श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 01
सूत्र - 01
सूत्र - 01
स्व-भाव और स्वभाव में अन्तर। औपशमिक भाव क्या है? उपशम भाव का अर्थ। क्षायिक भाव का मतलब। शब्दावली के अनुसार सत्यानाश नहीं सत्तानाश शब्द होना चाहिए। सत् अर्थात् अस्तित्व। औपशमिक और क्षायिक इन दो भावों का विशेष महत्व है। आत्मा में कर्मों का अत्यन्त अभाव हो जाना ही क्षय कहलाता है।
औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च।l1ll
Archana Jain
दिल्ली
WIINNER- 1
Veena Patni
Jaipur
WINNER-2
पद्मा जैन
दिल्ली
WINNER-3
औपशमिक सम्यक दर्शन का काल कितना होता है?
एक अंतर्मुहुर्त *
एक सागर काल
एक कोड़ा कोड़ी सागर काल
एक समय
आज हमने संसार में अनन्त जीव की आत्मा में उत्पन्न होने वाले पाँच प्रकार के भावों को जाना
औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च
औपशमिक, क्षायिक, मिश्र (क्षयोपशम), औदयिक और पारिणामिक जीव के स्व-तत्त्वम् या स्व-भाव हैं
आगे हम जानेंगे कि ये स्व-भाव होते हुए भी स्वभाव नहीं हैं
आत्मा और आत्मा में कर्मों के ही सब भावों का बनना-बिगड़ना चलता है, इसी का नाम संसार है
इन दोनों के पृथक होने का नाम मोक्ष है
‘औपशमिक’ शब्द का अर्थ है उपशम मतलब शमित हो जाना, दब जाना
यहाँ आत्मा में कर्मों की शक्ति को किसी भी पुरुषार्थ से, विशुद्धि के भाव से दबा देना को उपशम कहा हिअ और उससे उत्पन्न आत्मा के भाव को औपशमिक-भाव कहा है
आत्मा में कर्मों के क्षय या सत्तानाश से जो आत्मा में जो भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें ‘क्षायिक-भाव’ कहते हैं
सत् अर्थात् अस्तित्व, सत्ता
कर्म की सत्ता का नाश आत्मा से होने पर आत्मा में जो भाव उत्पन्न होगा, उसका नाम कहलाएगा- ‘क्षायिक-भाव’
औपशमिक और क्षायिक भावों का भव्य जीव के लिए मोक्ष मार्ग में एक अलग स्थान है
मोक्षमार्ग की शुरुआत उपशम भाव से उत्पन्न औपशमिक सम्यग्दर्शन से ही होती है
मिथ्यात्व आदि के कर्मों के उपशमन से उत्पन्न सम्यग्दर्शन को प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन कहते हैं
अनादि मिथ्यादृष्टि जीव सबसे पहले इसी सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है
आत्मा में कर्मों का अत्यन्त अभाव का नाम को क्षय कहते हैं और उससे उत्पन्न भाव को क्षायिक भाव
एक बार कर्मों की सत्ता का नाश हो गया तो दुबारा वह कर्म आत्मा में उत्पन्न हो ही नहीं सकता