श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02
सूत्र - 01
सूत्र - 01
काल द्रव्य में काया का अभाव है। धर्म द्रव्य ट्रैन की पटरी की तरह सहायक। अधर्म द्रव्य की चर्चा विस्तार पूर्वक।
अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः।।१।।
दीपशिखा जैन
जींद हरियाणा
WINNER-1
Pushpa Tongia
Indore
WINNER-2
Sapna R jain
Gondia Maharashtra
WINNER-3
कौनसा द्रव्य ट्रेन की पटरी की तरह सहायक होता है?
काल
धर्म*
अधर्म
आकाश
हमने जाना कि जैन science के अजीव और काय पदार्थों को समझकर
हमें सम्पूर्ण cosmos की knowledge बहुत easily मिल सकती है
काया का मतलब होता है- शरीर या काय
यह मनुष्य के शरीर जैसा नहीं होता
अनेक परमाणुओं के प्रचय, समूह, group या उन परमाणुओं के समूह से बनने वाले molecule आदि को काया कहते हैं
प्रदेश की अंतिम इकाई को परमाणु कहते हैं
इसका विभाजन नहीं कर सकते
जैसे अनंत परमाणुओं के मिलने से एक body formation होता है
उसी प्रकार धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल द्रव्य के अन्दर बहुत सारे प्रदेश होते हैं
छह द्रव्यों में से चार द्रव्य - धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल, अजीव और काया वाले होते हैं
जीव द्रव्य अजीव नहीं होता
और काल द्रव्य में काया नहीं होती
काल के अनेक परमाणु कभी इकट्ठे होकर के एक स्कन्ध नहीं बन सकते
उनमें बहुप्रदेशीपना नहीं है
इसलिए काय का अभाव है
इनमें धर्म, अधर्म और आकाश एक द्रव्य हैं
और पुद्गल अनेक द्रव्य हैं
वहीं धर्म-अधर्म असंख्यात प्रदेशी
आकाश अनंत प्रदेशी
और पुद्गल अनेक तरह के प्रदेश वाले द्रव्य हैं
यहाँ पर जो धर्म-अधर्म है,
वह वो धर्म-अधर्म नहीं है वो हम सुनते रहते हैं
धर्म द्रव्य पूरे लोक के अन्दर फैला हुआ एक ऐसा अजीव पदार्थ है
जो सभी गतिमान पदार्थों की गति के लिए एक medium या माध्यम का काम करता है
यह उनकी गति में केवल सहायक होता है
उन्हें गति कराता नहीं है
जैसे पटरी train के चलने में सहायक है
लेकिन अगर train नहीं चल रही
तो पटरी बिछी रहेगी उसे चलाएगी नहीं
इसी तरीके से, जीव और पुद्गल की गति में भी धर्म द्रव्य सहायक है
बिना धर्म द्रव्य के हम हाथ, मुँह भी नहीं चला सकते
science भी मानता है कि पुद्गलों की गति किसी न किसी अन्य द्रव्य की सहायता से होती है
लेकिन उसे कुछ भी directly observe करने में नहीं आता
यह question mark जैन science को पढ़ने और accept करने से ही हटेगा
धर्म द्रव्य का नाम तीर्थंकर वर्धमान या उनसे पहले किसी तीर्थंकर ने नहीं दिया
जहाँ कहीं पर भी सर्वज्ञ उपदेश देते हैं, चाहे वे भरत, ऐरावत, विदेह आदि क्षेत्र के हों
वे यही कहेंगे कि जीव और पुद्गल की गति में सहायक धर्म द्रव्य है
जहाँ-जहाँ पर धर्म द्रव्य फैला हुआ है
वहीं पर असंख्यात प्रदेशों को धारण करके एक और द्रव्य होता है
जो किसी भी पदार्थ को रुकने में सहायक होता है
इसे अधर्म द्रव्य कहते हैं
आचार्य अकलंक देव के अनुसार अधर्म द्रव्य की निमित्तता के कारण ही
लोक का आकार जैसा बताया गया है वैसा ही बना रहता है
अधोलोक का वेत्रासन आकार
मध्यलोक का झल्लरी सा आकार
और ऊर्ध्वलोक का अर्ध मृदंग के समान
अधर्म द्रव्य के कारण इसमें किसी भी तरीके का variation नहीं होता