श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 23
सूत्र -22
सूत्र -22
जब हम किसी चीज से खिलवाड़ करते हैं तो उसके फल भी अच्छे नहीं होते हैं। भाव लेश्या हमेशा अच्छी रहें, ऐसा प्रयास करना चाहिए। देवों और नारकियों की जीवन पर्यंत लेश्या परिवर्तित नहीं होती। मनुष्य गति में हम अपनी भाव लेश्या को शुभ रखने का पुरुषार्थ कर सकते है। देवों में हमेशा शुभ और नारकियों में हमेशा अशुभ भाव लेश्या ही बनी रहती है। वैमानिक देवों में भाव लेश्या। एक-एक लेश्या में असंख्यात लोक प्रमाण परिणाम स्थान होते हैं। आर्तध्यान, हमारी भाव लेश्या की शुभता को बिगाड़ देता है। अशुभ भाव लेश्या के दुष्प्रभाव। शुभ भाव लेश्या के लाभ। पंचम काल का जीव भी मरण कर वैमानिक देवों में उत्पन्न हो सकता है। चतुर्थ-अध्याय के स्वाध्याय से सीख। वास्तविक सुख किससे मिलता है? मृत्यु के समय पर हमारी भाव लेश्या जैसी होगी, वैसी ही आगामी पर्याय हमें प्राप्त होगी।
पीत-पद्म-शुक्ललेश्या-द्वि-त्रि-शेषेषु॥22॥
Vandana Jain
Agra
WINNER-1
Indira Jain
Bhopal
WINNER-2
Saroj Jain
Delhi
WINNER-3
निम्न में से कौनसे स्वर्ग में शुक्ल लेश्या होगी?
सौधर्म स्वर्ग
आनत स्वर्ग*
लान्तव स्वर्ग
माहेन्द्र स्वर्ग
हमने जाना कि हम भाव लेश्या को अच्छे ढंग से परवर्तित कर सकते हैं
लेकिन द्रव्य लेश्या को नहीं कर सकते
जबरदस्ती द्रव्य लेश्या को बदलने के फल अच्छे नहीं होते
जैसे माइकल जैक्सन की plastic surgery आदि कराने के बाद असमय मौत
हमें प्रयास करना चाहिए कि भाव लेश्या हमेशा अच्छी रहें
उसी से अच्छे परिणाम हमेशा काम आते हैं
मनुष्य और तिर्यंच अपनी भाव लेश्याएँ बदल सकते हैं।
देवों और नारकियों की लेश्या जीवन पर्यंत बदलती नहीं हैं
नरकों में अशुभ कृष्ण, नील, कापोत भावात्मक लेश्या
और देवों में पीत, पद्म और शुक्ल शुभ लेश्या ही होती है
हमने देखा कि अपनी-अपनी दृष्टि से लेश्या परिवर्तित होना और नहीं होना, दोनों ही अच्छे हैं
कथंचित् मनुष्य लेश्या परिवर्तन के कारण ही अपने भावों को अशुभ से शुभ में change कर सकता है
यही पुरुषार्थ है
कथंचित् देवों की हमेशा शुभ लेश्या भी अच्छी है
और नारकियों की अशुभ लेश्या भी
हमने वैमानिक देवों की भाव लेश्याओं की भी जाना
सौधर्म और ऐशान में पीत
सानत्कुमार-माहेन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर और लान्तव-कापिष्ठ में पीत और पद्म
शुक्र-महाशुक्र, शतार-सहस्रार में पद्म और हल्की शुक्ल
आनत-प्राणत और आरण-अच्युत में शुक्ल लेश्या होगी
नौ ग्रेवेयक और नौ अनुदिश में भी शुक्ल लेश्या होगी
पंच अनुत्तर में परम शुक्ल लेश्या होगी
जैसे कषायों के असंख्यात लोक प्रमाण अध्यवसाय स्थान होते हैं
वैसे लेश्या के परिणामों में भी अन्तर आता है
प्रत्येक लेश्या में असंख्यात लोक प्रमाण परिणाम स्थान होते हैं
पीत, पद्म या शुक्ल लेश्या के असंख्यात देवों में सबके परिणाम एक जैसे नहीं होंगे
सबकी कषायों की तीव्रता या मन्दता अलग-अलग होगी
कषायों के भेद हमें पंच परावर्तन में भाव परावर्तन जानने से समझ आएंगे
लेश्या अपने मनोभावों को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण चीज है
किसी के बारे में गलत सोचने से, आर्तध्यान करने से, चिन्ता में पड़ कर अपने भाव खराब करने से अशुभ लेश्या हो जाती है
और उससे depression आदि अनेक मानसिक बीमारियाँ हो जाती हैं
वहीं शुभ लेश्याएँ हमारे लिए भीतर से treatment है
इसके परिणाम से व्यक्ति अपने हित-अहित का विचार करके
हित के काम में लग कर अहित के काम को छोड़ देता है
अच्छी लेश्याएँ रखने से ही जीव पंचम काल में भी वैमानिक देवों में उत्पन्न हो सकता है
हमने इस अध्याय से सीखा कि वैमानिक देवों सुख के कारणों को ध्यान रखकर हम अपना भविष्य, परलोक सुधार सकते हैं
जैसे वास्तविक सुख
ज्यादा घूमने-फिरने से
शरीर ज्यादा मोटा, लम्बा होने से
बहुत सारा परिग्रह रखने से
या बहुत सारा अभिमान बढ़ा लेने से नहीं मिलता
बल्कि इनको कम करने से मिलेगा
मृत्यु के समय पर या आयु बन्ध के समय पर हमारी भाव लेश्या जैसी होगी, वैसी आगामी सागरों पर्यंत काल तक बनी रह सकती हैं।
मृत्यु के समय पर किया गया क्षण भर का पुरुषार्थ,
भावात्मक परिणति का सुधार,
आगामी लम्बे समय तक शुभ बनाए रखने में कारण बन जाता है