श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 46
सूत्र - 21
सूत्र - 21
भाव बंध तथा द्रव्य बंध में भेद, (अनुभाग शक्ति- भाव बंध)। कर्म बंध में आबाधा काल तथा विपाक। भोजन का विपाक। कर्म का पाचन। घातिया कर्म की अपेक्षा से अनुभाग बंध। अघातिया कर्म की अपेक्षा से अनुभाग बंध। परिणामों की संक्लेश तथा विशुद्धी की अपेक्षा से अनुभाग बंध में तीव्र-मंदता।
विपाकोऽनुभवः॥8.21॥
12th,July 2024
Shobhana Jain
Indore
WINNER-1
Bhavna G Shah
Vadodara
WINNER-2
Leela Jain
Bhinder
WINNER-3
विपाक को क्या कहा गया है?
प्रकृति
स्थिति
अनुभव*
प्रदेश
बन्ध तत्व के वर्णन में प्रकृति और स्थिति बन्ध के बाद
आज हमने अनुभव बन्ध के बारे में जाना
अनुभव को अनुभाग बन्ध भी कहते हैं।
अनुभाग - कर्म की शक्ति को कहते हैं,
और जीव उसके फल की अनुभूति करता है,
इसलिये इसे अनुभव भी कहा जाता है।
ये दोनों शब्द एकार्थक भी हैं और भिन्नार्थक भी।
एकार्थक मतलब अनुभाग या अनुभव, दोनों एक ही बात है
भिन्नार्थक इस sense में कि
कर्मबन्ध के समय, कर्म के अन्दर आई शक्ति- अनुभाग कहलाती है।
जब उसी कर्म का विपाक होता है,
उस समय जीवात्मा को होने वाली अनुभूति,
उसका अनुभव कहलाती है।
अर्थात् कर्म का अनुभाग, बन्ध के समय
और अनुभव उदय के समय होता है।
विपाक यानी विशिष्ट पाक
अर्थात् कर्म का पकना,
वह फल देने योग्य हो गया - तब उसका अनुभव होगा
यह फलानुभव या रसानुभव ही विपाक है।
कर्म स्वयं में कार्माण वर्गणाओं का पिण्ड होता है
इसी पिण्ड में प्रकृति, स्थिति और अनुभाग शक्ति पड़ती है।
कार्माण शरीर या कार्माण वर्गणायें द्रव्य बन्ध हैं,
जो प्रकृति और प्रदेश के रूप में आत्मा में बन्धता है,
वह material है।
और उस material के अन्दर
आत्मा के ‘मिथ्यात्व’ या ‘कषाय परिणाम की तीव्रता या मन्दता’ के अनुसार
potency आ जाना,
कि यह यही फल देगा,
वह शक्ति ही उसकी भावशक्ति कहलाती है,
इसे भाव बन्ध कहते हैं।
कर्म का उदय आने पर इसी भावशक्ति का विपाक होता है।
कर्मों का जीव में बन्ध होने के बाद, एक आबाधा काल पड़ता है,
उतने काल तक वह disturb नहीं होता।
उसके बाद वह फल देने योग्य होता है।
तब बन्धी हुई स्थिति पर्यन्त,
वह फल देता रहता है
जैसे यदि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर का कर्म बन्धा
तो उसकी आबाधा काल बीत जाने के बाद
उसके एक-एक स्थिति के कर्म निषेक क्रम से उदय आते रहेंगे
और उन निषेकों का अनुभव ही अनुभाग बन्ध है।
जैसे पचा हुआ भोजन ही फल देता है
भोजन पचने पर ही- उसके vitamins, Proteins, की potency-
स्फूर्ति और शक्ति के रूप में अनुभव में आती है।
भोजन का पचना ही उसका विपाक है
गरिष्ठ भोजन के विपाक में 3 से 6 या 12 घंटे भी लग सकते हैं
simple भोजन सुपाच्य और तुरन्त शक्तिप्रद होता है।
भोजन की ही तरह है कर्म का पाचन
पका हुआ कर्म ही फल देता है
store के रूप में सत् में पड़े हुए कर्म का अनुभव नहीं होता
जब उसका विपाक हो गया
अर्थात् वह पच गया, पक गया
तब हम उसका रस चखते हैं
अच्छा हो या बुरा
कटुक या मिष्ट, हम सब अपने ही कर्मों का रस चख रहे हैं
हमने जाना कि घातिया कर्म - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय
एकान्त से पाप रूप ही हैं
आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय रूप अघातिया कर्मों में
कुछ शुभ यानि पुण्य रूप हैं
जैसे शुभ आयु, उच्चगोत्र, साता वेदनीय, तीर्थंकर आदि नाम कर्म
और कुछ अशुभ यानि पाप रूप हैं।
शुभ कर्मों का उत्कृष्ट बन्ध - विशुद्धि के परिणामों से होता है
यानि जब परिणामों में संक्लेश कम हो,
और विशुद्धि अधिक।
संक्लेश परिणाम के समय
कषाय तीव्र होने से-
हम दुःख अनुभूत करते हैं,
मन में एक पीड़ा होती है,
मन कहीं पर नहीं लगता,
उसी बात को ध्यान रखकर खेद-खिन्न बना रहता है
और विशुद्ध परिणाम के समय
कोई क्लेश नहीं होता,
कषाय बिल्कुल मन्द रहती है
या बिल्कुल ही हमें अनुभव में नहीं आती,
अन्तरंग में बहुत ही शान्ति और निश्चिन्तता का भाव आता है।
यही विशुद्धि की अनुभूति है।