श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 03

सूत्र - 03,04

Description

कल्पातीत सोलह स्वर्गों में बारह भेद ये भेद किन-किन अपेक्षाओं से हैं? चतुर्निकाय देवों में इन्द्र आदि व्यवस्था इन्द्र एक ही होता है सामानिक देव की व्यवस्था इन्द्र और सामानिक देवों का तालमेल त्रायस्त्रिंश देव मन्त्री की तरह काम करते हैं पारिषद जाति के देव सभा में बैठते हैंसभी देव सभ्यता के साथ सभा में बैठते हैं सभा शब्द की व्युत्पत्ति और सार्थकताआत्मरक्ष देव अंगरक्षक के समान होते हैं इन्द्र का वैभव दिखाने के लिए आत्मरक्ष देव होते हैं लोकपाल देव - कोतवाल के समान अनीक देव - सात प्रकार की सेना प्रकीर्णक देव – जनता के समान आभियोग्य देव - दासों के समान किल्विष - पापी देव आभियोग्य एवं किल्विष जाति में देव गति होने पर भी बुरे पुण्य का उदय होता है। सिर्फ संक्लेशित भाव रख सकते हैं कुछ कह नहीं सकते देव गति में आभियोग्य जाति के देवों को बैल, हाथी आदि बनना पड़ता है

Sutra

दशाष्ट-पञ्च-द्वादश-विकल्पा:कल्पोपपन्न-पर्यन्ता:॥3॥

इन्द्र-सामानिक-त्रायस्त्रिंश-पारिषदात्मरक्ष- लोकपालानीक-प्रकीर्णकाभियोग्य-किल्विष्काश्चैकश:॥4॥

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WINNERS

Day 03

14th Dec, 2022

Jyoti Jain

Bhopal

WINNER-1

Rachna jain

Harpalpur

WINNER-2


Neeta Shah

Pune

WINNER-3


Sawal (Quiz Question)

कौनसे देव मन्त्री की तरह काम करते हैं?

  1. लोकपाल देव

  2. पारिषद जाति के देव

  3. त्रायस्त्रिंश देव*

  4. अनीक देव

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/zBzfRAsn6TnBBWJC7

Summary


  1. हमने जाना कि कल्पवासी देवों के इर्द-गिर्द, छोटे-बड़े के भेद के साथ और भी देव रहते हैं

    • यह सूत्र सोलहवें स्वर्ग तक घटित होता है


  1. सोलवें स्वर्ग के ऊपर के देव कल्पातीत होते हैं, अर्थात कल्प व्यवस्था से रहित होते हैं

    • यहाँ कोई भी देव छोटा-बड़ा नहीं होता

    • यहाँ देवियाँ नहीं होती

    • देवियों का व्यवहार, घूमना-फिरना, लड़ना और क्रीड़ाएँ आदि करना नहीं होता


  1. सूत्र चार - इन्द्र-सामानिक-त्रायस्त्रिंश-पारिषदात्मरक्ष- लोकपालानीक-प्रकीर्णकाभियोग्य-किल्विष्काश्चैकश: में हमने देवों में दस प्रकार के देवों की व्यवस्था जानी

    • पहला भेद इन्द्र है

      1. जिसकी आज्ञा में सब रहते हैं

      2. यह एक ही होता है

      3. और उसके साथ उसका परिकर होता है

    • दूसरे सामानिक देव इंद्र के साथ और समान होते हैं

      1. इनकी आयु, वैभव, रानियाँ, परिवार देव, height सब इंद्र जैसे होती है

      2. लेकिन आज्ञा देने का वैभव केवल इन्द्र के पास होता है

      3. ये इन्द्रों के सहयोगी होते हैं

      4. उनके मात-पित्र और गुरु तुल्य होते हैं

    • तीसरे त्रायस्त्रिंश जाति के देव तैंतीस होते हैं

      1. और अच्छे मन्त्री की तरह काम करते हैं

    • चौथे पारिषद जाति के देव परिषद यानि सभा में बैठते हैं

      1. परिषद बाह्य, मध्यम और अभ्यन्तर - तीन प्रकार की होती हैं

      2. यहाँ सभी मित्रवत व्यवहार करते हैं

      3. इंद्र की सभा में कोई विपक्ष नहीं होता

      4. संस्कृत में सभा का मतलब सभ्य व्यक्तियों का समूह होता है

    • पांचवें आत्मरक्ष देव अंगरक्षक के समान होते हैं

      1. इंद्र की सुरक्षा में चौंकन्ने

      2. ये इन्द्र का वैभव दिखाने के लिए उसके अपने पुण्य से मिलते हैं

    • छटवें लोकपाल देव लोगों के रक्षक, कोतवाल के समान होते हैं

      1. ये बड़े-बड़े बसे हुए नगरों के, सभाओं की रक्षा करने वाले होते हैं

    • सातवें अनीक यानि सेना के देव होते हैं

      1. ये सात प्रकार के होते हैं - हाथी, घोड़ा, पदाति यानि पैदल, बैल, गन्धर्व यानि गाने वाले, नर्तकियाँ यानि नाचने वाली और रथ

    • आठवें प्रकीर्णक देव जनता-जनार्दन, नगर में रहने वाले सामान्य मनुष्यों की तरह होते हैं

    • नवमें आभियोग्य देव दास और दासियों के के समान होते हैं

      1. इन्हें विक्रिया से बैल, हाथी आदि भी बनना पड़ता है

      2. जिसके ऊपर इनके स्वामी बैठते हैं

    • और अंतिम किल्विष देवों को पाप उदय के कारण सभा से दूर रखा जाता है

      1. नगर, सभा के अन्दर इनकी entry नहीं होती


  1. ये दस प्रकार के देवों की व्यवस्था से हमने समझा कि सिर्फ देव बनना ही सब कुछ नहीं है

  2. अच्छे पुण्य से तो इन्द्र बनते हैं

    • और बुरे पुण्य से किल्विष, आभियोग्य जाति के देव बनते हैं

    • वे सिर्फ संक्लेशित भाव रख सकते हैं कुछ कह नहीं सकते