श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 28
सूत्र - 32
सूत्र - 32
अनर्थदंड व्रत के अतिचार। mobile आदि उपकरणों और apps के द्वारा पाप का बंध एवं बच्चों पर दुष्प्रभाव। पाप से बचकर ही पुण्य कमाया जा सकता है। जब पाप बढ़ेगा तो क्या होगा?
कंदर्प-कौत्कुच्य-मौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि॥7.32॥
19th, Jan 2024
Shobha Jain
Maharashtra
WINNER-1
Hemant Jain
Vadodara
WINNER-2
Kokila Jain
Delhi
WINNER-3
अशिष्ट वचनों का प्रयोग कौनसा अतिचार है?
कंदर्प*
कौत्कुच्य
मौखर्य
असमीक्ष्य अधिकरण
सूत्र बत्तीस कंदर्प-कौत्कुच्य-मौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि में हमने अनर्थदंड व्रत के पाँच अतिचार जाने
ये बिना प्रयोजन होने वाली पाप वृत्तियों से बचने के लिए, सामान्य से भी पालने योग्य हैं
पहले कंदर्प दोष में हास्य मिश्रित अशिष्ट वचनों का प्रयोग होता है
इन वचनों में रागादि की तीव्रता के कारण से कामुकता और हास्य का भी समावेश होता है
कंदर्परूप प्रवृत्ति गलियों में घूमते बच्चे, निम्न, असभ्य लोग तो करते हैं
सभ्य लोग, जो व्रतादि लेते हैं, नहीं करते
लेकिन असभ्य लोगों की संगति से, पूर्व प्रयोग और संस्कारों के कारण, क्वचित-कदाचित अशिष्ट वचनों में प्रवृत्ति हो जाती है
दूसरे कौत्कुच्य अतिचार में कंदर्प के साथ-साथ काय की चेष्टाऐं भी अशिष्ट हो जाती हैं
इससे दूसरे के अंदर भी कुछ अश्लीलता या कामुकता प्रविष्ट हो जाती है
बिना वजह यार-दोस्तों के बीच में घूमते, चौराहों आदि पर खड़े लोग इस तरह की प्रवृत्तियाँ अक्सर करते हैं
इससे बिना वजह पाप का बंध होता है
मौखर्य का अर्थ है मुखरित होना
इस तीसरे दोष में हम बहुत ज्यादा बकवास बातें करते हैं
घंटो-घंटो आपस में हंसी-मजाक करने वाले लड़के, लड़कियाँ के ग्रुप में
इसी तरह की nonsense चेष्टाएँ होती हैं
जिससे कुछ हासिल नहीं होता
बेवजह time, energy और दिमाग ख़राब होता है
और पाप कर्म का बंध होता है
हमने जाना कि गृहस्थ अनर्थदंडों को रोककर,
बहुत सारे पाप बंधों से बच सकते हैं
कंदर्प, कौत्कुच्य और मौखर्य की चेष्टाएँ बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती हैं
चौथे असमीक्ष्य अधिकरण दोष में
असमीक्ष्य यानि बिना विचारे, बिना purpose के
अधिकरण यानि मन-वचन-काय की प्रवृत्ति करते हैं
जैसे मन में कोई खोटे विचार आयें तो
उसमें बिना विचारे बिना मतलब के अधिक-अधिक involve होते जाते हैं
आजकल बच्चे mobile पर YouTube, Instagram आदि बस एक बार on करते हैं
फिर एक के अंदर एक करके
सारा समय इसी में निकल जाता है
बच्चे mobile में मन इसलिए लगाए रखते हैं
क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं कि मन कहाँ लगाना है?
जो बच्चे पहले कुछ भी नहीं देखते थे
उनका मन भी अब उसी में लगा रहता है
इसमें जो हँसी-मजाक, game, photos, videos आदि होते हैं
वे एक रील की तरह चलते रहते हैं
बच्चे उससे अपने आप को connect कर कर लेते हैं
और मन में negativity आती चली जाती है
यह सब मन का असमीक्ष्य अधिकरण है
क्योंकि इसका कोई प्रयोजन नहीं है
न knowledge gain का
न विशेष focus का
मन की खोटी प्रवृत्ति में interest आने से
बच्चे वचन का भी असमीक्ष्य अधिकरण करना सीख जाते हैं
वैसी ही हँसी मजाक करेंगे, गंदे वचन बड़ों से, friends से बोलेंगे
और फिर काय की चेष्टा जुड़ने से यह काय का भी असमीक्ष्य अधिकरण हो जाता है
अंतिम दोष उपभोग परिभोग का अनर्थक्य में बिल्कुल निष्प्रयोजनीय उपभोग और परिभोग की सामग्री को भी अपने पास में रखे रहते हैं
जैसे उपयोग में न आने वाले वस्त्र, आभूषण, भोजन सामग्री आदि
मुनि श्री ने गृहस्थों को पुण्य, भाग्य बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका बताया
और वह है पाप से बचना
चूँकि पाप की प्रवृतियाँ बहुत हैं
इसलिए हमें पुण्य कमाने का विचार तो कभी-कभार आता है
हमने जाना कि बिना प्रयोजन के आ रहे पाप का बड़ा कारण मोबाइल है
इससे बच्चों में पाप प्रवृत्ति, negativity इतनी बढ़ जाती है कि
वे माता-पिता की बात नहीं मानते
स्वास्थ्य खराब करते हैं
पढ़ते-लिखते नहीं हैं
उनके लिए आगे दुःख ही दुःख मिलता है
इसलिए हर बच्चे को लगना चाहिए कि
वे mobile से अपने को नहीं बचा रहे हैं
बल्कि पाप के बंध से बचा रहे हैं