श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 19

सूत्र - 7

Description

द्रव्य का अनादि स्वभाव कभी परिवर्तित नहीं हो सकता l भव्यों के प्रकार l उपादान की भीतरी योग्यता पर ही सब कुछ निर्भर हो है l l

Sutra

जीव-भव्याभव्यत्वानि च ।l।l

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WINNERS

Day 19

10th May, 2022

Seema Jain

Vapi (Gujarat)

WIINNER- 1

Rk Jain

Gwalior

WINNER-2

Sunita jain

Delhi

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

आज की अपेक्षा से, जिन जीवों को दो-चार-दस भवों में मोक्ष हो जाए, वो जीव क्या कहलाएँगे?

  1. अभव्य

  2. आसन्न भव्य *

  3. दूर भव्य

  4. दूरान्दूर भव्य

Abhyas (Practice Paper):

Summary



  1. जीव के पारिणामिक भावों में हमने भव्यत्व और अभव्यत्व गुणों को विस्तार से समझा

  2. भव्य जीव में सम्यग्दर्शन आदि प्राप्त करने की योग्यता होती है

    • अभव्य में ये योग्यता नहीं होती


  1. भव्य जीव कभी-न-कभी भविष्य में निमित्त मिलने पर सम्यग्दर्शन आदि को प्राप्त कर सकेगा

    • अभव्य जीव निमित्त मिलने पर भी सम्यग्दर्शन, रत्नत्रय आदि प्राप्त नहीं कर पाएगा


  1. अभव्य जीव कितनी भी त्याग-तपस्या करले, कोई कितना भी समझा दे या बाहर से वह व्रती हो जाये, महाव्रती हो जाये पर वह कभी भी सिद्धत्व की प्राप्ति नहीं करेगा, सीझेगा नहीं

  2. जहाँ भव्य जीव के गुणस्थान बदलते हैं

    • अभव्य जीव का हमेशा एक ही पहला मिथ्यात्व गुणस्थान रहता है


  1. जैसे मूंग की दाल में उसी की shape का ठर्रा मूंग का दाना कभी भी नहीं सीझता ;

    • यहाँ मूँग भव्य जीव को

    • और ठर्रा मूँग अभव्य जीव को दर्शाती है


  1. भव्य जीव कभी अभव्य नहीं बन सकेगा और अभव्य कभी भी भव्य नहीं बन सकेगा

  2. द्रव्य की अपनी योग्यता ही उपादान शक्ति होती है

    • जिसके कारण से वह भव्य या अभव्य होता है

    • यह शक्ति किसी के द्वारा rakhi नहीं गयी


  1. भव्यत्व और अभव्यत्व द्रव्य का अपना अनादि स्वभाव है, इसको कोई भी परिवर्तित नहीं कर सकता

    • जैसे- हवा बहती है, जल शीतल है, अग्नि उष्ण है

    • इसके पीछे कोई logic नहीं होता


  1. हमने भव्यों के प्रकार को भी जाना

    • आसन्न-भव्य या निकट-भव्य जीव दो-चार-दस भवों में ही मोक्ष जाएगा

    • दूर-भव्य जीव कई संख्यात या असंख्यात भवों के बाद मोक्ष जाएगा

    • अभव्य के समान भव्य जीव न अभी तक सीझा है, न आगे कभी अनन्त काल तक सीझेगा

      • ऐसे अनंत भव्य जीव हमेशा संसार में ही रहेंगे

      • ये अंध-पाषाण के समान हैं जिसमें किसी भी process से कभी कुछ भी स्वर्ण नहीं निकलेगा


  1. निगोद में अभव्यों की संख्या से अनन्त गुणे भव्य होते हैं

    • लेकिन उन भव्यों में भी अनन्त जीव हैं, जिन्हें कभी भी सम्यग्दर्शन आदि की प्राप्ति नहीं होगी


  1. सिद्धान्ततः जीव अपनी शक्ति से ही सब कुछ प्राप्त करता है

    • निमित्त उन्हीं में काम करते हैं, जिनके उपादान में योग्यता होती है

    • बिना योग्यता या शक्ति के बाहरी निमित्त कुछ काम नहीं कर पाते