श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 25
सूत्र - 27,28
सूत्र - 27,28
स्तेनप्रयोग - चोरी की प्रेरणा देना। ‘तदा हृता दान’। विरुद्ध राज्य का अतिक्रमण। हीनाधिकमानोन्मान। परिगृहीत अपरिगृहित।
स्तेनप्रयोग-तदाहृतादान-विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान-प्रतिरूपकव्यवहाराः ॥7.27॥
परविवाह-करणेत्वरिका -परिगृहीता-परिगृहीता गमनानङ्गक्रीडा-काम-तीव्राभिनिवेशाः ॥7.28॥
16th, Jan 2024
Aditi Jain
Delhi
WINNER-1
रेनू जैन
दिल्ली
WINNER-2
Dr Sonal Gandhi
Nanded, maharashtra
WINNER-3
प्रतिरूपक व्यवहार क्या होता है?
लेते समय अधिक लेना, देते समय कम देना
चोरी के सामान को ग्रहण करना
शासन के नियम-कानून के विरुद्ध चलना
असली चीजों में नकली मिलाना*
सूत्र सत्ताईस-
स्तेनप्रयोग-तदाहृतादान-विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान-प्रतिरूपकव्यवहाराः में हमने अचौर्य अणुव्रत के पाँच अतिचारों को जाना
जो चोरी नहीं करते हुए भी हमें लग जाते हैं
पहले स्तेनप्रयोग दोष में हम स्वयं तो चोरी का कार्य नहीं करते
परन्तु चोरी का प्रयोग कराते हैं यानि उसकी प्रेरणा देते हैं
अणुव्रती का नियम मुख्य रूप से कृत का होता है अर्थात् मैं चोरी नहीं करूँगा
दूसरों से चोरी करा देना या उनकी अनुमोदना करने से इसमें दोष लगता है
अचौर्य अणुव्रती स्तेन यानि चोरी का प्रयोग यानि प्रेरणा नहीं देता
मुनि श्री ने समझाया कि कभी-कभी अणुव्रत के अतिचार भी
सिर्फ अतिचार न लगकर बड़े-बड़े दोष लगते हैं
लेकिन आचार्यों ने गृहस्थ श्रावक की परिस्थितियों को देखते हुए इसी तरह कृतपूर्वक व्रतों का पालन करने को कहा है
इनके निरतिचार पालन में मुख्यरूप से कारित और अनुमोदना का भी त्याग आ जाता है
रत्नकरण्डक श्रावकाचार के अनुसार पाँच व्रतों के निर्दोष पालन से
श्रावक सुरलोक में बहुत महान ऋद्धि वाला देव बन जाता है
तदाहृता-दान दोष में चोर जो सामान चुरा कर लाया है
उसे पैसे या बिना पैसे दिए ग्रहण करते हैं
दोनों को ही लोक में चोरी के रूप में कहते हैं
इसलिए चोरी का माल बेचने वाले दुकानदारों को भी पकड़ा जाता है
मुनि श्री ने समझाया कि अगर ऐसा क्वचित-कदाचित कभी हो जाए
कोई अनजान पैसे लेकर सामान दे जाये
और हमें पता न हो कि वह चोरी का है
तो यह अतिचार हुआ
पर अगर हम आदतन चोरी का माल सस्ते में लेते हैं
तो फिर अचौर्य व्रत का पूरा भंग ही हो गया
तीसरे दोष विरुद्ध राज्य का अतिक्रमण में हम राज्य के नियम-कानून के विरुद्ध चल कर
उनका अतिक्रमण करते हैं
उनका उल्लंघन करते हैं
यह भी चोरी में आता है
जैसे borders पार से tax बचाते हुए bypass area से माल मंगाना
बिजली के बिल में चोरी करना या GST नहीं देना अदि
अचौर्य अणुव्रती अपने व्यापार को साफ-सुथरा रखता है
ताकि उसे राज्य के नियमों का उल्लंघन न करना पड़े
और वह निश्चिन्त होकर धर्म ध्यान कर सकें
इसी प्रकार हीनाधिकमानोन्मान में हम चीजों को लेते समय अलग तराजू से ज्यादा ले लेते हैं
और देते समय दूसरे तराजू से कम देते हैं
हम लीटर से नापने वाली liquid और बाट से किलो में नापने वाली चीजों में हीनाधिक कर लेते हैं
यह भी चोरी के दोष में आता है
अचौर्य अणुव्रतधारी ऐसा नहीं करता
अंतिम प्रतिरूपक व्यवहार में असली चीज के रूप-रंग की नकली चीज को उसमें मिलाकर
या अलग से बेचते हैं
जैसे सरसों के तेल में, घी में या सोने-चांदी में मिलावट करके
तो यह अचौर्य अणुव्रत में अतिचार है
सूत्र अट्ठाईस परविवाह-करणेत्वरिका-परिगृहीता-परिगृहीता गमनानङ्गक्रीडा-काम-तीव्राभिनिवेशाः में हमने ब्रह्मचर्य अणुव्रत के दोषों को जाना
दूसरे के संबंधों को मिलाने में interest लेना पहला परविवाह-करण दोष है
ब्रह्मचर्य अणुव्रती ऐसा नहीं करते क्योंकि जिसका उनके लिए त्याग है
उसकी संयोजना दूसरे के लिए क्यों कराना?
अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ - बेटे-बेटियाँ के रिश्ते तो वह कराता है
लेकिन अन्य पड़ोसी, रिश्तेदार आदि के नहीं
इत्वरिका का अर्थ है चरित्रहीन, बाजारू स्त्रियाँ
जिन्हें शास्त्रों में कुश्चली या वेश्या कहते हैं
ये परिगृहीत और अपरिगृहित होती हैं
परिगृहीत के पति या स्वामी होता है
अपरिगृहीत के नहीं
ऐसी स्त्रियों के साथ में गमन करना इत्वरिका परीगृहिता और इत्वरिका अपरीगृहिता गमन नाम के दूसरे और तीसरे दोष होते हैं
गमन का अर्थ यहाँ चलना-फिरना भी होता है
और संगम, समागम भी
चौथे अनङ्ग क्रीड़ा दोष में अपने कामांगों से क्रीड़ा न करके
और शरीर के अन्य अंगों से क्रीड़ा करते हैं, अणुव्रती ऐसा नहीं करता