेरहवें गुणस्थान में केवल योग है
चौदहवाँ गुणस्थान बन्ध रहित होता है
हमने गुणस्थानों के अनुसार कर्म बन्ध के कारण जाने
पहले गुणस्थान में मिथ्यादर्शन आदि सभी पाँच कारण होते हैं
दूसरे से चौथे गुणस्थान में मिथ्यात्व के अभाव के कारण
अविरति से लेकर योग तक चार कारण होते हैं
पाँचवें गुणस्थान में अविरति पूरी तरह नहीं जाती
मिश्र रूप - कुछ विरति, कुछ अविरति रहती है
इसलिए इस गुणस्थान में भी बन्ध के चारों कारण होते हैं