श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 22
सूत्र -19,20
सूत्र -19,20
शील और व्रत रहित जीवों का चारों गतियों में गमन संभव। देव आयु प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं। सिर्फ एक इन्द्रिय जीवों को देव आयु का बंध नहीं होता।
नि:शीलव्रतत्वं च सर्वेषाम्।।6.19।।
सराग संयम संयमासंयमाकामनिर्जरा-बाल-तपांसि दैवस्य।।6.20।।
7th Sept 2023
Nidhi Jain
Kota Rajasthan
WINNER-1
रतन लाल जैन
जोधपुर
WINNER-2
Neetu Jain
Palam Village
WINNER-3
निम्न में से कौनसे गुणस्थान में देव आयु का बंध नहीं होगा?
दूसरे गुणस्थान में
तीसरे गुणस्थान में*
चौथे गुणस्थान में
पाँचवे गुणस्थान में
सूत्र उन्नीस नि:शीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् में हमने जाना कि
नि:शील और निःव्रत यानि शील रहित और व्रत रहित जीव किसी भी आयु का बंध कर सकता है
च शब्द के अनुसार ये भी मनुष्य आयु के आस्रव का कारण हैं
पहले हमने जाना था कि अल्प आरंभ, अल्प परिग्रह होना
और मृदु स्वभावी होना मनुष्य आयु के आस्रव के कारण होते हैं
सर्वेषाम् कहने से शील और व्रत रहितपना ये चारों आयु के आस्रव का कारण हो जाते हैं
2. संसार में शील और व्रत से रहित जीव ही सबसे अधिक मिलते हैं
सभी नारकी
सभी देव
स्वयंभूरमण समुद्र के कुछ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों
और यदा-कदा कर्म भूमि के तिर्यंचों को छोड़कर
अधिकतर तिर्यंच
नि:शील और निःव्रत होते हैं
संख्यात मनुष्यों में कर्मभूमि के बहुतायत और भोगभूमि के सभी मनुष्य शील और व्रत से रहित होते हैं
3. संक्षेप में किसी भी आयु का बंध करने के लिए
शील और व्रतों की विशेष आवश्यकता नहीं है
भोगभूमि के मनुष्य नियम से देव आयु का बंध करते हैं
तिर्यंच आयु का बंध कोई भी मनुष्य, तिर्यंच कर सकते हैं
तिर्यंच भी किसी भी आयु का बंध कर सकते हैं
4. सभी आयुओं के आस्रव में कारण होने के कारण इस सूत्र को बीच में रखा गया है
5. हमें समझना चाहिए कि शील और व्रतों के बिना देव आयु मिलना कोई बड़ी बात नहीं है
ऐसा नहीं है कि संयम के पालन से ही देव आयु का बंध होता है
उसके लिए तो योग्य लेश्या और कषाय मंद होनी चहिये
6. अशुभ लेश्या के माध्यम से नरक और तिर्यंच आयु का बंध
और पीतादि शुभ लेश्या के साथ नियम से देवायु का बंध होता है
इसका संबंध कषायों की मंदता से है
सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन से नहीं
7. हमने जाना कि एकेन्द्रिय से चार इन्द्रिय तक के जीव देवायु और नरकायु का आस्रव नहीं करते
कुछ असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच भवनवासी, व्यंतर देव बन सकते हैं
और पहले नरक तक भी जा सकते हैं
8. किसी भी संप्रदाय का मनुष्य एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच
थोड़ा अच्छा भाव रखकर
कषाय मंद रखकर
अच्छी लेश्या के कारण शुभ आयु का बंध कर लेता है
सूत्र बीस सरागसंयम-संयमासंयमा-कामनिर्जरा-बालतपांसि-दैवस्य में हमने देव आयु के आस्रव के कारण जानें
देवायु के कारणभूत एक भाव है सराग संयम का
अर्थात् राग के साथ में संयम का पालन करना
हमने जाना था कि सरागसंयम से साता वेदनीय यानि सुख का भी आस्रव होता है
वीतराग संयम तो अभी होता ही नहीं
सरागसंयम से साता वेदनीय भी है
और देवों का सुख भी है
लेकिन सरागसंयम का कार्य केवल इतना ही नहीं है
हमने समझा कि स्वर्ग में जाने वाले संयमी भी होते हैं और असंयमी भी
सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी
लेकिन वे मनुष्य और तिर्यंच ही होते हैं
इन सबके भाव अलग-अलग होते हैं
देवायु के लिए कारणभूत अगला भाव है संयमासंयम
इसमे देशव्रती, अणुव्रती, बारह व्रतों के धारी होते हैं
यह नियम है कि व्रत या संयम के साथ व्यक्ति को देवायु का बंध ही होता है
देवायु बंध के लिए कारणभूत सराग दशा सातवें गुणस्थान तक ही होती है
उसके आगे आयु बंध के स्थान नहीं होते हैं
देवायु का बंध पहले, दूसरे गुणस्थान में हो सकता है
तीसरे गुणस्थान में किसी आयु का बंध नहीं होता
चौथे, पांचवें गुणस्थान में मनुष्य या तिर्यंच देवायु बंध कर सकते हैं
छठवें, सातवें गुणस्थान में मनुष्य नियम से देवायु का ही बंध करेगा
अगर वह वीतराग संयम को धारण कर
अष्टम आदि गुणस्थानों में नहीं पहुंँच पा रहा
तो वह सरागसंयम के साथ मरण कर नियम से देवायु प्राप्त करेगा