श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 43
सूत्र - 38
सूत्र - 38
द्रव्यों के गुणों और स्वरूप का वर्णन। सामान्य गुण अस्ति स्वभाव को धारण करते हैं। द्रव्य की पर्यायों का वर्णन। आचार्यो ने द्रव्य और गुणों की पर्यायों को अनेक तरह से समझाया है। गुण द्रव्य का हमेशा अन्वय करते हैं। आगम के अनुसार पर्याय क्रमवर्ती होती हैं क्रमबद्ध नहीं।
गुण-पर्ययवद् द्रव्यम् ||5.38||
Kamal kumar Jain
Udaipur
WINNER-1
Archana Authankar
Pune
WINNER-2
मंजु जैन कासलीवाल
जयपुर
WINNER-3
द्रव्य का ज्ञेय रूप होना उसका कौनसा गुण होता है?
अस्तित्व
प्रमेयत्व*
प्रदेशत्व
अगुरुलघुत्व
सूत्र अडतीस गुण-पर्ययवद् द्रव्यम् के अनुसार द्रव्य गुण और पर्याय दोनों को धारण करता है
यह गुण और पर्यायों के पिंड का आधार होता है
द्रव्य से सामान्य रूप को
और गुण-पर्याय से उसको विशेषरूप से जानते है
हमने जाना कि लक्षण और स्वरूप अलग-अलग चीजें हैं
लक्षण स्वरूप को बनाए रखता है
और हमेशा उसकी त्रैकालिक परिणति में दिखाई देता है
सूत्र तीस में द्रव्य का लक्षण सत् बताया था
जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के माध्यम से बनता है
गुणवान और पर्यायवान होना उसका स्वभाव है
जीव मूर्तिक, अमूर्तिक, संकोच-विस्तार आदि स्वभाव वाला होता है
लेकन उसका लक्षण केवल उपयोग है
गुणों का द्रव्य से संबंध हमेशा रहता है
और ये पर्यायों से भी व्याख्यायित होते हैं
पर्यायें द्रव्य और गुण दोनों की होती हैं
द्रव्य में सामान्य और विशेष दोनों गुण होते हैं
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशवत्व, अगुरुलघुत्व ये द्रव्य के छह सामान्य गुण होते हैं
जो सभी शुद्ध और अशुद्ध द्रव्यों में होते हैं
अस्तित्व गुण के कारण अस्तित्व बना रहता है
वस्तुत्व गुण के कारण द्रव्य में सामान्यपना और विशेषपना होता है
द्रव्यत्व गुण के कारण द्रव्य अनेक पर्यायों को प्राप्त करता है
प्रमेयत्व गुण के कारण वह ज्ञेय रूप होता है
और ज्ञान का विषय बनाता है
वह प्रमेय रूप होता और प्रमाता या प्रमाण का विषय बनता है
प्रदेशत्व गुण के कारण वह अपने प्रदेशों को धारण करता है
जैसे संख्यात, असंख्यात या अनंत प्रदेशी
अगुरुलघुत्व गुण के माध्यम से द्रव्य प्रति समय षटगुणी हानि-वृद्धि कर अपने स्वाभाविक परिणमन को धारण करता है
जीव द्रव्य के दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य, चेतनत्व, अमूर्तत्व विशेष गुण हैं
वहीं पुद्गल के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अचेतनत्व, मूर्तत्व
धर्म द्रव्य के गति में हेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व
अधर्म द्रव्य के स्थिति में हेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व
आकाश द्रव्य के अवगाहनत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व
और काल द्रव्य के वर्तना में निमित्त होना, अचेतनत्व और अमूर्तत्व होना विशेष गुण हैं
पर्यायें अर्थ और व्यंजन प्रकार की होती हैं
अर्थ पर्याय स्वभाव और विभाव दो प्रकार की होती है
प्रति समय षटगुणा हानि रूप चल रहा परिणमन द्रव्य की स्वभाव अर्थ पर्याय है
विभाव अर्थ पर्याय केवल जीव द्रव्य में होती है
मिथ्यात्व, कषाय, राग, द्वेष, पुण्य और पाप - इसके भेद हैं
व्यंजन पर्यायें भी द्रव्य और गुणों की होती हैं
और स्वाभाविक और वैभाविक भी होती हैं
सिद्ध शुद्ध पर्याय ही जीव की स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय है
और केवल ज्ञानमय, केवल दर्शनमय, अनंत सुखमय होना उसकी स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय हैं
मनुष्यादि पर्यायें उसकी विभाव द्रव्य व्यंजन पर्यायें हैं
और मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान उसकी विभाव गुण व्यंजन पर्याय हैं
गुण के साथ उसकी पर्याय भी बदलती है
हमने जाना कि पुद्गल से पुद्गल के मिलने पर समान जाति पर्याय
और जीव की मनुष्य आदि पर्यायें असमान जाति पर्याय होती हैं
क्योंकि इसमें जीव के साथ पुद्गल की भी परिणति होती है
द्रव्य और गुणों की पर्यायों को हम अनेक भेद से समझ सकते हैं जैसे
स्वभाव-विभाव
अर्थ-व्यंजन
समान-असमान जाति
हमने जाना कि गुण हमेशा द्रव्य के साथ रहते हैं
अन्वय करते हैं
जबकि पर्यायें व्यतिरेक स्वभाव वाली होती हैं
जो समय पर बदलती और उत्पन्न होती रहती हैं
क्रम वर्तिनः पर्यायः अर्थात पर्यायें क्रमवर्ती होती हैं
अर्थात क्रम क्रम से उत्पन्न होती हैं
द्रव्य की और गुण की एक समय पर एक ही पर्याय रहेगी
जब एक पर्याय पूरी होगी तभी दूसरी पर्याय उत्पन्न होगी
इसलिए वो क्रम क्रम से होती रहती हैं
जैसे बालक से युवा, युवा से वृद्ध होना आदि
मुनि श्री ने समझाया कि आगम के अनुसार पर्याय क्रमवर्ती होती हैं क्रमबद्ध नहीं
क्रमबद्ध मतलब क्रम से बंधी हुई होना
एक के बाद एक होना
लेकिन इसे भगवान की सर्वज्ञता का सहारा लेकर
जिसमें वे भूत-भविष्य-वर्तमान की सब पर्यायें देखते हैं
लोग अलग तरीके से theory बनाकर बताते हैं
जबकि आचार्यों का अभिप्राय पर्याय की क्रमबद्धता सिद्ध करने का नहीं रहा
उनकी परंपरा के अनुकूल क्रमवर्ती पर्याय कहना है, क्रमबद्ध नहीं