श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 28
सूत्र - 13
सूत्र - 13
एकेन्द्रिय जीव अपनी काया पहले से ही उपस्थित द्रव्य को बना लेते हैं l पाँचों ही स्थावरों के शरीरों को एकान्त रूप से कलेवर नहीं है l स्थावर पुद्गल रूप भी हैं और जीव रूप l पृथ्वी आदि जीव कहाँ है और कहाँ से निकल गए नहीं बताया जा सकता l हमारा जीवन इन सभी चीजों से चल रहा हैl वनस्पति के भेदों को समझे l साधारण वनस्पति को ही निगोद कहते हैं l प्रत्येक वनस्पति के दो भेद होते हैं l हमारे योग्य सभी वनस्पति दोनों प्रकार की होती है l
पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावरा:।l१३।l
Mamta Jain
Delhi
WIINNER- 1
शिल्पी मित्तल जैन
फिरोजाबाद
WINNER-2
Divyaprabha Shah
Surat
WINNER-3
निगोद जीव किसको कहते हैं?
साधारण वनस्पति कायिक जीव को *
प्रत्येक वनस्पति कायिक जीव को
सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति को
अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति को
हमने जाना एकेन्द्रिय जीव पहले से ही उपस्थित द्रव्य को अपनी काया बना लेते हैं
जैसे जीव सामान्य पृथ्वी को ही अपनी काया बनकर पृथ्वीकायिक होता है
यह स्थावरों की विशेषता है
त्रस में ये व्यवस्था नहीं होती
हमें पाँचों ही स्थावरों को एकान्त रूप से कलेवर या जीव का छोड़ा हुआ शरीर नहीं समझना चाहिए
क्योंकि इस व्यवस्था में जीव पहले से ही उत्पन्न काया में जाकर उसे अपना शरीर बनाता है, वहाँ उत्पन्न होता है
इसलिए स्थावर पुद्गल रूप भी हैं और जीव रूप भी हैं
सिद्धान्ततः पृथ्वी आदि जीव कहाँ है और कहाँ से निकल गए नहीं बताया जा सकता
एक पत्थर के किस भाग में जीव होगा किस में नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता
इनकी काया घनांगुल का असंख्यातवाँ भाग जितनी छोटी होती है
ये पाँच स्थावर वाले जीव बड़ी सूक्ष्म काया वाले होते हैं और बड़े सूक्ष्म रूप से परिणमन करके रहते हैं
अतः हमें आगम अनुसार ही इन जीवों की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए
और साथ ही यह ज्ञान रखना चाहिए कि स्थावर अजीव रूप भी उपलब्ध होते हैं
पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु से हमारा जीवन चलता है
जैसे पृथ्वी से घर-मकान
जल से शरीर
अग्नि से भोजन
वायु से श्वास आदि
सिद्धान्ततः देखें तो वनस्पति के द्वारा ही हमारा जीवन चलाता है
वनस्पति का पहला भेद है साधारण वनस्पति यानि निगोद जीव
निगोद में अनन्त, अनन्त जीवों का पिण्ड होता है मतलब अनन्त जीवों का एक ही शरीर होता है
जो बादर और सूक्ष्म के भेद से पूरे लोक में स्थित रहते हैं
और उन्हीं से हमारे शरीर के अन्दर माँस आदि की उत्पत्ति होती रहती है
इनकी आयु अन्तर्मुहूर्त की आयु होती है
यही निगोद जीव वनस्पति में होते हैं तो साधारण वनस्पतिकायिक जीव होते हैं
वनस्पति का दूसरा भेद होता है प्रत्येक वनस्पति
जिसमें एक शरीर का एक जीव ही स्वामी होता है
उसकी अपनी आयु होती ही
और उसी के अनुसार उसमें जीवत्व बना रहता है
प्रत्येक वनस्पति के दो भेद होते हैं
सप्रतिष्ठित प्रत्येक यानि जिसमें अनन्त निगोद जीव आकर रह रहे हों यानि उनकी प्रतिष्ठा हो गयी हो
यह हमें हर जगह दिखाई देती है जैसे पालक, मैथी या हरी पत्ती वाली चीजें
इन्हें हम अनन्तकाय भी कहते हैं
और अप्रतिष्ठित प्रत्येक जिसमें से निगोद जीव निकल गए हो या न हो