श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 27
सूत्र - 28,29,30
Description
हुंडा अवसर्पिणी काल की विशेषताएँ। दुखमा-सुखमा काल में जीवों का मोक्ष होता है। पंचम काल के अंत में धर्म का अन्त। छठवें दुखमा-दुखमा काल के अन्त तक का वर्णन। उत्सर्पिणी काल की व्यवस्था।
Sutra
ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिता: ॥3.28॥
एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षक दैवकुरवका:।l3.29।l
तथोत्तरा: ॥3.30॥
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WINNERS
Day 27
08th November, 2022
WIINNER- 1
WINNER-2
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
दुखमा-दुखमा के अंत में होने वाली अतिवृष्टियाँ(कुवृष्टियाँ) कुल कितने दिनों तक होंगी?
सात(7) दिनों तक
चौदह(14) दिनों तक
उनचास(49) दिनों तक*
अट्ठानवे(98) दिनों तक
Abhyas (Practice Paper):
Summary
1.हमने जाना कि भोगभूमियों में जीवों के देशसंयम भी नहीं हो सकता
परन्तु सम्यग्दर्शन रह सकता है
सम्यग्दर्शन भी जाति-स्मरण, देवों द्वारा प्रतिबोध या चारण ऋद्धिधारी मुनि महाराज के समझाने से हो सकता है
यहाँ देव-दर्शन इसका कारण नहीं होता
यहाँ चार गुणस्थान ही हो सकते हैं - मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र और अविरत सम्यक्त्व
सब जीवों के पर्याप्त अवस्था में शुभ लेश्या ही रहती है
अवसर्पिणी काल में कर्मभूमि आने पर कल्पवृक्ष का अभाव स्वत: हो जाता है
हमने जाना अभी हुंडा अवसर्पिणी काल चल रहा है
जो कई अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के बाद आता है
इस काल में सिद्धान्त के विरुद्ध कुछ घटनाएँ हुई हैं जैसे
तीसरे काल यानि भोगभूमि के समाप्त होने से पहले कर्मभूमि शुरू हुई
पहले तीर्थंकर का, चक्रवर्ती का जन्म तृतीय काल के अंत में हुआ
चक्रवर्ती की विजय भंग हुई
भरत चक्रवर्ती द्वारा द्विज वंश की उत्पत्ति हुई
तरह-तरह के पाखंडी, कुलिंगी, मिथ्यादृष्टि लोग हुए
त्रेसठ शलाका पुरुष में मात्र अठ्ठावन जीव ही हुए
क्योंकि कुछ जीवों ने एक से अधिक पदवी धारण की
हमने जाना कि कर्मभूमि चतुर्थ काल यानि दुखमा-सुखमा से शुरू हुई
और मुख्य रूप से इसी में जीवों का मोक्ष होता है
इस काल में जीवों की ऊँचाई पाँच सौ पच्चीस धनुष तक हो सकती है
और अधिकतम आयु एक पूर्व कोटि होती है
काल के अंत तक आयु और ऊँचाई कम हो जाती हैं
अन्तिम तीर्थंकर मात्र सात हाथ के थे
और उनकी आयु मात्रा बहत्तर वर्ष थी
भगवान महावीर के निर्वाण से लगभग तीन वर्ष और साढ़े आठ महीने बाद पंचमकाल शुरू हुआ
शास्त्रों के अनुसार पंचम काल में जीवों की अधिकतम आयु एक सौ बीस वर्ष
और ऊँचाई सात हाथ होती है
छठवें काल में height लगभग एक हाथ से साढ़े तीन हाथ
और आयु मात्र पंद्रह से बीस वर्ष होगी
छठवाँ काल दुखमा-दुखमा काल है
इसमें धर्म नहीं रहता
पंचम काल के अंत में तरह-तरह की वृष्टियों के कारण से धर्म समाप्त हो जाता है
अंत में एक मुनि महाराज, एक आर्यिका, एक श्रावक और एक श्राविका की समाधि होती है
यह काल में अति दुःख, अति क्लेश ही है
यहाँ सब वस्त्र विहीन होकर के ऐसे ही घूमते हैं
और कंद-मूल अदि खा-पी करके अपना जीवन गुजारते हैं
अवसर्पिणी काल के छटवें काल के अन्त में सात-सात दिन तक क्रम से
जल,
क्षार जल,
विष,
धूम,
धूल,
वज्र
और अग्नि की अतिवृष्टि होती है
इन उनंचास दिन में दस कोड़ा कोड़ी सागर का अवसर्पिणी काल समाप्त हो जाता है
धरती एक तरह से बिल्कुल जीव शून्य हो जाती है
कुछ जोड़े बचा कर रखे जाते हैं जो उत्सर्पिणी काल में काम आते हैं
उत्सर्पिणी काल के प्रारंभ में अच्छी-अच्छी वृष्टियाँ जैसे
जलों से भरे हुए मेघों की
क्षीर,
दुग्ध,
अमृत,
अच्छे रसों की वर्षा होती हैं
जिससे धरती पर सभी फल, फूल, वनस्पतियों अपने-आप उत्पन्न हो जाते हैं
और जीवन फिर से शुरू होता है
उत्सर्पिणी में सबसे पहले दुखमा-दुखमा काल आएगा
फिर दुखमा
और उसके बाद दुखमा-सुखमा - जिसमें जीवों के लिए कर्मभूमि होगी, मोक्ष गमन होगा
फिर उसके बाद में सुखमा-दुखमा - जघन्य भोगभूमि
सुखमा - मध्यम भोगभूमि
और फिर सुखमा-सुखमा - उत्तम भोगभूमि
यह दस कोड़ा कोड़ी सागर का उत्सर्पिणी काल चलेगा
और यह पूरा एक बीस कोड़ा-कोड़ी सागर का कल्पकाल होगा