श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 16

सूत्र - 25, 26, 27

Description

अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन मतिज्ञान और श्रुतज्ञान किस प्रकार के ज्ञेयों को जानते हैं? अवधिज्ञान का क्या विषय है?

Sutra

विशुद्धय प्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः।।1.25।।

मति श्रुतयोर्निबंधों द्रव्येष्व सर्व पर्यायेषु।।1.26।।

रूपिष्ववधे।।1.27।।



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WINNERS

Day 16

15th March, 2022

वीना जैन

दिल्ली

WINNER-1

Amita Jain

Jhansi

WINNER-2

Bahubali Chougule

Pune

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कौनसे ज्ञान के माध्यम से परमाणु को जाना जा सकता है?

  1. देशावधि ज्ञान

  2. परमावधि ज्ञान

  3. सर्वावधि ज्ञान *

  4. सूक्ष्मावधि ज्ञान

Abhyas (Practice Paper) : https://forms.gle/BpgMRyW6GDVgRyE97

Summary


  1. सम्यग्ज्ञान के प्रकरण में हम मनःपर्यय ज्ञान के भेदों की विशेषताएँ समझ रहे थे

  2. कल हमने जाना कि विपुलमति ज्ञान की विशुद्धि ऋजुमति ज्ञान से अधिक होती है

  3. आज हमने जाना कि ऋजुमति ज्ञान प्रतिपाती होता है अर्थात इससे संयत आत्मा गिर सकता है

  4. जबकि विपुलमति अप्रतिपाती होता है

  5. प्रतिपाती अर्थात यदि वह आत्मा उपशम श्रेणी चढ़ता हैं तो ग्यारहवें गुणस्थान तक पहुँचने के बाद उसे नियम से छटवें, सातवें गुणस्थान में वापस आना होता है

  6. विपुलमति ज्ञानी नियम से क्षपक श्रेणी पर ही चढ़ता है

  1. सूत्र 25 - विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयोऽवधिमनः पर्यययोः में हमने जाना कि मनःपर्यय ज्ञान अवधिज्ञान से अधिक विशुद्धि वाला होता है

  2. अवधिज्ञानी जिस क्षेत्र, स्थान को स्थूल रूप से जानेंगे और मनःपर्यय ज्ञानी उस क्षेत्र को बारीकी, सूक्ष्मता से जानेंगे

  3. सर्वावधि अवधिज्ञान अन्त के परमाणु तक को भी ग्रहण कर लेता है, मनःपर्यय ज्ञान उसके अनन्तवें भाग को भी ग्रहण कर लेता है

  4. इसी सूक्ष्मता के ज्ञान के कारण यह अधिक विशुद्ध कहलाता है

  5. इसका क्षेत्र वर्तमान की अपेक्षा से तो सीमित होता है, जानने की अपेक्षा से बहुत असीम होता है

  6. क्षेत्र की अपेक्षा अवधिज्ञान पूरे लोक को जान सकता है

  7. वहीं मनःपर्यय ज्ञान के लिए जिसके मन में स्थित पथार्थ जान रहे है वह पैंतालीस लाख योजन के मनुष्य क्षेत्र में ही होना चाहिए

  8. अवधिज्ञान के स्वामी नारकी, देव, मनुष्य, तिर्यंच भी होते हैं वहीं मनःपर्यय ज्ञान के स्वामी केवल संयत मनुष्य ही होते हैं

  1. सूत्र 26 मति श्रुतयोर्निबंधों द्रव्येष्व सर्व पर्यायेषु में हमने जान कि मतिज्ञान और श्रुतज्ञान सभी द्रव्यों को को जानते हैं

  2. परन्तु उनकी सभी पर्यायों को नहीं जानते

  3. जैसे श्रुतकेवली को द्वादशांग का पुर्ण ज्ञान होगा और वे सब द्रव्यों को तो जानेंगे लेकिन

    • उनकी सभी पर्यायों को नहीं जान पाएँगे


  1. केवलज्ञान, श्रुतज्ञान में पर्याय की अपेक्षा से ही विशषेता है

  2. द्रव्य की अपेक्षा दोनों एक समान ही जानते हैं

  3. केवलज्ञान प्रत्यक्ष है परन्तु श्रुतज्ञान परोक्ष है

  1. सूत्र 27 - रूपिष्ववधे में हमने जाना कि अवधिज्ञान का विषय रूपी अर्थात पौद्गलिक पदार्थों ही हैं

  2. वह शुद्ध आत्माएँ को, शुद्ध द्रव्यों को नहीं पकड़ पाएगा

  3. विषय की दृष्टि से मतिज्ञान, श्रुतज्ञान रूपी और अरूपी दोनों पदार्थों को जानता है

  4. अवधिज्ञानी संसारी जीवों की आत्माएँ को कर्म के माध्यम से जानेगा

  5. भव्यत्व, अभव्यत्व गुण सिर्फ केवलज्ञान का ही विषय है