श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 08

सूत्र - 4

Description

क्षायिक दान की लब्धि l भोग अन्तराय कर्म का अर्थ l अरिहन्त भगवान के लिए भोग क्या है? पुष्पवृष्टि आदि कैसी होती है? तीर्थंकरों के चरणों के नीचे 225 कमलों की रचना होती है l 225 कमल की रचना सिर्फ तीर्थंकर भगवान के चरणों के नीचे होती है सामान्य तीर्थंकर के चरणों के नीचे नहीं होती ! तीर्थंकर नामकर्म का उदय होता है उन्हीं को यह फल प्राप्त होगा l क्षायिक भाव का फल तो अरिहन्त ही अनुभूत कर सकेंगें l भोग और उपभोग में अन्तर l उपभोग क्या है? तीर्थंकर के पास क्या रहता है? समवसरण आदि उपभोग या आत्मिक उपलब्धियाँ l

Sutra

ज्ञान-दर्शन-दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च।।४।।

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WINNERS

Day 08

19th Apr, 2022

Darshana Sangai

Anjangaon Surji

WIINNER- 1

Manjudidi Jain

Deulgaonraja

WINNER-2

Babita jain

Indore (M.P.)

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कौन सा प्रातिहार्य भोगान्‍तराय-कर्म के क्षय से होता है?

  1. पुष्प वृष्टि *

  2. चँवर

  3. भामंडल

  4. छत्र त्रय

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. कल हमने जाना था कि क्षायिक लाभ से अरिहन्तों का शरीर बिना कवलाहार के भी बिना मुरझाये, ढीला पड़े करोंड़ों वर्षों तक बना रह सकता है

  2. यह आत्मा की शक्ति है लेकिन फल शरीर में दिखाई देता है

  3. शरीर के लिए हमें भोजन की आवश्यकता उसके योग्य पुद्गल-वर्गणाओं को ग्रहण करने के लिए होती है

  4. परन्तु क्षायिक-लाभ होने के पश्चात् अरिहंत अनन्‍तानन्‍त पुद्गल वर्गणाओं को बिना भोजन के ग्रहण करते रहते हैं

  1. भोग अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से हमें अपने भोग की वस्तुयें उपयोग के लिए, भोगने के लिए मिलती हैं

  2. अरिहन्त भगवान में इसके क्षय होने से

    • जहाँ वे बैठते हैं, वहाँ पुष्पवृष्टि होगी

    • गन्धोदक-वृष्टि होगी

    • सुगन्धित पवन बहेगी


  1. वे भले ही इन सब पुष्पवृष्टि आदि का भोग नहीं कर रहे हैं लेकिन उनका क्षायिक भोग दूसरों के काम आ रहा है

  2. तीर्थंकरों के चरणों के नीचे हर कदम पर 225 कमलों की रचना होती है

    • जैसे जैसे वे आगे बढ़ते हैं कमल आगे आगे बनते हैं और पीछे पीछे मिट जाते हैं

    • यह भोग अन्तराय कर्म के क्षय के साथ तीर्थंकर-नामकर्म और शरीर-नामकर्म के उदय से होता है

    • इस कारण कमल की रचना सिर्फ तीर्थंकर भगवान के चरणों के नीचे होती है सामान्य केवली के नहीं


  1. सामान्य-केवली, जिनके तीर्थंकर-नामकर्म का उदय नहीं है उनके पास भी क्षायिक-लब्धियाँ तो हैं लेकिन उनके लिए ये लब्धियाँ आत्मा में ही बार-बार घटित होने वाली अनुभूति की प्रक्रिया होंगी

    • बाहर इनका किसी भी पुद्गल से सम्‍बन्‍ध नहीं होगा


  1. हमने भोग और उपभोग में अन्तर को जाना

  2. भोग की वस्तु केवल एकबार उपयोग में आती हैं जैसे भोजन, पुष्पों की माला, पुष्पवृष्टि, गन्धोदक-वृष्टि

  3. उपभोग की वस्तु बार-बार भोगने में आती है जैसे कपड़े, मकान, जेवर

  4. उपभोगान्‍तराय-कर्म के क्षय से उपभोग की सामग्री भी सिर्फ उन्हीं केवली को मिलेगी जिनके तीर्थंकर-नामकर्म और शरीर-नामकर्म का उदय भी साथ में हो

    • जैसे जहाँ वे बैठे हैं, सिंहासन लगा हुआ है

    • 8 प्रातिहार्यों में से 7 प्रातिहार्य तो उपभोगान्‍तराय-कर्म के क्षय से होते हैं

    • और पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य भोगान्‍तराय-कर्म के क्षय से होता है


  1. यहाँ भी उपभोग सामग्री भगवान् की है पर वे भोग नहीं रहे हैं

  2. हमने जाना कि कुछ प्रश्न अनसुलझे हैं जैसे जब तीर्थंकर योग-निरोध करने चले जाते हैं तो उस समय पर वह समवसरण आदि सभी भोग उपभोग की सामिग्री छोड़ देते हैं लेकिन तीर्थंकर-नामकर्म और शरीर-नामकर्म का उदय तो तब भी चल रहा होता है

    • फिर भोग-उपभोग की सामग्रियाँ छूट क्यों जाती हैं?

  3. आचार्यों ने बताया है कर्म के क्षय का जो कार्य है जैसे अष्ट-प्रातिहार्य प्रकट होना; वो केवल हमें समझाने के लिए है

    • वस्तुतः ये आत्मिक उपलब्धियाँ हैं, आत्मा के क्षायिक-भाव हैं

    • और आत्मा की अनुभूति का ही विषय हैं

    • इन्हें कोई भी समझा नहीं सकता