श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 40
सूत्र - 32
सूत्र - 32
विपरीत बातों की सिद्धि आप कैसे कर सकते हैं? अस्तित्व धर्म, नास्तित्व धर्म क्या होते हैं? अर्पित और अनर्पित क्या है? आम के उदाहरण से समझिए। वस्तु के धर्म को समझने के लिए सप्त भंगी व्यवस्था का प्रयोग करे।
अर्पिता-नर्पित-सिद्धे:॥5.32॥
Sharda Jain
Vaishali Ghaziabad
WINNER-1
ज्योती कैलाशपाटणी
कोपरगाव
WINNER-2
कमल बाबू जैन
Bhopal
WINNER-3
द्रव्य को दृष्टि में रखने पर द्रव्य की पर्याय क्या होगी?
अर्पित
अनर्पित*
समर्पित
दर्शित
हमने जाना कि द्रव्य की सत्ता; उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के माध्यम से बनती है
द्रव्य के स्व-भाव का कभी व्यय नहीं होता
इसलिये द्रव्य नित्य रहता है
लेकिन उसमें उत्पाद-व्यय निरन्तर होता है
जिससे उसमें अनित्यता आती है
द्रव्य नित्य है और अनित्य भी; वह बदलता भी है और नहीं भी - ये बातें परस्पर विरोधी हैं
सूत्र बत्तीस अर्पिता-नर्पित-सिद्धे: में आचार्य महाराज ने इन विरोधी बातों की सिद्धि की है
द्रव्य में हमेशा विरोधी धर्म रहा करते हैं
इसमें अस्तित्व के साथ नास्तित्व धर्म भी होता है
अस्तित्व गुण के कारण वह स्व-अस्तित्व में रहता है
और नास्तित्व गुण के कारण वह पर-अस्तित्व रूप में नहीं रहता है
नास्ति धर्म negative रूप है कि द्रव्य पर-रूप नहीं है
उदाहरण के लिए
अस्ति धर्म के कारण पेंसिल का स्व-अस्तित्व; स्व-द्रव्य, स्व-क्षेत्र, स्व-काल और स्व-भाव में है
नास्ति धर्म के कारण वह कागज, लोहा आदि नहीं है
नास्ति धर्म के अभाव में लकड़ी ही लोहे के रूप हो जाएगी
फिर सब द्रव्य एक-दूसरे से मिल जायेंगे
और किसी का अपना अस्तित्व नहीं रहेगा
हम द्रव्य की उत्पाद-व्यय हो रही पर्याय को नये रूप में देखते हैं
और इस कारण द्रव्य भी पूरा का पूरा नया हो जाता है
जैसे आम अगर हरे से पक कर पीला हो गया तो
यह वही आम है जो पीला हुआ है
this is that
लेकिन उसके द्रव्य में भी फर्क आ गया है
उसका रंग, खुशबू, shape, weight, taste आदि सब बदल गए
चूँकि द्रव्य में सब कुछ बदल गया है तो द्रव्य ही नया हो गया है
फिर भी हम कहते हैं कि यह वही है
अतः द्रव्य नित्य रूप भी है और अनित्य भी
बिना अनेकान्त धर्म की पद्धति और स्याद्वाद शैली के लोग इसे नहीं समझ पाएंगे
सूत्र से विरोधी बातें की सिद्धि करते हुए मुनि श्री ने समझाया
जिसे हम मुख्य रूप से रख रहे हैं
जो हमारा focus है
point of view है
वह अर्पित या primary है
अनर्पित इसका विपरीत है
यानि secondary या गौण
चूँकि हम विपरीत धर्मों को एक साथ नहीं कह सकते
इसलिए जब हम एक धर्म को कहें तो उसे मुख्य मान लें
और अन्य धर्म को गौण मान लें
हम उन्हें neglect न करें
थोड़ी देर बाद हम इसे secondary या गौण मान लें
द्रव्य और पर्याय में जब हम
द्रव्य को ग्रहण करें, तो द्रव्य को देखें और पर्याय को अनर्पित कर दें
और जब पर्याय ग्रहण करें, तो उसे मुख्य बनाकर द्रव्य को गौण कर दें
जब हम आम को देखें तो सिर्फ आम को देखें
उसका रंग आदि न देखें
आम कल भी डाली पर था और आज भी है
वह नहीं बदला, वह नित्य है
जब दृष्टि हरा-पीला, कच्चा-पका आदि पर्याय पर जाए तो
उसे मुख्य बनाकर द्रव्य को अनर्पित कर दें
किसी को एक साथ यह बताना संभव नहीं है
कि यह नित्य भी है और अनित्य भी
क्योंकि अगर नित्य है तो अनित्य क्यों?
और अनित्य है तो नित्य क्यों?
अपना point of view रखने के बाद हम यह भी कह सकते हैं
द्रव्य की अपेक्षा से यह नित्य ही है
और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य ही है
मुनि श्री ने वस्तु के धर्म को समझाने के लिए सप्त भंगी व्यवस्था को समझाया
पहला वस्तु नित्य है
दूसरा वस्तु अनित्य है
तीसरा वस्तु नित्य-अनित्य दोनों है यानि उभय है
अब दोनों कहने के बाद भी वस्तु के सभी गुणधर्म नहीं कहे जा सकते
कुछ और कहने को बचा है
जो कहने योग्य नहीं है
यह चौथी चीज अवक्तव्य है
शेष तीन भंगों को हम कल समझेंगे